"कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, जो यह स्थापित कर सके कि बरामद राख और जली हुई हड्डियां मृतक की हैं", इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के दो अभियुक्तों को बरी किया

Avanish Pathak

10 May 2023 8:12 AM GMT

  • कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, जो यह स्थापित कर सके कि बरामद राख और जली हुई हड्डियां मृतक की हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के दो अभियुक्तों को बरी किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दो अभियुक्तों को बरी कर दिया। कोर्ट ने पाया कि अभियुक्तों को दोषी ठहराने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी नहीं थी।

    जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि घटना के कथित चश्मदीद गवाहों ने अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया और कोई दस्तावेजी सबूत भी नहीं था जो यह स्थापित कर सके कि बरामद राख और जली हुई हड्डियां मृतक की हैं।

    मामला

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, प्रथम शिकायतकर्ता हरबीर सिंह आर्य एडवोकेट (पीडब्ल्यू-एक) ने 20 अक्टूबर, 2011 को थाने में तहरीर दी थी कि उसके बेटे लवकेश की शादी राजवीर (अपीलार्थी संख्या एक) की बेटी पूजा (मृतक) से हुई थी, हालांकि, वह उसके साथ नहीं रह रही थी।

    उन्होंने आगे कहा कि 18 अक्टूबर, 2011 को रात 9:30 बजे उन्हें किसी गजराज सिंह का फोन आया, जिसने बताया कि उनकी बहू पूजा को उसके माता-पिता, भाई और रहीसुद्दीन (अपीलार्थी संख्या दो) नामक एक शख्स ने मार डाला। उसे जबरदस्ती जहर पिलाकर मारा गया। उसने बताया कि ऐसा पीडब्ल्यू-एक को झूठा फंसाने के लिए किया गया।

    पीडब्ल्यू-एक ने बताया कि शुरु में उन्होंने पूजा के शव को अपने घर लाने की योजना बनाई, हालांकि उन्हें मौका नहीं मिला, पूजा के घर वालों ने उसके शव को जलाकर नष्ट कर दिया।

    उसके बाद पीडब्ल्यू-एक ने पूजा के पिता राजवीर के साथ ही उनकी मां, भाई और रहीसुद्दीन के खिलाफ आईपीसी की धारा-302, 201 के तहत एफआईआर दर्ज कराई।

    पुलिस ने जांच के दरमियान, जहां मृतक को जहर दिया गया था, उस जगह का साइट प्लान तैयार किया। साथ ही उस जगह का साइट प्लान भी तैयार किया गया, जहां से मृतक के शव की राख और हड्डी बरामद की गई थी। राख और हड्डी की बरामदगी के लिए एक रिकवरी मेमो तैयार किया गया था।

    घटना स्थल की मिट्टी सहित राख और अन्य अवशेषों को रासायनिक परीक्षण के लिए भेजा गया। जिसके बाद उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उपलब्ध अपीलार्थियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और धारा 201 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।

    कोर्ट ने अपीलकर्ता राजवीर और रहीसुद्दीन को दोषी ठहराया। 27 अक्टूबर, 2017 को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (एफटीसी), बुलंदशहर ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    निष्कर्ष

    अदालत ने फैसले में कहा कि प्रथम शिकायतकर्ता (पीडब्लू-एक) की ओर से एफआईआर दर्ज कराने का एकमात्र आधार मृतक की हत्या के संबंध में उसे गजराज सिंह से प्राप्त जानकारी थी। ट्रायल के दरमियान पीडब्लू-एक ने कहा कि मौत की घटना को गजराज सिंह के अलावा बुद्ध पाल सिंह, रवि, नानक और संजय ने भी देखा था।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि मुकदमे के दरमियान बुद्ध पाल सिंह (पीडब्लू-दो) और नानक (पीडब्लू-तीन) ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया और उन्हें पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया। एकमात्र गवाह (गजराज) को भी अभियोजन की कहानी का समर्थन करने के लिए ट्रायल कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया।

    अदालत ने आगे कहा कि एक अन्य गवाह रवि, जिसने पीडब्लू-एक के बयान के अनुसार घटना को देखा था, को भी अभियोजन पक्ष ने अदालत में पेश नहीं किया। यहां तक कि पूजा की हत्या के मकसद के गवाह बिशन सिंह (पीडब्ल्यू- चार) ने अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया, इसलिए उसे पक्षद्रोही घोषित किया गया।

    राख की बरामदगी के संबंध में, अदालत ने पाया कि मृतक की राख और जली हुई हड्डियों की बरामदगी के लिए रिकवरी मेमो पर किसी भी अपीलकर्ता ने हस्ताक्षर नहीं किए थे। जिन गवाहों ने इस रिकवरी मेमो पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें उसे साबित करने के लिए अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया था।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की रिपोर्ट भी बरामद राख और जली हुई हड्डियों की उत्पत्ति के बारे में कोई राय नहीं देती है।

    अदालत ने अपीलकर्ता के तर्कों में बल पाया कि उनपर उन मामलों में समझौता करने के लिए दबाव डालने के उद्देश्य से झूठा फंसाया गया है, जो अपीलकर्ता- राजवीर और उनकी बेटी पूजा ने पीडब्लू-एक के खिलाफ दर्ज किए थे।

    न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के इस तर्क को भी ध्यान में रखा कि उन्हें परिस्थितिजन्य साक्ष्य के साथ-साथ साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत एक अनुमान के आधार पर दोषी ठहराया गया था, हालांकि परिस्थितियों की श्रृंखला अपने आप में पूर्ण नहीं है क्योंकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं था।

    घटना और संपूर्ण अभियोजन का मामला पीडब्लू-एक के बयान पर आधारित है, जो स्वयं घटना का गवाह नहीं था, बल्‍कि उसकी जानकारी अन्य गवाहों से प्राप्त जानकारी पर आधारित थी, जिन्होंने अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया।

    उक्त दलीलों के मद्देनजर हाईकोर्ट ने फैसले और दोष‌सिद्ध‌ि को रद्द कर दिया।

    केस टाइटलः राजवीर सिंह बनाम यूपी राज्य एक संबद्ध अपील के साथ

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 146

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