कॉलेज में न शिक्षक, न प्राचार्य; कक्षाओं में खिलौने थे: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठवाड़ा ‌यू‌निवर्सिटी की संबद्धता वापस लेने के फैसले को बरकरार रखा

Avanish Pathak

8 Sept 2023 8:41 PM IST

  • कॉलेज में न शिक्षक, न प्राचार्य; कक्षाओं में खिलौने थे: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठवाड़ा ‌यू‌निवर्सिटी की संबद्धता वापस लेने के फैसले को बरकरार रखा

    Bombay High Court 

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में शैक्षणिक और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी के कारण श्री तुलजा भवानी कला और विज्ञान कॉलेज, औरंगाबाद की संबद्धता वापस लेने के मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी के फैसले को बरकरार रखा।

    औरंगाबाद में जस्टिस मंगेश एस पाटिल और जस्टिस शैलेश पी ब्रह्मे की खंडपीठ ने यूनिवर्सिटी के फैसले के खिलाफ एक रिट याचिका में कहा कि कॉलेज में गंभीर खामियां थीं और यूनिवर्सिटी ने संबद्धता वापस लेने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया था।

    कोर्ट ने कहा,

    “प्रबंधन में विवाद आजकल आम बात हो गई है। लेकिन इसका असर कॉलेज पर नहीं पड़ेगा। शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचागत सुविधाएं आवश्यक हैं। वर्तमान मामला बड़े पैमाने पर गंभीर चूक को दर्शाता है, जो याचिकाकर्ता को कॉलेज चलाने से अयोग्य घोषित करने के लिए पर्याप्त पाया गया है। हम प्रतिवादी संख्या 2/यूनिवर्सिटी की ओर से संबद्धता वापस लेने की कठोर कार्रवाई में औचित्य पाते हैं।”,

    डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद की संबद्धता समिति ने 23 अगस्त, 2021 को अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में कॉलेज से जुड़े कई मुद्दों पर प्रकाश डाला था, जिसके कारण 2022 में संबद्धता वापस ले ली गई। इनमें शिक्षकों, लाइब्रेरियन और प्रिंसिपल की कमी, कक्षाओं में अव्यवस्थित ब्लैक बोर्ड, कम्‍प्यूटर सुविधाओं की कमी, फिजिक्स, केमे‌स्ट्री और जूलॉजी लैब्स में उपकरण की कमी, और किताबों के अपर्याप्त संग्रह जैसी कमियों के साथ-साथ लाइब्रेरी में उचित रूप से बनाया गया रजिस्टर भी मौजूद नहीं था।

    समिति ने यह भी बताया कि कक्षाओं में प्राथमिक विद्यालय के फर्नीचर और खिलौनों सजाए गए थे। इसके अलावा, समिति ने पाया कि कॉलेज में पेयजल की अपर्याप्त सुविधाएं, जिम, हास्टल , कैंटीन, कोई महिला कक्ष, खेल का मैदान या वनस्पति उद्यान और बायो-मीट्रिक प्रणाली नहीं थी।

    मामले में याचिकाकर्ता निसर्गदीप शिक्षण प्रसारक मंडल एक शैक्षणिक संस्थान है, जो 2009 से स्थायी गैर-अनुदान आधार पर कॉलेज का संचालन कर रहा है।

    मराठवाड़ा विश्वविद्यालय ने 2009 से वार्षिक निरीक्षण के साथ कॉलेज से संबद्धता बढ़ा दी थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कॉलेज नवीकरण के लिए आवश्यक मानकों को पूरा करता है।

    याचिकाकर्ता ने यूनिवर्सिटी के फैसले को चुनौती दी और संबद्धता बहाल करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग की। यूनिवर्सिटी के निर्णय का समर्थन करते हुए बाबूराव रामदास पवार नामक व्यक्ति की ओर से हस्तक्षेप के लिए एक आवेदन दायर किया गया था।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि हाल ही में संस्थान के प्रबंधन में विवाद हो गया है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि छह इस्तीफा देने वाले सदस्यों वाले प्रतिद्वंद्वी समूह ने कॉलेज के सुचारू कामकाज में बाधा उत्पन्न की, बैंक खाते बंद किए गए और प्रबंधन के अधिकार पर विवाद पैदा किया।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिद्वंद्वी समूह ने कॉलेज के लॉगिन क्रेडेंशियल प्राप्त कर लिए, जिसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रबंधन विवादों के कारण प्रिंसिपल सहित प्रमुख स्टाफ सदस्यों की भर्ती रुकी हुई थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संबद्धता वापस लेने का यूनिवर्सिटी का निर्णय मनमाना, अवैध और प्रतिद्वंद्वी समूह की तुच्छ शिकायतों से प्रभावित था। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि निरीक्षण रिपोर्ट उसके साथ कभी साझा नहीं की गई।

    यूनिवर्सिटी ने कहा कि उसने महाराष्ट्र सार्वजनिक यूनिवर्सिटी अधिनियम, 2016 की धारा 120 में उल्लिखित वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया। यूनिवर्सिटी ने दावा किया कि यह निर्णय COVID-19 महामारी से पहले पहचानी गई गंभीर कमियों के जवाब में लिया गया था। इसने प्रस्तुत किया कि उसने कॉलेज में कमियों को रेखांकित करते हुए याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस दिया और याचिकाकर्ता का जवाब मिलने के बाद वापसी की कार्यवाही शुरू की।

    अदालत ने याचिकाकर्ता संगठन के भीतर प्रबंधन विवादों पर ध्यान नहीं दिया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि उसके रिट क्षेत्राधिकार में उसकी भूमिका यूनिवर्सिटी की निर्णय लेने की प्रक्रिया की वैधता का आकलन करने तक सीमित थी, क्योंकि यूनिवर्सिटी शैक्षणिक मानकों की विशेषज्ञ है।

    अदालत ने कहा कि यूनिवर्सिटी को संबद्ध कॉलेजों का निरीक्षण करने और यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि संबद्धता की शर्तें पूरी की गई हैं या नहीं। इसने महाराष्ट्र सार्वजनिक यूनिवर्सिटी अधिनियम की धारा 108(1) पर भी प्रकाश डाला, जो अनिवार्य करता है कि कॉलेज का प्रबंधन आवश्यक शैक्षणिक मानकों को बनाए रखे। अदालत ने कहा कि इन मानकों को बनाए रखने के लिए बुनियादी सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं। अदालत ने कहा कि यदि कोई कॉलेज यूनिवर्सिटी के हितों या स्थापित मानकों के लिए हानिकारक तरीके से संचालित होता है, तो संबद्धता वापस ली जा सकती है।

    अदालत ने पाया कि संबद्धता नवीनीकरण के लिए कॉलेज का वार्षिक निरीक्षण किया गया था, जिसमें दिसंबर 2019 की शुरुआत में ही कमियां नोट कर ली गई थीं। अदालत ने कहा, बाद में कारण बताओ नोटिस और जवाब से पता चलता है कि याचिकाकर्ता को इन मुद्दों को संबोधित करने का अवसर दिया गया था।

    अदालत ने माना कि विश्वविद्यालय ने वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया है। इसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालय ने छात्रों की भलाई को ध्यान में रखा और उन्हें पास के कॉलेजों में समायोजित किया।

    इस प्रकार, अदालत ने रिट याचिका खारिज कर दी और हस्तक्षेप आवेदन का निपटारा कर दिया।

    केस टाइटलः निसर्गदीप शिक्षण प्रसारक मंडल बनाम महाराष्ट्र राज्य

    केस नंबरः रिट पीटिशन नंबर 9809/2022



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