नॉन-टीचिंग एंप्लॉय को सरकारी कर्मचारियों के रूप में माना और नियमित किया जाना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

5 May 2023 4:37 AM GMT

  • नॉन-टीचिंग एंप्लॉय को सरकारी कर्मचारियों के रूप में माना और नियमित किया जाना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस आई.पी. मुखर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण निदेशक सरकार के मामले में रिट अपील का फैसला करते हुए कहा कि मालदा पॉलिटेक्निक के छात्रावास/मेस के नॉन-टीचिंग एंप्लॉय को कॉलेज के सरकारी कर्मचारियों के रूप में माना जाना चाहिए और उन्हें सेवा लाभ सहित भत्ते दिए जाने चाहिए। इसके लिए खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल बनाम मदन मोहन सरकार व अन्य मामले का हवाला भी दिया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    पश्चिम बंगाल सरकार के शिक्षा विभाग की तकनीकी ब्रांच द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया कि मालदा पॉलिटेक्निक को सरकार द्वारा टेकओवर किया जा रहा है। इसके अलावा, अन्य अधिसूचना में कहा गया कि इंजीनियरिंग और तकनीकी कॉलेज से जुड़े हर मेस और हॉस्टल में एक हॉस्टल कमेटी का गठन किया जाएगा। इस समिति को संबंधित कर्मचारियों के सेवा रिकॉर्ड को बनाए रखने का काम सौंपा जाएगा।

    इसमें कहा गया कि ये कर्मचारी अपने समान वेतनमान वाले कर्मचारियों के लिए राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत महंगाई भत्ते के 50 प्रतिशत के हकदार होंगे। कर्मचारी 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे और सेवा के प्रत्येक पूर्ण वर्ष के लिए आधे महीने के वेतन की सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी के हकदार होंगे, जो अधिकतम पंद्रह महीने के अधीन होगा।

    इसके अलावा, अधिसूचना दिनांक 28 अक्टूबर 2014 के अनुसार पश्चिम बंगाल में राज्य सहायता प्राप्त यूनिवर्सिटी के हॉस्टल और मेस कर्मचारियों को संबंधित संस्थानों के नॉन-टीचिंग एंप्लॉय के रूप में माना जाना है। अन्य सेवा लाभों सहित उनके वेतन और भत्ते भी अन्य गैर-शिक्षण कर्मचारियों के समान ही होंगे।

    मदन मोहन सरकार और अन्य (इस अपील में प्रतिवादी) ने रिट याचिका दायर की, जिसमें मालदा पॉलिटेक्निक और तकनीकी एजुकेशन और प्रशिक्षण सरकार के निदेशक को पश्चिम बंगाल की (अपीलकर्ता) उन्हें कॉलेज के कर्मचारियों के रूप में मानने और उन्हें वेतनमान और अन्य भत्ते देने के लिए परमादेश की प्रकृति में आदेश देने के लिए कहा गया।

    एकल न्यायाधीश ने 21 मई, 2010 के अपने फैसले और आदेश द्वारा रिट याचिकाकर्ताओं को उस कॉलेज के सरकारी नॉन-टीचिंग समूह-डी एंप्लॉय के रूप में रखा और उस आधार पर वेतन और भत्ते के हकदार है। आदेश से व्यथित होकर अपीलार्थी ने वर्तमान अपील प्रस्तुत की।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि सीधे रिट अदालत में जाकर प्रतिवादी रिट याचिकाकर्ताओं ने अपमान में काम किया। एल चंद्र कुमार बनाम भारत संघ और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया। यह स्पष्ट किया कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के फैसले से असंतुष्ट पक्ष रिट कोर्ट जा सकता है लेकिन सीधे नहीं।

    इसके अलावा, द स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम प्रबीर चक्रवर्ती पर भरोसा करते हुए यह तर्क दिया गया कि मालदा पॉलिटेक्निक के नॉन-टीचिंग एंप्लॉय को उसी वेतनमान और भत्तों पर भुगतान किया जाना चाहिए, जो पॉलिटेक्निक कॉलेजों में शिक्षण पद नॉन-स्टेट एंप्लॉय को दिया जाता है।

    अदालत के निष्कर्ष

    यह मुद्दा कि इस अदालत को अपने रिट क्षेत्राधिकार के प्रयोग में इस मामले पर विचार नहीं करना चाहिए और यह कि इसे राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष दायर किया जाना चाहिए, अपील की अंतिम सुनवाई के चरण तक उठाया ही नहीं गया।

    अदालत ने कहा कि यह तर्क कि इस अदालत के पास रिट आवेदन को सुनने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, पर्याप्त तथ्यों के समर्थन में होना आवश्यक है लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस मामले में विपक्ष के हलफनामे में या रिट आवेदन की सुनवाई के समय इस बिंदु का आग्रह भी नहीं किया गया। यह अपील की सुनवाई के समय पहली बार लिया गया।

    तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण निदेशक, पश्चिम बंगाल सरकार बनाम चुन्नीलाल चक्रवर्ती और अन्य में इस अदालत की खंडपीठ की राय थी कि तकनीकी विभाग और अन्य विभागों द्वारा संचालित कैंटीन छात्रों को प्रदान की जाने वाली सेवा के प्रकार और गुणवत्ता में समान थीं। वे निरंतर सेवा प्रदान करने वाले सरकारी कर्मचारी थे। उन परिस्थितियों में अपील खारिज कर दी गई। अदालत ने देखा कि मौजूदा मामले के तथ्य चुन्नीलाल चक्रवर्ती और अन्य के मामले में खंडपीठ की अपील के समान हैं।

    अदालत ने वर्तमान मामले के तथ्यों को द स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम प्रबीर चक्रवर्ती के तथ्यों से अलग किया, जहां कैंटीन कर्मचारियों को संविदा कर्मचारी माना गया था।

    अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए नॉन-टीचिंग एंप्लॉय को राज्य के कर्मचारी के रूप में वेतन का दावा करने के अधिकार के साथ मालदा पॉलिटेक्निक के सरकारी कर्मचारियों के रूप में माना और नियमित किया जाना चाहिए।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने अपील खारिज कर दी।

    केस नंबर- 2016 का FMA 3477 2022 के CAN 7 के साथ

    केस टाइटल; तकनीकी शिक्षा एवं प्रशिक्षण सरकार के निदेशक, पश्चिम बंगाल बनाम मदन मोहन सरकार व अन्य।

    अपीलकर्ता के वकील; तपन कुमार मुखर्जी, प्रणब हलदर, तुली सिन्हा और प्रतिवादी 1 के लिए वकील: कमलेश भट्टाचार्य, अरुणव बनर्जी और एसके. करीब, सुश्री ममता दत्ता, सुदीपा मंडी।

    ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story