'हम अपराध से जुड़े सामाजिक कलंक से बेखबर नहीं': कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाबालिग के बलात्कार के मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी को माफ किया
LiveLaw News Network
3 Feb 2022 4:09 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि बलात्कार के अपराध से सामाजिक कलंक जुड़ा है, और इस प्रकार यह माना जाता है कि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने मे विलंबर अभियोजन के मामले को निष्प्रभावी नहीं करेगी। अदालत ने तदनुसार 14 साल की एक नाबालिग पीड़िता के बलात्कार के दोषी एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा। पीड़िता ने बाद में एक मृत बच्चे को जन्म दिया था।
जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस बिवास पटनायक की खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पीड़िता ने अपीलकर्ता की लगातार धमकियों के कारण किसी को अपराध के बारे में जानकारी नहीं दी। उसने गर्भावस्था का पता चलने के बाद ही पुलिस शिकायत दर्ज कराई थी।
कोर्ट ने कहा,
"मैं अपराध की प्रकृति से जुड़े सामाजिक कलंक से भी बेखबर नहीं हूं, जिसके लिए एफआईआर दर्ज करने में विलंब भी हो सकता है अन्यथा, इस प्रकार के अपराध के संबंध में शिकायत दर्ज करने में विलंब का एक मात्र तथ्य अपने आप में इतना घातक नहीं होगा कि अभियोजन के मामले को निष्प्रभावी किया जा सके।"
इसके अलावा कोर्ट ने पाया कि झूठे बयान गढ़न या बढ़ाचढ़ा कर बताने का कोई सबूत नहीं है और इस प्रकार एफआईआर दर्ज करने में विलंब से संबंधित तर्कों को खारिज कर दिया।
पृष्ठभूमि
मौजूदा मामले में अपीलकर्ता ने POCSO एक्ट की धारा 6 और धारा 448 और आईपीसी 1860 की धारा 506 (आपराधिक धमकी) और 376 (2) (i) (16 वर्ष से कम उम्र की महिला से बलात्कार) के तहत सेशन कोर्ट द्वारा जारी दोषसिद्धि के आदेश को चुनौती दी थी।
अपीलकर्ता का 7 सालों से से पीड़िता के घर आना-जाना था और वह पीड़िता को अपनी 'पोती' भी कहता था। 6-7 महीनों की अवधि में परिवार के सदस्यों की गैर-मौजूदगी का फायदा उठाकर अपीलकर्ता ने पीड़िता के घर में कई बार जबरन घुसा था और उसके साथ जबरन दुष्कर्म किया था। इसके बाद नाबालिग पीड़िता ने खुद 10 जून 2014 को अपीलकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
बलात्कार के अपराध के कारण, नाबालिग पीड़िता ने बाद में गर्भधारण किया था और 29 अगस्त 2014 को एक मृत बच्चे को जन्म दिया था।
टिप्पणियां
अदालत ने स्वीकार किया कि एफआईआर दर्ज करने में विलंब हुआ है, हालंकि उसने अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि अभियोजन का मामला संदेह के घेरे में है क्योंकि एफआईआर दर्ज करने में अत्यधिक विलंब हुआ है।
कोर्ट ने पाया कि पीड़िता ने लिखित शिकायत के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में लगातार अपीलकर्ता द्वारा धमकी देने की बात कही है।
कोर्ट ने कहा, "पीड़िता की ओर से पेश साक्ष्य और अन्य साक्ष्य, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, अपीलकर्ता के दोष की ओर उस व्यक्ति के रूप में इशारा करता है, जिसने कई मौकों पर पीड़िता को परिवार के अन्य सदस्यों की अनुपस्थिति में घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म किया, जिसका नतीजा यह रहा कि वह गर्भवती हुई। पीड़िता को अपराध का खुलास करने पर जान से मारने की धमकी दी गई। उसके परिवार के सदस्यों को भी जान से मारने की धमकी दी गई।"
पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा रखा गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "अदालतें इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं क्योंकि यौन अपराधों में एफआईआर दर्ज करने में देरी कई कारणों से हो सकती है, विशेष रूप से अभियोक्ता या उसके परिवार के सदस्यों की पुलिस के पास जाने और उस घटना के बारे में शिकायत करने की अनिच्छा, जो अभियोक्ता की प्रतिष्ठा और उसके परिवार के सम्मान से संबंधित है। केवल शांति से विचार करने के बाद ही यौन अपराध की शिकायत दर्ज की जाती है। "
कोर्ट ने आगे कहा कि चाइल्डलाइन के एक पार्षद द्वारा नाबालिग पीड़िता से बात करने के बाद ही वह शिकायत दर्ज कराने के लिए सहमत हुई। अदालत ने आगे कहा, "इसलिए उपरोक्त सबूतों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पीड़िता ने अपीलकर्ता द्वारा लगातार धमकी देने के कारण घटना के बारे में सूचित नहीं किया और जब उसकी गर्भावस्था का पता चला तो उसने शिकायत दर्ज कराई।"
आगे यह भी नोट किया गया कि जांच अधिकारी की ओर से चूक के कारण बच्चे का कोई डीएनए परीक्षण नहीं किया गया था, हालांकि, यह पीड़ित लड़की की गवाही को बदनाम करने का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने आगे कहा, " पीड़ित लड़की का जांच एजेंसी पर कोई नियंत्रण नहीं था और जांच अधिकारी की कोई भी लापरवाही पीड़ित लड़की के साक्ष्य की विश्वसनीयता को प्रभावित नहीं कर सकती है।"
तदनुसार, अदालत ने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और आगे कहा कि नाबालिग 'पीड़ित मुआवजा योजना' के तहत मुआवजे की हकदार है।
केस शीर्षक: मोहम्मद इसराइल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 23.