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'हमारी महिलाएं बलात्कार के बाद ऐसे व्यवहार नहीं करती': रेप प‌ीड़िता के दावे कि वह रेप के बाद सो गई थी, पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network
25 Jun 2020 6:55 AM GMT
हमारी महिलाएं बलात्कार के बाद ऐसे व्यवहार नहीं करती: रेप प‌ीड़िता के दावे कि वह रेप के बाद सो गई थी, पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को बलात्कार के एक मामले में कथित बलात्कार पीड़िता के "अशोभनीय" आचरण को ध्यान में रखते हुए आरोपी की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण कि अपराध के बाद वह थक गई थी और सो गई थी, एक भारतीय महिला के लिए अशोभनीय है; एक भारतीय महिला दुराचार के बाद ऐसे व्यवहार नहीं करती है।

मौजूदा मामले के अभियोजन पक्ष ने अभियुक्त को पिछले दो वर्षों से नौकरी पर रखा था। अभ‌ियुक्त पर आरोप था कि उसने शादी के झूठे बहाने अभियोजिका के साथ शारीरिक संबंध बनाए। आरोप लगाया गया है कि कथित घटना की रात, याचिकाकर्ता अभ‌ियोजिका की कार में बैठकर और उसके साथ उसके कार्यालय गया, जहां उसने उसके साथ बलात्कार किया।

जिसके बाद, आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 (यौन उत्पीड़न), 420 (धोखाधड़ी) और 506 (आपराधिक धमकी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-बी के तहत मामला दर्ज किया गया।

आरोपी ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सुनवाई के दरमियान, अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा अभियोजिका की कार में बैठने के कारणों का अनुमान लगाते हुए, आरोपों की सच्चाई पर संदेह व्यक्त किया, कि

(i) अभियोजिका ने याचिकाकर्ता के कार में बैठने के बाद शोर न‌हीं किया; (ii) स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के साथ शराब पी; और (iii) शिकायत दर्ज करने के लिए अगली सुबह तक प्रतीक्षा की।

कोर्ट ने कहा, "शिकायतकर्ता का बयान कि वह डिनर के लिए इंद्रप्रस्थ होटल गई थी और याचिकाकर्ता शराब पीकर आया और कार में बैठ गया, भले ही इसे सच मान लिया जाए, लेकिन कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि पुलिस या जनता को क्यों सतर्क नहीं किया गया।"

शराब पीने के संबंध में ज‌िस्टिस दीक्षित ने कहा,

"शिकायतकर्ता ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि वह रात 11.00 बजे अपने कार्यालय में क्यों गई थी? उसने याचिकाकर्ता के साथ शराब पीने और उसे सुबह तक साथ रहने पर आपत्त‌ि नहीं जताई; अभियोजिका का स्पष्ट‌िकरण की अपराध के बाद वह थकी हुई थी और सो गई थी, एक भारतीय महिला के लिए शोभनीय नहीं है, बलात्कार के बाद महिलाएं ऐसे व्यवहार नहीं करती हैं।"

अदालत ने शिकायत दर्ज करने में हुई देरी पर भी विचार किया और इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि अभियोजन पक्ष ने अदालत से "शुरुआत" में संपर्क क्यों नहीं किया, जब याचिकाकर्ता को कथित रूप से पर यौन कृत्य के लिए मजबूर किया गया था।

सरकारी वकील ने तर्क दिया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप काफी गंभीर प्रकृति के थे और ऐसे अपराधियों को अग्रिम जमानत देना "समाज के लिए असुरक्षित है"।

इस दलील को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि "गंभीरता नागरिक स्वतंत्रता छीनने का एकमात्र मापदंड नहीं है।"

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा, "याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराध गंभीर प्रकृति के हैं। यकीनन यह सच है; हालांकि, गंभीरता नागरिक की स्वतंत्रता छीनने का एकमात्र मापदंड नहीं है, जबकि पुलिस की ओर से प्रथम दृष्टया कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि COVID-19 की अनदेखी नहीं कर सकता, जिससे कैदियों को भी संक्रमण होने का खतरा है, इसलिए एक लाख रुपए के पर्सनल बांड पर याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका की अनुमति दे दी।

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह पूर्व अनुमति के बिना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की सीमा नहीं छोड़ेगा; और प्रत्येक शनिवार को क्षेत्राधिकार के पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा।

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