'किसी भी छात्र को भुगतान न करने पर निष्कासित नहीं किया जा सकता': मद्रास हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों को किश्तों में 85 प्रतिशत शुल्क लेने की अनुमति दी

LiveLaw News Network

31 July 2021 4:30 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निजी गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों को चालू शैक्षणिक वर्ष यानी 2021-22 के लिए देय वार्षिक स्कूल शुल्क का 85 प्रतिशत उन माता-पिता से छह किस्तों में लेने की अनुमति दी है, जिन्हें महामारी के दौरान किसी भी प्रकार का वित्तीय नुकसान नहीं हुआ है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी छात्र को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने या परीक्षा देने से नहीं रोका जाएगा या फीस का भुगतान न करने के कारण संस्थान से निष्कासित नहीं किया जाएगा।

    न्यायमूर्ति डी कृष्णकुमार की पीठ ने 20 अप्रैल, 2020 के तमिलनाडु सरकार के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर यह फैसला सुनाया है। तमिलनाडु सरकार ने राज्य में निजी स्कूलों और कॉलेजों (अनएडेड) को छात्रों या अभिभावकों को शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के लिए शुल्क और लॉक डाउन अवधि के दौरान अन्य लंबित बकाया का भुगतान करने के लिए मजबूर करने से रोक दिया था। कुछ अभिभावकों ने यह आरोप लगाते हुए याचिकाएं भी दायर की थी कि स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएं संचालित किए बिना या अन्य सेवाएं दिए बिना ही 100 प्रतिशत शुल्क एकत्र कर लिया है।

    कोर्ट ने इससे पहले 17 जुलाई को एक अंतरिम आदेश जारी किया था,जिसमें गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थानों को ट्यूशन फीस का 40 प्रतिशत एकत्रित करने या जमा करवाने का निर्देश दिया था।

    अवलोकनः

    दोनों पक्षों की प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद, कोर्ट ने कहा कि चल रही महामारी के कारण, न केवल छात्र पीड़ित हैं बल्कि निजी स्कूल भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''निजी स्कूल विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, इनमें से कई को अपने कर्मचारियों को भुगतान करना भी मुश्किल हो रहा है और कुछ को अपने अन्य स्टाफ सदस्यों के अलावा, सह-पाठ्यचर्या और अतिरिक्त पाठ्येतर गतिविधियों जैसे खेल और कला के अपने शिक्षकों की सेवाओं को अस्थायी रूप से समाप्त करना पड़ा है। कई आदेश पारित करते हुए स्कूलों को निर्देश दिया गया है कि वह माता-पिता से केवल ट्यूशन फीस लें और परिवहन शुल्क, विकास शुल्क आदि न मांगे।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि कई स्कूलों ने कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया था कि उन्हें ट्यूशन फीस जमा करना भी मुश्किल हो रहा है और आॅनलाइन कक्षाओं के संचालन से खर्च बढ़ गया है। स्कूलों को उन शिक्षकों को लैपटॉप और नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध करवानी पड़ रही है जिनके पास ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं है। इस प्रकार सीमित धन वाले स्कूलों को अपने स्कूलों को चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है।

    यह कहने की जरूरत नहीं है कि सीमित धन वाले स्कूलों को इस समय अपने स्कूल को चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है।

    माता-पिता पर आए वित्तीय बोझ को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा,

    "कोरोना महामारी माता-पिता के लिए आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण रही है, क्योंकि वे लॉकडाउन के कारण या अन्य कारणों जैसे आय की कमी, बेरोजगारी, लॉकडाउन प्रतिबंध के चलते व्यवसायों के बंद होने के कारण देय तिथियों पर शुल्क का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए माता-पिता फीस में रियायत की मांग करते हैं क्योंकि कक्षाएं ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं।''

    इसके अलावा 'इंडियन स्कूल, जोधपुर व अन्य बनाम राजस्थान राज्य व अन्य' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा रखा गया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य के अधिकारियों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की फीस में कमी का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।

    जारी किए गए निर्देशः

    न्यायालय ने संबंधित हितधारकों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए।

    1. संबंधित निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के याचिकाकर्ता/स्कूल प्रबंधन शैक्षणिक वर्ष 2021-2022 के लिए वार्षिक स्कूल फीस (शैक्षणिक वर्ष 2019-2020 के लिए निर्धारित शुल्क के आधार पर) का 85 प्रतिशत उन छात्रों/माता-पिता से छह किस्तों में जमा करवाएंगे, जिन्हें महामारी की अवधि के दौरान आय का नुकसान नहीं हुआ है, बशर्ते उन्होंने ऑनलाइन कक्षाएं संचालित की हों। यदि छात्रों ने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए पहली किस्त का भुगतान कर दिया है, तो शेष राशि का भुगतान किश्तों के रूप में किया जाएगा और अंतिम किस्त का भुगतान 1 फरवरी, 2022 को या उससे पहले किया जाना है।

    2. जिन छात्रों/अभिभावकों को महामारी की अवधि के दौरान आय का नुकसान हुआ है, उन्हें स्कूल प्रबंधन को एक आवेदन देना होगा, जो उनके अनुरोध पर विचार करें और फीस का 75 प्रतिशत ही जमा करवाएं।

    3. यदि कोई अभिभावक/वार्ड लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी, व्यवसाय बंद होने के कारण शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए वार्षिक शुल्क के भुगतान के लिए और रियायत चाहते हैं, तो वे स्कूल प्रबंधन को एक अभ्यावेदन दें, जो हर मामले के तथ्यों के आधार पर सहानुभूतिपूर्वक इन अभ्यावेदन पर विचार करेंगे।

    4. वर्तमान शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए शैक्षणिक वर्ष 2021-2022 के लिए छात्रों को किसी भी परिस्थिति में स्कूल से हटाया या निकाला नहीं जाएगा।

    5. किसी भी छात्र को शैक्षणिक वर्ष 2021-2022 के लिए किसी भी परिस्थिति में ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने से नहीं रोका जाएगा।

    6. गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थान भी शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के लिए देय फीस का बकाया किश्तों में जमा करवाएं।

    7. यदि किसी छात्र ने पहले ही बकाया सहित पूरी फीस का भुगतान कर दिया है, तो यह शुल्क की वापसी के लिए दावा करने का आधार नहीं होगा।

    8. फीस का भुगतान न करने के आधार पर स्कूल प्रबंधन किसी भी छात्र के परीक्षा परिणाम को नहीं रोकेगा। यदि ऐसी कोई कार्रवाई शैक्षणिक अधिकारियों के संज्ञान में लाई जाती है, तो इसे गंभीरता से लिया जाए और संबंधित संस्थानों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।

    9. यदि फीस में रियायत के संबंध में माता-पिता/वार्ड और स्कूल प्रबंधन के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो या तो स्कूल प्रबंधन के रेफरेंस पर या छात्रों/अभिभावकों के आवेदन पर, संबंधित जिलों के जिला शिक्षा अधिकारी विचार करें और आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर उचित निर्णय लें।

    10. स्कूलों के लिए यह ओपन होगा कि वे अपने छात्रों को और अधिक रियायतें दें या रियायत देने के लिए एक अलग पैटर्न तैयार करें।

    11. शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के दौरान किसी भी परिस्थिति में छात्रों को संस्थानों से हटाया/निकाला नहीं जाए और इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी क्षेत्राधिकार शैक्षिक अधिकारियों की है।

    12. यदि छात्रों को किसी विशेष स्कूल में शिक्षा जारी रखने में कोई कठिनाई आती है, तो वे अपने क्षेत्राधिकार शैक्षिक अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं, जो उक्त छात्रों को पास के सरकारी/निगम/नगरपालिका/पंचायत स्कूलों में दाखिला दिलवाने के लिए आवश्यक व्यवस्था करेंगे।

    13. असाधारण परिस्थितियों के तहत एक विशेष मामले के रूप में, यदि बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बनाए 25 प्रतिशत कोटे में से शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए कोई खाली सीट उपलब्ध है तो राज्य सरकार शुल्क के लिए राशि स्वीकृत करने पर भी विचार कर सकती है(पात्रता मानदंड के अधीन)।

    14. सीबीएसई स्कूलों का प्रबंधन इस आदेश की एक प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर शैक्षणिक वर्ष 2021-2022 के लिए एकत्र की जाने वाली फीस का विवरण अपनी-अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करें।

    15. फीस के निर्धारण के संबंध में विवाद के मामले में, स्कूल प्रबंधन या संबंधित छात्र/अभिभावक अपनी शिकायतों के निवारण के लिए शुल्क निर्धारण समिति से संपर्क कर सकते हैं।

    16. जो छात्र स्कूल छोड़ना चाहते हैं वे संबंधित स्कूलों को सूचित कर सकते हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि शिक्षा विभाग पहले ही एक सर्कुलर जारी कर चुका है कि स्कूल छात्रों के दाखिले के लिए स्थानांतरण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पर जोर नहीं दे सकते हैं। उक्त रिक्तियों में नए छात्रों को प्रवेश देने के लिए स्कूल प्रबंधन के लिए यह केवल एक सूचना है।

    17. राज्य सरकार कर्मचारियों के संवर्ग में रिक्तियों को भरने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए और शुल्क निर्धारण समिति के प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करे। उक्त कवायद को सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग, तमिलनाडु सरकार द्वारा इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर पूरा किया जाए।

    उपरोक्त निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार संशोधित सर्कुलर जारी करे और इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर उस संबंध में सभी स्कूलों को सूचित किया जाए।

    केस का शीर्षकः फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट स्कूल्स इन तमिलनाडु बनाम सरकार के मुख्य सचिव व अन्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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