'कार्यकाल बढ़ाने के लिए कोई आकस्मिक स्थिति नहीं थी': इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

26 Jan 2021 3:04 PM GMT

  • कार्यकाल बढ़ाने के लिए कोई आकस्मिक स्थिति नहीं थी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चुनाव 28 फरवरी तक कराने के लिए निर्देश जारी करते हुए सोमवार को कहा, "लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निकाय के चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों को लागू करने की अन‌िवार्य शर्त है और संस्थान इसी के मुताबिक काम करते हैं।"

    चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस एसएस शमशेरी की पीठ ने इस अवधि तक बोर्ड के प्रशासक के रूप में यूपी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग के प्रधान सचिव को नियुक्त किया।

    कोर्ट ने आदेश दिया, "उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग के प्रधान सचिव को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जाता है ताकि वे बोर्ड के रोजमर्रा के मामलों का प्रबंधन कर सकें, हालांकि, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड से संबंधित कोई भी नीतिगत निर्णय लेने के पात्र नहीं होंगे। प्रशासक 28 फरवरी, 2021 चुनाव कराने और और निर्वाचित बोर्ड को प्रभार देना भी सुनिश्चित करेगा।"

    एक जुलाई, 2020 और 30 सितंबर, 2020 को सरकार के आदेशों के खिलाफ दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया गया, जिसमें बोर्ड के कार्यकाल को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था।

    पृष्ठभूमि

    यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का कार्यकाल एक अप्रैल, 2020 को समाप्त होना था। COVID-19 महामारी का हवाला देते हुए, सरकार ने एक जुलाई, 2020 को बोर्ड का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया। इसके बाद, 30 सितंबर, 2020 को कार्यकाल एक बार फिर से छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया।

    याचिकाकर्ताओं ने इन आदेशों को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि वक्फ अधिनियम, 1995, उत्तर प्रदेश राज्य को एक निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल बढ़ाने का अधिकार नहीं देता है। वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने दलील दी, इस तरह के किसी भी अधिकार के अभाव में बोर्ड के कार्यकाल का विस्तार गलत है।

    दूसरी ओर सरकार ने दलील दी कि अप्रैल 2020 में, महामारी चरम पर थी और पूरे देश में लॉकडाउन था। इस अवधि में, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधान भी लागू थे। इसलिए, बोर्ड के चुनाव कराना संभव नहीं था और इसलिए, इसका कार्यकाल बढ़ाया गया। सितंबर महीने और उसके बाद भी महामारी चरम पर थी। इसलिए, बोर्ड का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था।

    जांच

    डिवीजन बेंच ने पाया कि चूंकि बोर्ड का कार्यकाल अप्रैल 2020 में समाप्त होना था, इसलिए सरकार को फरवरी, 2020 में ही चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए पर्याप्त सतर्कता बरतनी चाहिए थी।

    बेंच ने कहा, "यह सच है, एक अप्रैल, 2020 को बोर्ड का कार्यकाल रात 12 बजे समाप्त हो गया, लेकिन सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए यह काम कर रहा था और एक जुलाई, 2020 को सरकार ने आवश्यकता को देखते हुए इस अवधि को बढ़ा दिया। कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि 31 मई, 2020 तक पूरे देश में लॉकडाउन के कड़े प्रतिबंध लगे थे। उस अवधि में, कोई भी चुनाव नहीं हो सकता था और एक अप्रैल, 2020 के पहले और कम से कम 24 मार्च, 2020 के बाद चुनाव नहीं हो सकते थे। ऐसी परिस्थितियों में, आवश्यकता थी कि यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के कार्यकाल को बढ़ाने जाए। "

    इस प्रकार, न्यायालय ने जुलाई के आदेश में हस्तक्षेप करना ‌उचित नहीं समझा।

    30 सितंबर, 2020 को पारित आदेश पर चर्चा करते हुए खंडपीठ ने कहा, "राज्य सरकार, यद‌ि पर्याप्त सतर्क रही होती तो अगस्त और सितंबर 2020 के महीनों में चुनाव करवा सकती थी। यह कहना उचित होगा कि वक्फ बोर्ड के चुनाव के लिए मतदाताओं की संख्या बहुत कम है और इतनी संख्या में मतदान सोशल डिस्टेंसिग समेत COVID-19 प्रोटोकॉल के साथ कराया जा सकता था। सितंबर महीने में, देश में विधान सभा सहित कई अन्य निकायों के चुनाव अधिसूचित किए गए थे। हम यह समझने में असफल हैं कि उत्तरदाताओं ने क्यों समय पर चुनाव नहीं कराए।"

    यह माना गया कि एक अक्टूबर, 2020 के बाद चुनाव न कराने और वक्फ बोर्ड के कार्यकाल के विस्तार के पीछे सरकार के पास कोई कारण उपलब्ध नहीं था। इस प्रकार, 30 सितंबर, 2020 के आदेश को "अधिकार से परे" और "किसी भी आवश्यक आवश्यकता पर स्थापित नहीं" के रूप में निर्धारित किया गया।

    कोर्ट ने कहा, "लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निकाय के लिए चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों को लागू करने के लिए अनुवार्य शर्त है और तदनुसार संस्थान काम करते हैं। इस प्रकार के कामकाज से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाना चाहिए था। इस प्रकार के निकाय का चुनाव केवल आकस्मिक और असाधारण परिस्थितियों में ही स्‍थगित किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने कहा कि इस पृष्ठभूमि में, प्रशासक को चुनाव कराने के दिशा-निर्देशों के साथ नियुक्त किया जाता है जो सुनिश्चित करेगा कि नया निर्वाचित बोर्ड 28 फरवरी तक कार्यभार संभाले।

    कोर्ट ने आदेश में यह स्पष्ट कि प्रशासक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड से संबंधित कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं ले सकेगा। इसके अलावा, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा विस्तारित कार्यकाल में लिए गए प्रशासनिक निर्णय इस आधार पर अमान्य नहीं होंगे कि को 30 सितंबर, 2020 के आदेश को रद्द किया गया है।

    केस टाइटिल: वसीम उद्दीन और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश और राज्य

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story