ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के खिलाफ फिलहाल कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी, एडवोकेट जनरल ने कर्नाटक हाईकोर्ट को मौखिक आश्वासन दिया

LiveLaw News Network

29 Oct 2021 6:58 AM GMT

  • ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के खिलाफ फिलहाल कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी, एडवोकेट जनरल ने कर्नाटक हाईकोर्ट को मौखिक आश्वासन दिया

    Karnataka High Court

    एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग के नवदगी ने गुरुवार को अदालत को मौखिक आश्वासन दिया कि ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

    जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ के समक्ष मौखिक बयान दिया गया। पीठ कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम 2021 की संवैधानिक वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी। अधिनियम के जर‌िए राज्य सरकार ने ऑनलाइन जुए और सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया है। अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन साल की कैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा है।

    एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने आज भी अपनी दलीलें जारी रखीं। आरएमडी चमरबागवाला के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए उन्होंने कहा, "क्या कर्नाटक का कानून चमरबागवाला में उल्लिखित शर्तों को बदल सकता है....यह संभव नहीं है।"

    उन्होंने कहा, "वेश्यावृत्ति भी प्रतिबंधित नहीं है, केवल इसके आसपास की गतिविधियों प्रतिबंध‌ित हैं। यहां तक ​​कि क्लास‌फाइड ड्रग्स पर भी प्रतिबंध नहीं है। लेकिन यहां कौशल के खेल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है क्योंकि खेल के अंत में आपको नतीजों के आधार पर पैसे का आदान-प्रदान करना होता है।"

    उन्होंने दोहराया कि "कौशल और संयोग निर्णायक बिंदु के दो पहलू हैं। आप कौशल के खेल को रोक नहीं सकते हैं और कौशल ‌लिस्ट 2 की एंट्री 34 की क्षमता के अंतर्गत नहीं आता है। कौशल का मतलब 100 प्रतिशत कौशल नहीं है, वर्चस्व पर्याप्त है। हालांकि, कर्नाटक राज्य ने इसे उलट दिया है और इसमें कौशल के खेल को शामिल किया है। यदि एंट्री 34 कहती है कि कौशल का खेल शामिल नहीं है तो कर्नाटक राज्य ने कौशल के खेल क्यों शामिल हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के विपरीत है।

    सिंघवी ने अंतरिम राहत के रूप में आक्षेपित संशोधन अधिनियम रोक की मांग की और कहा "माननीय लॉर्डशिप कितने मामले देख चुके हैं, जिनमें 70 साल का न्यायशास्त्र, 5 सुप्रीम कोर्ट और दो हाईकोर्ट के फैसले शामिल हैं। यदि यह प्रथम दृष्टया मामला नहीं है तो प्रथम दृष्टया मामला क्या है। इन निर्णयों में शामिल किए गए सभी मुद्दे यदि प्रथम दृष्टया नहीं है तो प्रथम दृष्टया क्या है।"

    उन्होंने कहा, "अदालत को सभी सुरक्षा उपायों के साथ रम्‍मी ऑनलाइन की अनुमति क्यों नहीं देनी चाहिए। ऑनलाइन रम्मी फेडरेशन (टीओआरएफ) एक वैश्विक संगठन है। उनके पास कई सख्त तकनीकी मानक हैं। इसमें शामिल प्रतिबंध ऐसे हैं कि आप सिस्टम के साथ ख‌िलवाड़ नहीं कर सकते हैं। आज इसलिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है और सुविधा का संतुलन बनाया जाता है।"

    सिंघवी की दलील पर कोर्ट ने कहा, 'अगर मैं अंतरिम आदेश देता हूं और हजारों लोग खेलते हैं और कल मैं आपकी याचिका खारिज कर देता हूं तो क्या खिलाड़‌ियों पर आपराधिक दायित्व होगा?

    सिंघवी ने कहा, "अधिनियम से पहले जब हर कोई खेल रहा था, एक पहले से मौजूद रोक की स्थिति है। माननीय लॉर्डशिप केवल इसे निलंबित कर रहे हैं, यह यथास्थिति को जारी रख रहा है, जो अधिनियम से पहले से ही मौजूद थी। दूसरा, माननीय लॉर्डशिप कुछ भी बना नहीं रहे हैं, यह केवल स्थापित धर्मनिरपेक्ष कानूनों और चार्टर और नियमों और विनियमों के अनुसार ऑनलाइन गेम जारी रखने की अनुमति दे रहे हैं।"

    कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीन‌ियर एडवोकेट साजन पूवैया ने तर्क दिया "राज्य के पास इस प्रकार के कानून को लागू करने की विधायी क्षमता नहीं है। इसके अलावा, एंट्री 26 के तहत, राज्य केवल ऑनलाइन गेम पर पूर्ण प्रतिबंध लगा सकता है और इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है।"

    उन्होंने एक अन्य पीठ द्वारा दिए गए आदेश की ओर भी इशारा किया, जिसने पुलिस को स्पोर्टा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और निदेशक भावित शेठ और हर्ष जैन के खिलाफ कोई भी कठोर कदम उठाने से रोक दिया था। यह कंपनी 'ड्रीम 11' गेमिंग ऐप की प्रमोटर है। उन्होंने तर्क दिया कि, "कुछ कंपनियां जो इस अदालत के समक्ष नहीं हैं, कानून को चुनौती दे रही हैं, वे अभी भी अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं। जबकि याचिकाकर्ताओं ने अपने ऐप्स को जियो-फेंस किया है।" जिस पर कोर्ट ने कहा, ''एडवोकेट जनरल की ओर से मौखिक आश्वासन दिया गया है कि कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी।''

    दीवाली की छुट्टी के बाद मामलों की अगली सुनवाई होगी।

    केस शीर्षक: ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: डब्ल्यूपी 18703/2021

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