'अंतिम वर्ष के छात्रों और मध्यवर्ती सेमेस्टर के छात्रों के बीच अंतर करने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं'-कर्नाटक हाईकोर्ट में यूजीसी के 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के निर्देश को चुनौती

LiveLaw News Network

30 July 2020 12:21 PM GMT

  • अंतिम वर्ष के छात्रों और मध्यवर्ती सेमेस्टर के छात्रों के बीच अंतर करने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं-कर्नाटक हाईकोर्ट में यूजीसी के 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के निर्देश को चुनौती

    बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्रों ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया है। यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया था कि वह अपने अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित करवा लें।

    छात्रों ने अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने की मांग की है। साथ ही मांग की है कि उनको भी मध्यवर्ती सेमेस्टर के छात्रों के लिए अपनाई जाने वाली वैकल्पिक मूल्यांकन योजना के अनुसार पदोन्नत किया जाए।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 6 जुलाई, 2020 को जारी अधिसूचना में विश्वविद्यालयों और संस्थानों को परीक्षा आयोजित करवाने की अनुमति दे दी थी। साथ ही विश्वविद्यालयों को आदेश दिया था कि वह अनिवार्य तौर पर यूजीसी के दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं आयोजित करवाएं।

    उपर्युक्त अधिसूचना के बाद यूजीसी ने टर्मिनल सेमेस्टर के छात्रों के संबंध में विश्वविद्यालय परीक्षाओं के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए थे। जिनके तहत विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया था कि वह परीक्षाएं ऑफलाइन (पेन और पेपर)/ऑनलाइन/ मिश्रित (दोनों,ऑफलाइन व ऑनलाइन) मोड में आयोजित करवाएं।

    इन्हीं को छात्रों ने निम्नलिखित आधारों पर चुनौती दी है-

    1) लाॅकडाउन के कारण याचिकाकर्ताओं की शिक्षा बुरे तरीके से प्रभावित हुई है।

    उन्होंने प्रस्तुत किया है कि उनके पाठ्यक्रम का एक बड़ा हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत अभी अधूरा रह गया है क्योंकि उनके विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन मोड में किसी भी तरह की कक्षाएं ''मुश्किल से ही'' आयोजित करवाई हैं और कुछ विषयों के लिए तो कोई भी ऑनलाइन कक्षा आयोजित नहीं करवाई गई है।

    कहा गया है कि,''यह स्पष्ट है कि अंतिम सेमेस्टर के संबंध में निर्धारित पाठ्यक्रम को याचिकाकर्ताओं को संतोषजनक तरीके से पढ़ाया नहीं गया है और न ही उनको किसी अन्य तरीके से इस तरह से तैयार किया गया कि वह उसके आधार पर परीक्षा दे सकें।''

    आगे यह भी कहा गया है कि जो कक्षाएं ऑनलाइन आयोजित की गई थी वो भी इस बात पर निर्भर थी कि (ए) छात्रों की इंटरनेट और तकनीकी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच है या नहीं (बी) शिक्षक,तकनीकी उपकरणों को कितने अच्छे से प्रयोग कर पाते हैं।

    याचिका में कहा गया है कि,''अगर यह भी मान लिया जाए कि शिक्षक तकनीकी उपकरणों से अच्छे से वाकिफ थे,उसके बावजूद भी आॅनलाइन कक्षाओं तक पहुंच इंटरनेट की पहुंच पर निर्भर करती है और वह सभी छात्रों के पास नहीं है। याचिकाकर्ताओं को खुद अपने घरों से इंटरनेट का प्रयोग करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है।''

    2) मूल्यांकन के मोड के आधार पर मध्यवर्ती सेमेस्टर के छात्रों व अंतिम वर्ष के छात्रों में अंतर करने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है

    दलील दी गई है कि यूजीसी ने टर्मिनल सेमेस्टर के छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से परीक्षाएं आयोजित करवाने का निर्देश दिया है जबकि इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों को इससे छूट दी गई है और उनका मूल्यांकन करने के लिए एक अलग योजना की अनुमति दे दी है। यूजीसी की यह शर्त , संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिली समानता की गारंटी के सिद्धांत के खिलाफ है।

    यह दलील दी गई है कि आयोग एक ''गलत धारणा'' पर आगे बढ़ा है कि केवल अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षाएं आयोजित करना आवश्यक है ताकि ''क्षमता, प्रदर्शन और विश्वसनीयता का प्रतिबिंब बन सकें,जो वैश्विक स्वीकृति के लिए जरूरी है।''

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अकेले अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाएं ही डिग्री के मूल्य और अखंडता का निर्धारण नहीं करती हैं। बल्कि, यह पिछले सभी सेमेस्टर में एक छात्र द्वारा किया गया संयुक्त प्रयास व प्रदर्शन है।

    याचिका में कहा गया है, ''उक्त वर्गीकरण के लिए कोई तर्कसंगत आधार नहीं है और न ही कोई ऐसा उद्देश्य है,जिसे हासिल करने के लिए मध्यवर्ती सेमेस्टर और अंतिम सेमेस्टर के छात्रों की ग्रेडिंग के लिए अलग-अलग तरीके अपनाएं जाएं।''

    3) COVID संक्रमण के संपर्क में आने का खतरा

    छात्रों ने बताया है कि अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाओं में शामिल होने के लिए छात्रों को अपने घरों से बाहर निकलना होगा। कुछ छात्रों को एक शहर से दूसरे शहर भी आना पड़ेगा और किराए के आवास में रहना पड़ेगा।

    याचिकाकर्ताओं को डर है कि इस कारण से छात्रों के साथ-साथ अन्य हितधारकों जैसे कि पर्यवेक्षक, परीक्षक आदि के लिए भी एक बड़ा जोखिम होगा।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''अधिकांश विश्वविद्यालय/संस्थान महानगरीय शहरों में स्थित हैं। जहां पर इस समय COVID19 पाॅजिटिव मामलों की संख्या काफी बढ़ी हुई है। जिस तरीके से मामले सामने आ रहे हैं,उनको देखते हुए इनमें आगे भी वृद्धि होने की संभावना है। ऐसे में छात्रों का इन इलाकों में आना उनके लिए जोखिम भरा ही है क्योंकि वायरस के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाएगी।''

    दलील दी है कि-

    ''सितंबर 2020 के अंत तक अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाएं खत्म करवाने का जनादेश निर्विवाद रूप से छात्रों, कर्मचारियों और अन्य हितधारकों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करेगा और ऐसे छात्रों के लिए यात्रा,आवास व सुरक्षा की आवश्यकता के कारण यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले उनके अधिकारों का उल्लंघन करेगा।

    इसके अलावा, अगर फाइनल सेमेस्टर की परीक्षाओं को लॉकडाउन या वायरस के फैलने के कारण स्थगित कर दिया जाता है तो छात्र अनिश्चितता की स्थिति में आ जाएंगे, जो उनके रोजगार और शैक्षणिक संभावनांओ को बाधित करेगा।''

    इसलिए उन्होंने आग्रह किया है कि अंतिम वर्ष के छात्रों का मूल्यांकन पिछले प्रदर्शन के अनुसार किया जाए और उन्हें भी इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों की तरह ही वैकल्पिक मूल्यांकन योजना के आधार पर पदोन्नत कर दिया जाए।

    गौरतलब है कि मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहले से ही विचाराधीन है।

    सोमवार को शीर्ष अदालत के समक्ष चार याचिकाएं सूचीबद्ध की गई थी। जिनमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से 6 जुलाई को जारी अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी। वहीं यूजीसी के उन दिशानिर्देश को भी रद्द करने की मांग की गई थी,जिनके तहत 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं आयोजित करवाना अनिवार्य किया गया था।

    याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि यूजीसी की तरफ से सभी राज्य सरकारों को अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वह पिछले प्रदर्शन के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को उत्तीर्ण कर सकें।

    जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश दिया था कि वे 29 जुलाई तक सभी याचिकाओं के संबंध में आयोग की तरफ से जवाब दायर करें।

    पुणे के एक प्रोफेसर ने इस मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किया है। जिसने तर्क दिया है कि यूजीसी के दिशानिर्देश छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं। वहीं छात्रों, कर्मचारियों और अन्य सदस्यों के जीवन के लिए कोई खतरा नहीं है क्योंकि आयोग ने ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।

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