"डर के मारे किसी में खूंखार अपराधियों के खिलाफ गवाही देने की हिम्मत नहीं है": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण मामले में अतीक अहमद के सहयोगी को जमानत देने से इनकार किया

Shahadat

13 May 2022 10:09 AM GMT

  • डर के मारे किसी में खूंखार अपराधियों के खिलाफ गवाही देने की हिम्मत नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण मामले में अतीक अहमद के सहयोगी को जमानत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपहरण-जबरदस्ती वसूली मामले में पूर्व सांसद अतीक अहमद (वर्तमान में देवरिया जेल में बंद) के मुख्य सहयोगी को जमानत देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस कृष्ण पहल की खंडपीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि बदलती सामाजिक परिस्थितियों में अब यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी डर के मारे खूंखार और कठोर अपराधियों के खिलाफ गवाही देने की हिम्मत नहीं करता।

    संक्षेप में मामला

    अदालत सांसद अतीक अहमद के कथित गुर्गे गुलाम सरवर की जमानत याचिका पर विचार कर रही थी, जिस पर शिकायतकर्ता/पीड़ित से जबरदस्ती वसूली का आरोप लगाया गया है, जो अचल संपत्ति के कारोबार में लगा हुआ है।

    आवेदक ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता की कार का पीछा देवरिया जेल (जहां उसे जबरन ले जाया गया) तक किया और उसे वापस उसके घर के पास छोड़ दिया। आरोप लगाया गया कि उसने शिकायतकर्ता को बेरहमी से पीटा, जिससे उसकी उंगलियां टूट गईं और उसे कई बाहरी और आंतरिक चोटें आईं।

    एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी अतीक अहमद ने उसके त्यागपत्र सहित खाली लेटरहेड पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर प्राप्त किए और शिकायतकर्ता पर अपनी बहन के जाली हस्ताक्षर कोरे कागजों पर करने के लिए भी दबाव डाला।

    आरोपी अतीक अहमद और उसके सहयोगियों (आवेदक सहित) ने जबरदस्ती शिकायतकर्ता और उसकी बहन के डिजिटल हस्ताक्षर जबरन प्राप्त किए और इस तरह अपने सहयोगियों के नाम शिकायतकर्ता की कंपनियों में शामिल कर लिए।

    कथित तौर पर घटना दिसंबर, 2018 में देवरिया जेल परिसर के भीतर हुई, जहां अतीक अहमद अपने बेटे उमर और 10-12 अन्य लोगों के साथ मौजूद था।

    आवेदक की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि मामले में आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और मुकदमा आगे नहीं बढ़ रहा है। यहां तक ​​कि आवेदक के खिलाफ आरोप भी तय नहीं किया गया।

    यह भी तर्क दिया गया कि सीबीआई भी मुकदमे को तेजी से समाप्त करने में दिलचस्पी नहीं ले रही है, क्योंकि पिछले तीन मौकों पर सीबीआई के लोक अभियोजक अदालत में मौजूद नहीं थे और मामले को केवल इस आधार पर स्थगित कर दिया गया।

    दूसरी ओर, सीबीआई के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक और सह-आरोपी क्षेत्र के खूंखार अपराधी हैं और उनके डर से शिकायतकर्ता उनके खिलाफ गवाही देने की हिम्मत नहीं कर सका।

    इसने आगे तर्क दिया कि विषय की गंभीरता को देखते हुए मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई को सौंपी गई थी। वहीं मुख्य आरोपी अतीक अहमद को भी अहमदाबाद जेल, गुजरात में स्थानांतरित कर दिया गया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों और चार्जशीट पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता के बयानों से आवेदक की मिलीभगत अच्छी तरह से स्थापित की गई हैं।

    अदालत ने आगे कहा,

    "शिकायतकर्ता खुद पीड़ित है। ऐसे हाई प्रोफाइल अपराधियों के खिलाफ गवाही देने के लिए कुछ समय के रूप में कुछ साहस जुटा सकता है। ऐसा लगता है कि अपराध सुनियोजित योजना के बाद शिकायतकर्ता/पीड़ित को उसकी मूल्यवान संपत्ति से वंचित करने के लिए किया गया है। पेश किए गए सबूतों से आवेदक की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।"

    इस पृष्ठभूमि में मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अपराध की प्रकृति, अपराध की गंभीरता, गवाहों की धमकी की धारणा, अभियुक्तों की मिलीभगत, समाज के उच्च स्तर के लोगों की भागीदारी के साथ-साथ वकील द्वारा प्रतिद्वंदी प्रस्तुतीकरण दिया गया। पक्षकारों और मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना न्यायालय ने याचिकाकर्ता की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।

    केस का टाइटल - गुलाम सरवर बनाम यूपी राज्य [आपराधिक MISC। जमानत आवेदन नंबर - 2019 का 5491]

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 240

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