''यह सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ हमला नहीं'' : एजी ने स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति देने से किया इनकार, याचिकाकर्ता पहुंचे एसजी के पास
LiveLaw News Network
24 Aug 2020 9:15 AM IST
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अभिनेत्री स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया है।
उन्होंने अधिवक्ता अनुज सक्सेना की तरफ से दायर आवेदन खारिज कर दिया। इस याचिका में अभिनेत्री सुश्री स्वरा भास्कर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 15 रिड विद कंटेम्प्ट प्रोसीडिंग ऑफ द सुप्रीम कोर्ट 1975 के रूल 3 के तहत मंजूरी मांगी गई थी।
एजी ने अपने आदेश में कहा कि
''पहले भाग में वक्तव्य मुझे तथ्यपूर्ण प्रतीत होता है और यह एक वक्ता की धारणा है। इस टिप्पणी में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को संदर्भित किया गया है और यह संस्था पर कोई हमला नहीं है। यह स्वयं में सर्वोच्च न्यायालय पर कोई टिप्पणी नहीं है या ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है जो सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार पर लांछन लगाता हो या उसके अधिकार को कम करता हो।''
''दूसरा कथन अस्पष्ट है और उसका किसी विशेष न्यायालय से कोई संबंध नहीं है। यह कथन इतना सामान्य है कि कोई भी इस कथन को गंभीरता से नहीं लेगा। मुझे नहीं लगता कि यह ऐसा मामला है, जिसमें न्यायालय का अपमान करने या अदालत के अधिकार को कम करने का अपराध बनता हो।''
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभिनेत्री ने अदालत का अपमान किया है क्योंकि उसने फरवरी 2020 में मुंबई में '' आर्टिस्ट अगेंस्ट कम्यूनलिजम'' नामक एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि ''अदालतें इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि वे संविधान में विश्वास करती हैं''(courts are not sure if they believe in the constitution)।
याचिका के अनुसार भास्कर ने कहा था कि '
'हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस गैरकानूनी था और उसी फैसले में मस्जिद को गिराने वाले लोगों को पुरस्कृत भी किया गया है।''
याचिका में भास्कर द्वारा दिए गए ''आपत्तिजनक बयान'' का भी उल्लेख किया गया है,जो इस प्रकार है-
''हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहाँ हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस गैरकानूनी था और उसी फैसले में उन्हीं लोगों पुरस्कृत करता हैं जिन्होंने मस्जिद को गिराया।''
''हम एक ऐसी सरकार द्वारा शासित हैं जिसे हमारे संविधान में विश्वास नहीं है। हम ऐसे पुलिस बलों द्वारा शासित हैं जो संविधान में विश्वास नहीं करते हैं। ऐसा लगता है कि हम अब ऐसी स्थिति में हैं जहां हमारी अदालतें भी इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि वे संविधान में विश्वास करती हैं या नहीं। फिर हम क्या कर सकते हैं। मुझे लगता है कि जैसा कि सभी ने कहा है कि इसका रास्ता साफ है। यह हमें आप सभी ने ही दिखाया है। आप सभी में से जो भी छात्रों द्वारा, महिलाओं द्वारा और नागरिक प्रदर्शनकारियों द्वारा किए गए विरोध का हिस्सा रहे हैं,उन सभी ने इसका विरोध किया है।''
यह आरोप लगाया गया है कि अभिनेत्री का बयान न केवल ''सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा'' था, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ विद्रोह करने के लिए जनता को उकसाने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास भी था।
याचिका में कहा गया है कि,''कथित विचारक का बयान माननीय न्यायालय की कार्यवाही और सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की अखंडता के संबंध में जनता के बीच अविश्वास की भावना को उकसाने का इरादा रखता है।'' यह याचिका उषा शेट्टी की ओर से अधिवक्ता अनुज सक्सेना, प्रकाश शर्मा और महक माहेश्वरी ने दायर की है।
एजीआई द्वारा प्रदान किए गए कारणों से असंतुष्ट होने के बाद याचिकाकर्ता नियम 3 (सी)के तहत भारत के सॉलिसिटर जनरल के पास पहुंच गया है। नियमों के तहत अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ,दोनों ही अनुमति प्रदान कर सकते हैं।
एसजी के समक्ष दायर अर्जी की काॅपी डाउनलोड करें।