"वकीलों के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं": राजस्थान उच्च न्यायालय ने 'जॉली एलएलबी 2' के संबंध में अक्षय कुमार के खिलाफ दायर मानहानि की शिकायत खारिज किया

LiveLaw News Network

6 Aug 2021 5:53 AM GMT

  • वकीलों के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं: राजस्थान उच्च न्यायालय ने जॉली एलएलबी 2 के संबंध में अक्षय कुमार के खिलाफ दायर मानहानि की शिकायत खारिज किया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार को बॉलीवुड फिल्म जॉली एलएलबी 2 के संबंध में अभिनेता अक्षय कुमार के खिलाफ वर्ष 2017 में दायर मानहानि की एक आपराधिक शिकायत को खारिज कर दिया।

    जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने फिल्म जॉली एलएलबी 2 के ट्रेलर के आधार पर अक्षय कुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 के तहत संज्ञान लेने वाले अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, जयपुर मेट्रोपॉलिटन सांगानेर के आदेश को भी खारिज कर दिया।

    कोर्ट ने अपने आदेश में जोर देकर कहा, "याचिकाकर्ता एक कलाकार है, जिसकी किसी व्यक्ति या याचिकाकर्ता या वकीलों के वर्ग के खिलाफ कोई व्यक्तिगत राय या इरादा या कोई दुर्भावना नहीं है। इस प्रकार, आक्षेपित आदेश भी भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिनकी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत गारंटी दी गई है।"

    मामला

    फिल्म जॉली एलएलबी 2 के ट्रेलर के आधार पर मानहानि के लिए एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि फिल्म के कुछ दृश्य वकील समुदाय के खिलाफ थे।

    अक्षय कुमार के वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि पूरी फिल्म जॉली एलएलबी 2 की एक जनहित याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) द्वारा जांच की गई थी, और इसके आदेश के अनुपालन में, कुछ दृश्यों को हटा दिया गया था, और उसके बाद केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ('सीबीएफसी') ने एक आवश्यक प्रमाण पत्र जारी किया था।

    आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि पिछले चार वर्षों में, प्रमाणन के बाद रिलीज हुई फिल्म के खिलाफ सोसायटी के किसी भी संप्रदाय से कोई आपत्ति नहीं आई थी।

    यह तर्क दिया गया था कि ट्रेलर को सीबीएफसी ने भी अनुमोदित किया था और फिल्म के पक्ष में यह अनुमान था कि सीबीएफसी द्वारा उचित प्रमाणीकरण के बाद रिलीज हुई फिल्म में किसी के खिलाफ मानहानि की कोई सामग्री नहीं थी।

    अंत में, संज्ञान लेने के आदेश का हवाला देते हुए, वकील ने प्रस्तुत किया कि संज्ञान का आक्षेपित आदेश अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 19 (1) (जी) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    राज कपूर बनाम लक्ष्मण [(1980) 2 SCC 175], के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने नोट किया कि सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा 5-ए के विशेष प्रावधानों के तहत सीबीएफसी द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने के बाद, फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए धारा 79 के तहत कानून में एक औचित्य मौजूद है ।

    इसके अलावा, इस बात पर जोर दिया गया कि अभियुक्त को बुलाने से पहले मुकदमे को संतुष्ट किया जाना चाहिए कि कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार रिकॉर्ड पर उपलब्ध हैं, अदालत ने कहा,

    " विद्वान ट्रायल कोर्ट पूरी फिल्म के संदर्भ में ट्रेलर पर विचार करने के लिए बाध्य था और उसके बाद ही एक तार्किक निष्कर्ष निकाला जाना आवश्यक था। बेशक, संज्ञान का आक्षेपित आदेश केवल ट्रेलर के आधार पर पारित किया गया है।"

    उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पाया कि आक्षेपित आदेश बिना सोचे-समझे और मामले के सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार किए बिना पारित किया गया था। इसलिए, याचिका की अनुमति दी गई और दिनांक 6-2-2017 को Cr. Case No.661/2017 में अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट संख्या 20, सांगानेर जयपुर मेट्रोपॉलिटन द्वारा पारित

    आदेश को खारिज और रद्द कर दिया गया। साथ ही शिकायत को भी खारिज कर दिया गया।

    धारा 482 सीआरपीसी के तहत खारिज करने के लिए याचिका एडवोकेट पूर्वी माथुर और कुशाग्र शर्मा, नितिन शर्मा और सुमंत नारंग ने अभिनेता अक्षय कुमार की ओर से दायर किया था।

    केस टाइट‌िल - अक्षय कुमार बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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