CRPF के जलवाहक ने जमा किया था फर्जी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी बरकरार रखी

Shahadat

17 Oct 2025 10:15 AM IST

  • CRPF के जलवाहक ने जमा किया था फर्जी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी बरकरार रखी

    यह कहते हुए कि सुरक्षा बलों में कोई भी भूमिका मामूली नहीं होती, दिल्ली हाईकोर्ट ने CRPF के जलवाहक को फर्जी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र जमा करने पर बर्खास्त किए जाने का फैसला बरकरार रखा।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कि वह गैर-लड़ाकू कर्मचारी था- किसी भी सुरक्षा ड्यूटी में शामिल नहीं था और बर्खास्तगी की सजा अनुपातहीन है, टिप्पणी की,

    "सुरक्षा/पुलिस संगठन में इससे ज़्यादा अपरिहार्य कुछ नहीं हो सकता। एक मामूली और मामूली-सी चूक CRPF कर्मियों, आम लोगों और देश के जीवन, अंगों और संपत्ति को खतरे में डाल सकती है।"

    याचिकाकर्ता को 2011 में इस पद पर नियुक्त किया गया, लेकिन जब उसके शैक्षिक दस्तावेजों का सत्यापन किया गया तो पता चला कि उसका मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र फर्जी था। इस प्रकार उसे 2018 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी कि धोखाधड़ी का कोई इरादा नहीं था; बल्कि, फर्जी दस्तावेज़ प्रस्तुत करना वास्तविक गलती थी, क्योंकि उसने अपनी मूल मार्कशीट खो दी थी और CRPF अधिकारियों को प्रस्तुत मार्कशीट डुप्लिकेट मार्कशीट थी, जिसे एक रिश्तेदार ने सही मानकर प्राप्त किया था।

    यह भी दावा किया गया कि डुप्लिकेट मार्कशीट में दिए गए सभी विवरण सही थे, सिवाय रोल नंबर के एक अंक और उसके द्वारा प्राप्त अंकों के।

    CRPF ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा 1993 में जारी कार्यालय ज्ञापन के खंड 10(2) का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया। कार्यालय ज्ञापन में भर्ती नियमों के अनुसार योग्यता और पात्रता का उल्लेख है और यह प्रावधान है कि यदि किसी ने प्रारंभिक भर्ती के समय गलत जानकारी दी है तो उसे सेवा में नहीं रखा जाना चाहिए।

    इसके अलावा, केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1965 के नियम 14 के अनुसार, यदि जांच में आरोप सिद्ध हो जाते हैं तो जांच की जानी चाहिए और सरकारी कर्मचारी को सेवा से हटाया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने शुरू में ही यह टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता का मामला सद्भावनापूर्ण गलती नहीं लगता, क्योंकि प्राप्त अंक किसी भी अंकपत्र के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक होते हैं। यह लगभग असंभव है कि कोई अपने प्राप्त अंकों को भूल जाए।

    आगे कहा गया,

    “इसलिए याचिकाकर्ता अपने दिल की गहराइयों में जानता था कि उसके द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा दस्तावेज़ सही दस्तावेज़ नहीं था। अगर उसका दस्तावेज़ खो गया तो उसे अधिकारियों के सामने यह तथ्य उजागर करना चाहिए था, बजाय इसके कि वह कोई ऐसा दस्तावेज़ प्रस्तुत करे जो असली न हो। यह पहलू याचिकाकर्ता के दावे से सद्भावना के तत्व को खत्म कर देता है।”

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    “किसी भी सेवा, विशेष रूप से रक्षा और सुरक्षा सेवाओं के लिए नियोक्ता और कर्मचारी के बीच एक प्रकार के विश्वास की आवश्यकता होती है। यह देश के नागरिकों के जीवन, अंगों और संपत्ति की सुरक्षा के मामले में और भी आवश्यक है।”

    इस प्रकार, याचिका खारिज कर दी गई।

    Case title: Amit Kumar v. Union of India & Ors

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