याचिका में मांग-लॉकडाउन में मुफ्त राशन पाने के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म की जाए, कोर्ट ने रद्द करते हुए कहा-आधार ही नहीं 13 दस्तावेज़ स्वीकार्य
LiveLaw News Network
21 April 2020 5:01 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि राज्य सरकार के 2018 एक प्रस्ताव के तहत नॉन-एनएफएसए एपीएल -1 परिवारों को पहचान के 13 दस्तावेजों के आधार पर मुफ्त राशन और किराना पाने का अधिकार दिया गया है, सोमवार को एक जनहित याचिका को रद्द कर दिया।
याचिका में प्रार्थना की गई थी कि 11 अप्रैल को खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले के विभाग की ओर से जारी अधिसूचना, जिसके तहत नि: शुल्क वितरण का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया गया था, को रद्द किया जाए।
डिवीजन बेंच ने पाया कि उक्त अधिसूचना नॉन-एनएफएसए (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम) एपीएल -1 (गरीबी रेखा से ऊपर) श्रेणी के व्यक्तियों को मुफ्त राशन और किराने के वितरण के लिए एक नीतिगत निर्णय पर विचार करती है, ताकि "वर्तमान संकट की अवधि में, जब देश और राज्य को लॉकडाउन का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी प्रभावित हुई है, समाज के जरूरतमंद वर्ग को किराने और अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उस वर्ग को आवश्यक वस्तुओं-अनाज और किराना आदि की सुविधा मिल सके।"
उक्त अधिसूचना में कहा गया था कि निःशुल्क किराना वितरण का लाभ पाने के लिए संबंधित लाभार्थी को आधार कार्ड पेश करना होगा, लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य किसी पहचान पत्र को मान्य नहीं माना जाएगा।
याचिकाकर्ता ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष आग्रह किया था कि उक्त उद्देश्य का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाना और पहचान के अन्य दस्तावेजों को खारिज़ करना, उक्त उद्देश्य को ही विफल करेगा, और इससे लोगों को बहुत कठिनाई होगी और यह अन्याय होगा।
उन्होंने कहा कि चूंकि अन्य कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं, इसलिए जरूरतमंदों को मुफ्त किराना पाने के लिए आधार कार्ड पेश करना अनिवार्य होगा। याचिकाकर्ता का कहना था कि "आधार कार्ड को अनिवार्य करना और किसी अन्य पहचान पत्र को न मानना मौलिक अधिकारों के उल्लंघन जैसा है।
याचिकाकर्ता ने अधिसूचना में आधार कार्ड अनिवार्य किए जाने की शर्त को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उसने आधार कार्ड की शर्त को रद्द करने और अन्य पहचान पत्रों की इजाजत देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि जब COVID-19 के प्रकोप के दौर में जरूरतमंदों को मुफ्त किराना देने की परोपकारी योजना बनाई गई है तो ऐसे में आधार कार्ड पर जोर देना मनमाना और समानता के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
सरकारी वकील ने अपनी दलील में कहा कि 11 अप्रैल की अधिसूचना के तहत, किराने का आवश्यक सामान ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दो तरीकों से वितरित किया जाना है। ऑनलाइन मोड के तहत, लाभार्थियों का सत्यापन बायोमेट्रिक्स यानी अंगूठे के निशान का उपयोग करके किया जाना है, जबकि ऑफ़लाइन तरीके के तहत एक रजिस्टर में राशन के वितरण की जानकारी दर्ज की जाएगी।
ऑफ़लाइन तरीके का उपयोग उन मामलों में किया जाएगा, जहां लाभार्थी के पास बायोमेट्रिक विवरण उपलब्ध नहीं होगा है या ढांचागत बाधाओं के कारण ऑनलाइन मोड में वितरण संभव नहीं होगा।
बेंच ने कहा कि "राज्य सरकार 01 मार्च, 2018 को एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है, जो नॉन-एनएफएसए एपीएल -1 परिवारों पर लागू होता है और जिसके तहत यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वितरण के लिए 13 दस्तावेजों का उपयोग किया जाएगा।
राज्य अधिकारियों ने न्यायालय के समक्ष कहा कि आधार कार्ड की अनुपलब्धता की स्थिति में निम्नलिखित 13 दस्तावेजों को वैध पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है- (i) निर्वाचन कार्ड, (ii) पैन कार्ड, (iii) ) ड्राइविंग लाइसेंस, (iv) फोटो के साथ बैंक पासबुक (v) पासपोर्ट, (vi) नरेगा कार्ड, (vii) किसान पासबुक (फोटो और नाम के साथ), (viii) मामलातदार की ओर से जारी पहचान पत्र (ix) राजपत्रित अधिकारी द्वारा जारी किए गए पहचान पत्र (x) डाक विभाग द्वारा दिया गया पहचान पत्र (फोटो और नाम के साथ), (xi) एलपीजी बुक / नंबर, (xii) शैक्षिक संस्थान द्वारा जारी प्रमाण पत्र / जन्म प्रमाण पत्र और (xiii) राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कार्ड।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि याचिका की मेरिट की जांच किए जाने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने "प्रतिवादी-राज्य की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए और यह देखते हुए कि प्रतिवादी-राज्य प्राधिकारी उनका पालन करेंगे और उन्हें लागू करेंगे" याचिका को रद्द कर दिया।
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