बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में कहा, प्रथम दृष्टया ऐसी कोई सामग्री नहीं जो महेश राउत के खिलाफ यूएपीए अपराधों का संकेत दे सके
Shahadat
22 Sept 2023 11:02 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वन अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत के खिलाफ सामग्री से प्रथम दृष्टया यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 की धारा 15 के तहत 'आतंकवादी कृत्य' में शामिल था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद बड़ी साजिश मामले में उन्हें जमानत दे दी।
जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस शर्मिला देशमुख की अदालत ने कहा,
"हमारी प्रथम दृष्टया राय है कि एनआईए द्वारा हमारे सामने रखी गई सामग्री के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यूएपीए एक्ट की धारा 16, 17, 18, 20 और 39 को आकर्षित करने के लिए प्रथम दृष्टया सही हैं।"
अदालत ने आगे कहा कि राउत पहले ही बिना मुकदमे के 5 साल और तीन महीने जेल में बिता चुके हैं।
राउत को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और 15 अन्य नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के साथ आरोपित किया गया। उस पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) से संबंध रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया गया।
राउत के खिलाफ आरोप यह है कि वह सीपीआई (माओवादी) का सदस्य है और उन्होंने संगठन में अन्य लोगों की भर्ती की है। इसके अलावा, सह-आरोपी रोना विल्सन के लैपटॉप में एक पत्र मिला, जिसमें लिखा है कि सह-अभियुक्तों को देने के लिए 5 लाख रुपए राऊत को दिए गए।
राउत के सीनियर एडवोकेट मिहिर देसाई ने तर्क दिया कि उन्होंने टीआईएसएस से सोशल वर्क में एमए के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त की और नागपुर की यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए भी किया। देसाई ने तर्क दिया कि राउत को प्रतिष्ठित प्रधान मंत्री ग्रामीण विकास फेलोशिप कार्यक्रम के लिए चुना गया और जिला कलेक्टर, गढ़चिरौली के साथ काम करने के लिए आवंटित किया गया।
राउत ने कहा कि गढ़चिरौली में अपने काम के आधार पर उन्हें जुलाई-अगस्त 2017 में ब्राजील में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा विकास और शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेने के लिए चुना गया। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ आरोपों की पुष्टि करने के लिए कुछ भी नहीं है।
हालांकि, एनआईए ने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की बड़ी साजिश के आधार पर उनकी जमानत का विरोध किया। उन्होंने गवाहों के बयानों और कथित तौर पर विल्सन के लैपटॉप की हार्ड ड्राइव से प्राप्त पत्रों का हवाला दिया।
पहले बयान के संबंध में पीठ ने कहा कि इसमें केवल यह उल्लेख किया गया कि वह टीआईएसएस का स्टूडेंट था और गढ़चिरौली जंगल में पाया गया था। संरक्षित गवाह के बयान में दावा किया गया कि राउत और अन्य सह-आरोपी शहरी नक्सली सदस्य हैं, जो सीपीआई (माओवादी) के लिए काम कर रहे थे।
कथित तौर पर कॉमरेड प्रकाश द्वारा कॉमरेड रोना को भेजे गए पत्र में कहा गया कि ग्राम पंचायत की बैठक में पार्टी के नियमों के अनुसार, राउत को आगे प्रसारण के लिए 5 लाख रुपये सौंपे गए। इन रुपये के संबंध में एक और समान संचार सह-आरोपी सुरेंद्र गाडलिंग की हार्ड-ड्राइव से 5 लाख रुपये बरामद किए गए।
हाईकोर्ट ने सह-अभियुक्त वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फ़रेरिया को जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर भरोसा किया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि दस्तावेज खुद राऊत के पास से बरामद नहीं हुए। इसकी सामग्री का संभावित मूल्य कमजोर है।
"इसके अलावा, पत्रों की सामग्री सुनी-सुनाई बातों के सबूत के रूप में है।"
अदालत ने पाया कि यह दिखाने के लिए कि राउत को पैसा भी मिला है, पांच लाख रुपये के लेनदेन की बिल्कुल भी पुष्टि नहीं हुई है। सिर्फ इसलिए कि कॉमरेड प्रकाश का कहना है कि उन्होंने उक्त राशि अपीलकर्ता को सौंप दी, यह वास्तव में अपीलकर्ता को इसका प्राप्तकर्ता नहीं बनाता है, क्योंकि इसके लिए बुनियादी पुष्टि नहीं है।
दूसरा संचार अज्ञात व्यक्ति द्वारा सह-अभियुक्त को संबोधित किया गया। वह केवल महेश को संदर्भित करता है। कोर्ट ने आंदोलन में दूसरे महेश के अस्तित्व की ओर भी इशारा किया।
खंडपीठ ने कहा,
“जिन लोगों पर अपीलकर्ता के माध्यम से संगठन में भर्ती होने या शामिल होने का आरोप है, उनमें से किसी का भी कोई सबूत रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया गया और न ही हमारे सामने लाया गया। इसलिए हम प्रथम दृष्टया प्रतिवादी-एनआईए के इस तर्क को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि अपीलकर्ता ने उक्त संगठन में व्यक्तियों की भर्ती से संबंधित अपराध किया है।”
वकील के नाम- सीनियर एडवोकेट मिहिर देसाई ए/डब्ल्यू. सलाहकार पृथा पॉल, आई/बी. अपीलकर्ता के लिए वकील विजय हिरेमठ। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास और एडवोकेट संदेश पाटिल।
केस टाइटल- महेश सीताराम राऊत बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी
केस नंबर- आपराधिक अपील 232/2022
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