''नहीं का मतलब नहीं, इस शब्द को किसी और स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं'': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

6 May 2021 9:30 AM GMT

  • Holding Peaceful Processions, Raising Slogans Cant Be An Offence: Himachal Pradesh High Court Quashes FIR Against Lady Advocate

    ''नहीं का मतलब,नहीं-कुछ पुरुषों के लिए इस सरल वाक्य को समझना सबसे मुश्किल हो गया है'' यह कहते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को उस आरोपी व्यक्ति की तरफ से दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया,जिस पर एक 17 साल की नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है।

    न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की एकल पीठ ने कहा किः

    ''नो का मतलब यस नहीं होता है,इसका मतलब यह भी नहीं है कि लड़की शर्मीली है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि लड़की किसी आदमी को उसे समझाने के लिए कह रही है, इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह उसका पीछा करता रहे। नो शब्द को किसी और स्पष्टीकरण या औचित्य की आवश्यकता नहीं है। यह वही समाप्त होता है और आदमी को रूकना पड़ता है। जैसा कि हो सकता है, पीड़िता ने इस माम में, आरोपी से उस समय नो कहा, जब उसने उसे छूना शुरू कर दिया था, लेकिन उसने ऐसा करना जारी रखा। इसमें कहीं भी सहमति या उत्साह और रोमांटिक प्यार में एक-दूसरे को महसूस करने की इच्छा नहीं थी।''

    सुरेश कुमार पिछले साल 18 दिसंबर से हिरासत में है,उस पर आईपीसी की धारा 376 और पाॅक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    17 दिसंबर 2020 को, कुमार ने अपनी दोस्त नाबालिग लड़की को अपने वाहन में बैठाया और उसके घर तक छोड़ने की पेशकश की। हालांकि, उसने रास्ता बदल दिया और अनुचित तरीके से उसे छूना शुरू कर दिया।

    जबकि लड़की ने उसे ना कहा तो उसने पीड़िता को धमकी दी कि अगर उसने रोना शुरू किया तो वह उसके साथ जबरदस्ती करने के लिए मजबूर हो जाएगा। कुमार ने उससे पूछा कि क्या वह उससे शादी करेगी, जिस पर पीड़िता ने ना कहा। तत्पश्चात, उसने उसके कपड़े उतार दिए और उसके साथ संभोग किया।

    घर पहुंचने पर, पीड़िता ने अपनी मां को पूरी घटना सुनाई, जिसके आधार पर पुलिस ने कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।

    आरोपी का मामला यह था कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयान में कहा गया था कि वह आरोपी की दोस्त थी और आरोपी के वाहन में उसके साथ जाना यह साबित करता है कि उनके बीच दोस्ती सौहार्दपूर्ण थी, जिसके परिणामस्वरूप संभोग ''सक्रिय सहमति और आरोपी द्वारा उस पर कोई बल प्रयोग किए बिना ही किया गया था।''

    मामले के तथ्यों को देखते हुए, अदालत ने तर्क दिया कि तथ्य यह है कि पीड़िता ने अपनी मां के समक्ष दुर्भाग्यपूर्ण घटना का खुलासा किया,जो प्रथम दृष्टया ''घटना की वास्तविकता की ओर इंगित करता है।''

    कोर्ट ने शुरूआत में ही कहा कि,

    ''वह विवेकपूर्ण तरीके से गोपनीय रखती, क्योंकि उसके बयान के अनुसार, किसी ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया था। यदि यौन क्रिया उसकी इच्छा से हुई थी, तो वह इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताती और उसे छिपाने की कोशिश करती। पीड़ित ने स्वेच्छा से अपनी मां को सारी घटना बताई,जो प्रथम दृष्टया घटना की वास्तविकता की ओर इशारा करता है। यह कहना सही होगा कि पीड़ित लड़की के लिए अपनी माँ के समक्ष इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में बात करना और बाद में पुलिस के जाकर प्राथमिकी दर्ज करवाना एक साहसी कार्य था।''

    इसके अलावा, यह कहते हुए कि 'नो मीन्स नो' ही होता है, खंडपीठ ने आगे कहा कि पीड़िता के आरोपी को ना कहा था,परंतु उसके बावजूद भी वह नहीं रूका।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''जब पाठ्यक्रम में उचित यौन शिक्षा शामिल नहीं है, तो ऐसे समाज में पले हुए बच्चे बार-बार महिलाओं को विफल करते हैं।''

    आरोपी को जमानत की राहत देने से इनकार करते हुए, न्यायाधीश ने इस मामले में ''उत्कृष्ट दृष्टिकोण'' देने के लिए अपने विधि लिपिक-कम-अनुसंधान सहायक, सुश्री अपूर्वा माहेश्वरी का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया।

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