पेश होने के बाद भी परित्याग के आरोपों का खंडन नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने तलाक के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज की
Avanish Pathak
12 April 2023 4:05 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक महिला की याचिका को रद्द कर दिया। फैमिली कोर्ट ने परित्याग के आधार पर तलाक की अनुमति दी और पत्नी याचिका में पति की ओर से दिए गए बयानों का भी जवाब नहीं दे पाई।
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने कहा, "यह सामान्य कानून है कि यदि किसी गवाह से दूसरे पक्ष जिरह नहीं करता तो उसकी गवाही को स्वीकार कर लिया गया माना जाता है।"
फैमिली कोर्ट ने 18 सिंतंबर 2016 के आदेश के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईबी) के तहत प्रतिवादी/पति की ओर से दायर याचिका को अनुमति दी थी और दोनों पक्षों के बीच विवाह को भंग कर दिया था। फैसले और डिक्री के खिलाफ महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
मामले में पति ने 29 अक्टूबर 2014 को याचिका दायर की थी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ इस आधार पर तलाक की मांग की थी कि 2010 में शादी के पांच महीने बाद से ही अपीलकर्ता/पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया। तब से याचिका की प्रस्तुति की तारीख से पहले की तीन साल की निरंतर अवधि के लिए दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं।
महिला को दो सितंबर, 2014 को एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें उसे तलाक के लिए सहमति देने के लिए कहा गया था। हालांकि, अपीलकर्ता/पत्नी ने उपरोक्त नोटिस का जवाब नहीं दिया। जिसके बाद, परित्याग के आधार पर विघटन का आदेश मांगा गया था।
महिला को कार्यवाही का नोटिस दिया गया और एक वकील को नियुक्त किया गया। इसके बाद भी अपीलार्थी/पत्नी की ओर से न तो कोई आपत्ति दाखिल की गई और न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया गया। जिसके बाद निचली अदालत ने आक्षेपित आदेश पारित किया।
अपील में महिला ने दावा किया कि उसे 25.07.2014 को वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया था। इस प्रकार यह प्रार्थना की गई कि मामला फैमिली कोर्ट को प्रेषित किया जाए और अपीलकर्ता/पत्नी को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाए।
निष्कर्ष
रिकॉर्ड को देखने पर पीठ ने कहा कि माना जाता है कि अपीलकर्ता/पत्नी को कार्यवाही का नोटिस दिया गया था और उन्होंने वकील को नियुक्त किया था। एडवोकेट ने फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में भाग लिया। तथापि, अपीलकर्ता/पत्नी की ओर से न तो कोई आपत्ति दर्ज कराई गई और न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया गया।
कोर्ट ने कहा,
"अधिनियम की धारा 13 के तहत याचिका में किए गए किसी भी खंडन के अभाव में और साथ ही यह तथ्य कि प्रतिवादी/ पति को जिरह के अधीन नहीं किया गया था, फैमिली कोर्ट ने उचित निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता/पत्नी ने याचिका की प्रस्तुति के दो साल पहले से लगातार दो साल की अवधि के लिए प्रतिवादी/पति को छोड़ दिया है।
यह आयोजित किया गया, "इसलिए परित्याग के लिए आधार विधिवत साबित हुआ है। फैमिली कोर्ट की ओर से दिए गए निष्कर्ष में इस कोर्ट के दखल की जरूरत नहीं है।"
केस टाइटल: ABC और XYZ
केस नंबर : MISCELLANEOUS FIRST APPEAL NO.4290 OF 2016
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 148