'कुरान' जैसी पवित्र किताबों में लिखी शिक्षाओं पर किसी का कॉपीराइट नहीं: दिल्ली कोर्ट ने कॉपीराइट मामला खारिज करते हुए 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया

Shahadat

3 Aug 2022 6:11 AM GMT

  • कुरान जैसी पवित्र किताबों में लिखी शिक्षाओं पर किसी का कॉपीराइट नहीं: दिल्ली कोर्ट ने कॉपीराइट मामला खारिज करते हुए 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया

    दिल्ली की एक अदालत ने "इस्लामिक स्टडीज" नामक पुस्तक के प्रकाशन पर दायर कॉपीराइट उल्लंघन का मुकदमा खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाते हुए कहा कि पवित्र पुस्तकों कुरान और हदीस या अन्य इस्लामी पुस्तकों में लिखी गई शिक्षाओं पर किसी का कॉपीराइट नहीं हो सकता।

    तीस हजारी कोर्ट के जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक) संजीव कुमार अग्रवाल ने कहा:

    "कुछ सामग्री पवित्र पुस्तकों कुरान और हदीस में दी गई शिक्षा के समान होनी चाहिए। इस्लाम धर्म से संबंधित अन्य धार्मिक पाठ इस्लाम पर शिक्षण के बारे में सभी पुस्तकों में समान होने के लिए बाध्य हैं। मेरे विचार में पवित्र पुस्तकों कुरान और हदीस या अन्य इस्लामी पुस्तकों में लिखी गई शिक्षाओं पर किसी का कॉपीराइट नहीं हो सकता।"

    यह मुकदमा शहर के दरियागंज में स्थित इस्लामिक किताबों के प्रकाशक और निर्यातक इस्लामिक बुक सर्विस (पी) लिमिटेड द्वारा दायर किया गया था इसमें दावा किया गया कि मौलवी अब्दुल अजीज की किताबों की सीरीज "इस्लामी तालीमत" नामक साहित्यिक कृति के मालिक और लेखक ने बिना शर्त कंपनी को अपना कॉपीराइट सौंपा था और अपने काम की पांडुलिपि भी सौंप दी थी।

    वादी का यह मामला था कि पुस्तक "स्टडीज इन इस्लाम" ग्रेड एक से कक्षा आठ तक प्रकाशक द्वारा 1992 लगातार प्रकाशित की जा रही है। इसे दिल्ली के साथ-साथ विदेशों में भी बड़े पैमाने पर बेचा जाता है।

    वादी कंपनी ने आरोप लगाया कि मई, 2018 में यह पता चला कि प्रतिवादी अब्दुर रऊफ नजीब बकली ने मौलवी अब्दुल अजीज के साहित्यिक कार्य को "इस्लामिक स्टडीज ग्रेड I से ग्रेड 5" के नाम और शैली में प्रकाशित करना शुरू किया।

    इस प्रकार वादी कंपनी द्वारा यह दावा किया गया कि प्रतिवादी ने मौलवी अब्दुल अजीज के उक्त पुस्तकों और साहित्यिक कार्यों की सामग्री को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। यह भी दावा किया गया कि समान पुस्तकों और उसकी सामग्री के संबंध में वादी के व्यापारिक नाम और कॉपीराइट का अवैध तरीके से उपयोग किया गया, जिससे वादी कंपनी के कॉपीराइट का उल्लंघन हुआ।

    वादी का मामला यह था कि प्रतिवादी ने "स्टडीज इन इस्लाम" पुस्तक "इस्लामिक स्टडीज" प्रकाशित करके अपने कॉपीराइट का उल्लंघन किया।

    यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी खरीददारों को यह विश्वास देकर धोखा देने की कोशिश कर रहा है कि वे वादी द्वारा मौलवी अब्दुल अजीज द्वारा लिखित वास्तविक पुस्तकें खरीद रहे हैं। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के खिलाफ उक्त किताबों को प्रकाशित करने, बेचने और वितरित करने पर स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की गई।

    वादी ने प्रतिवादी को वचन पत्र प्रस्तुत करने की भी मांग की कि वह समान कॉपीराइट का उपयोग नहीं करेगा। साथ ही दस लाख रुपये के नुकसान के साथ खातों के प्रतिपादन के लिए डिक्री की भी मांग की।

    दूसरी ओर प्रतिवादी ने इस बात से इनकार किया कि "इस्लामी तालीमात" मौलवी अब्दुल अजीज की साहित्यिक कृति है और उसने वादी को उसी का कॉपीराइट सौंपा।

    इस बात से भी इनकार किया गया कि वादी कंपनी 1992 से लगातार 'इस्लामिक स्टडीज' प्रकाशित कर रही है। इसे भारत और भारत के बाहर व्यापक पैमाने पर इसे बेचा गया है।

    कोर्ट का विचार था कि वादी कंपनी के पक्ष में "इस्लामिक स्टडीज ग्रेड 1 से ग्रेड VIII" के कॉपीराइट के विशिष्ट असाइनमेंट के बिना प्रतिवादी द्वारा कॉपीराइट के उल्लंघन के लिए मुकदमा दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।

    इस बात की जांच करते हुए कि क्या प्रतिवादी ने अपनी पुस्तक "इस्लामिक स्टडीज" में "इस्लाम ग्रेड I में अध्ययन" पुस्तक से सामग्री की नकल की थी, न्यायालय ने इस प्रकार कहा:

    "इस्लाम ग्रेड I और इस्लामिक स्टडीज ग्रेड I से ग्रेड V तक की पूरी किताब साक्ष्य के दौरान रखी गई हैं। वादी और प्रतिवादी की पुस्तकों की तुलना न तो वादी में या न ही PW1 के साक्ष्य में दिखाने के लिए दी गई। यह हो सके कहा जा सकता है कि प्रतिवादी ने वादी पुस्तक की प्रतिलिपि बनाई है और इस प्रकार 'स्टडीज इन इस्लाम' पुस्तक के कॉपीराइट कार्य का उल्लंघन किया।"

    कोर्ट ने वादी के वकील द्वारा इस तर्क को खारिज कर दिया कि 'इस्लामिक स्टडीज' और 'स्टडीज इन इस्लाम' दोनों किताबों के नाम लगभग समान हैं, क्योंकि इसमें 'इस्लाम' और 'स्टडीज' शब्द शामिल है।

    कोर्ट ने कहा:

    "मेरे विचार में "इस्लाम या स्टडीज" शब्द पर कोई कॉपीराइट नहीं हो सकता। वादी की पुस्तक का नाम 'स्टडीज इन इस्लाम' है जबकि प्रतिवादी की पुस्तक का नाम 'इस्लामिक स्टडीज' है। दोनों किताबों के कवर पेज की कलर प्रिंटिंग भी काफी अलग है।"

    यह देखते हुए कि "इस्लामिक स्टडीज" पुस्तक भी मौलवी अब्दुल अजीज द्वारा लिखी गई है, जिन्होंने वादी की पुस्तक "स्टडीज इन इस्लाम" भी लिखी थी, कोर्ट का विचार था कि यह कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं हो सकता।

    अदालत ने कहा,

    "निस्संदेह प्रतिवादी ने कोई असाइनमेंट डीड/या लाइसेंस भी प्रस्तुत नहीं किया है जिसे मौलवी अब्दुल अजीज ने "इस्लामिक स्टडीज" पुस्तक प्रकाशित करने की अनुमति दी हो। हालांकि, भले ही मुझे लगता है कि प्रतिवादी को मौलवी अब्दुल अजीज द्वारा साहित्यिक कार्य "इस्लामिक स्टडीज" में कॉपी राइट नहीं सौंपा गया हो और प्रतिवादी उनके पूर्व अधिकार के बिना पुस्तकों को प्रकाशित कर रहा है। इसलिए मामले में मौलवी अब्दुल अजीज प्रतिवादी के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं न कि वादी।"

    अदालत ने इस प्रकार माना कि वादी कंपनी यह साबित करने में "बुरी तरह विफल रही" कि उसका 'इस्लामिक स्टडीज' पुस्तक पर कोई कॉपीराइट है या प्रतिवादी ने 'इस्लामिक स्टडीज' पुस्तक प्रकाशित करके वादी की पुस्तक के कॉपीराइट का उल्लंघन किया है।

    अदालत ने आदेश दिया,

    "मैंने माना कि वादी किसी राहत का हकदार नहीं है और वादी का मुकदमा 50,000 रुपये के जुर्माना के साथ खारिज किया जाता है, जिसे वादी प्रतिवादी को उसके द्वारा किए गए शुल्क और खर्च के लिए भुगतान करेगा।"

    केस टाइटल: इस्लामिक बुक सर्विस बनाम अब्दुर रऊफ नजीब बकाली

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