अगर कृत्य सार्वजनिक दृश्य में नहीं है तो धारा 3(यू) एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध आकर्षित नहीं होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट ने गोल्फ संघ के पदाधिकारियों को राहत दी

Avanish Pathak

10 Dec 2022 4:12 PM GMT

  • अगर कृत्य सार्वजनिक दृश्य में नहीं है तो धारा 3(यू) एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध आकर्षित नहीं होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट ने गोल्फ संघ के पदाधिकारियों को राहत दी

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत एसोसिएशन के एक पूर्व सदस्य की ओर से कर्नाटक गोल्फ एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द कर दिया।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने कहा,

    "यदि शिकायत को घटानाओं के समक्ष रखकर देखा जाए तो यह स्पष्ट रूप से समझ आता है कि जिन प्रावधानों के तहत अपराध दर्ज किया गया है, उनमें से कोई भी प्रथम दृष्टया आकर्षित नहीं होगा, यहां तक कि शिकायतकर्ता के अनुसार भी संपूर्ण घटना मीटिंग हॉल में हुई है, जहां याचिकाकर्ता मौजूद थे और शिकायतकर्ता वहां घुस गया था। इसलिए यह एक ऐसा स्थान है जो न तो सार्वजनिक दृश्य में है और न ही सार्वजनिक स्थान है। अधिनियम की धारा 3 (1) (यू) इस अपराध को दंडनीय बनाती है ।"

    फैसले में कहा गया, "याचिकाकर्ताओं पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ किसी भी शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावना को बढ़ावा देने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। इसलिए, अधिनियम का कोई भी प्रावधान आकर्षित नहीं होता है।"

    मामला

    शिकायतकर्ता एएम सुरेश राज 2014 से एसोसिएशन के अस्थायी सदस्य थे। एक घटना, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह वर्ष 2019 में हुई, की जांच के बाद उन्हें सदस्यता से निलंबित कर दिया गया था। 2019 में उन्होंने फिर से आजीवन सदस्य श्रेणी के तहत सदस्यता के लिए आवेदन किया।

    14 अक्टूबर, 20020 को एसोसिएशन ने उन्हें एक संदेश भेजा कि उन्होंने एसोसिएशन का आजीवन सदस्य बनने के लिए पर्याप्त संख्या में वोट हासिल नहीं किए हैं। इसे रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज के समक्ष उठाया गया है। रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज एसोसिएशन को नई बैठकें आयोजित करने और शिकायतकर्ता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश देते हैं। एसोसिएशन ने आदेश वापस लेने के लिए आवेदन दिया है।

    बाद में शिकायतकर्ता ने विभिन्न राहतों की मांग करते हुए एक दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें संघ द्वारा उसकी आजीवन सदस्यता की अस्वीकृति को शून्य घोषित करने और हर्जाने की मांग करना शामिल है। एसोसिएशन की ओर से वाद का विरोध किया गया था।

    बाद में रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज ने 19-05-2022 के आदेश के जरिए एसोसिएशन को 30 दिनों के भीतर शिकायतकर्ता की सदस्यता पर विचार करने का निर्देश दिया। आदेश मिलने के बाद एसोसिएशन ने आगे की रणनीति तय करने के लिए प्रबंध समिति की बैठक बुलायी।

    14 जून, 2022 को जब बैठक चल रही थी, शिकायतकर्ता मीटिंग हॉल में घुस गया और मांग की कि रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज द्वारा उसे एसोसिएशन के सदस्य के रूप में शामिल करके पारित आदेश को तुरंत लागू किया जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि शिकायतकर्ता द्वारा बैठक को बाधित किया गया था और जिसके बाद उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 504, 506 और 34 और धारा 3 (1) (आर), 3 (1) (एस) और धारा 3 (1) (यू) के तहत शिकायत दर्ज कराई।

    परिणाम

    पीठ ने पुलिस में दर्ज शिकायत पर गौर करते हुए कहा, "शिकायत में दिया गया बयान काफी रक्तरंजित है। किसने क्या फेंका, इसका संकेत नहीं दिया गया है। शिकायत में अस्पष्ट बयान दिए गए हैं और कहा गया है हॉल में खुद अपशब्द कहे गए थे।"

    तब यह देखा गया कि "यदि शिकायत के विवरण को यहां ऊपर बताई गई घटनाओं की श्रृंखला के लिंक के साथ जोड़ा जाता है, तो जो स्पष्ट रूप से सामने आएगा, वह यह है कि दूसरा प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं के कृत्य के लिए स्कोर सेटल करने की मांग कर रहा है, क्योंकि उसने तुरंत रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज के आदेश का कार्यान्वयन नहीं किया और उसे एसोसिएशन में एक आजीवन सदस्य के रूप में स्वीकार करते हैं। असंतुष्ट हो रहे शिकायतकर्ता विशेष रूप से गालियां देने का आरोप लगाते हुए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करने की मांग कर रहे हैं।"

    यह देखते हुए कि आवेदन पत्र के प्रारूप या शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत आवेदन में कोई कॉलम नहीं है जो किसी सदस्य की जाति पूछता हो। पीठ ने कहा, "इसलिए, यह केवल शिकायतकर्ता की ओर से से पेश विद्वान वकील की कल्पना की उपज है कि शिकायतकर्ता की उम्मीदवारी केवल इसलिए खारिज कर दी गई क्योंकि वह अनुसूचित जाति से संबंधित थी और शिकायत अनुसूचित जाति से संबंधित थी। यह तभी जाना जाता है जब उन्होंने आजीवन सदस्य बनने के लिए आवेदन किया और उससे पहले नहीं।"

    इसके बाद हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2020) 10 एससीसी 710 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र किया गया। यहां तक कि अगर यह माना जाता है कि गाली दी गई है, तो इस तरह की कथित कार्रवाई को न तो सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृश्य का स्थान माना जा सकता है।"

    पीठ ने याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत सीसीटीवी फुटेज को देखने के बाद कहा, "परिस्थितियों की समग्रता के बाद यह पाया गया कि अधिनियम या आईपीसी के तहत अपराध इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों के समक्ष आक‌‌र्षित नहीं होंगे। और किसी भी कार्यवाही की अनुमति कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

    तदनुसार इसने याचिकाओं को अनुमति दी।

    केस टाइटल: डॉ एमजी भट और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य।

    केस नंबर: WP 11949 of 2022 C/W WP 12182 of 2022।

    आदेश पढ़ने और डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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