लॉकडाउन को लागू करना कोर्ट की अवमानना नहींः दिल्ली हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को पीएम केयर्स फंड में 10 हजार रुपए जमा करने का आदेश दिया
LiveLaw News Network
18 April 2020 6:54 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक धर्मार्थ ट्रस्ट की याचिका रद्द करते हुए, उसे 10 हजार रुपए पीएम केयर्स फंड में जमा करने का आदेश दिया। ट्रस्ट ने लॉकडाउन में आवागमन के लिए जारी किए गए पास की वैधता को बढ़ाने की मांग की थी, जबकि कोर्ट ने माना कि ट्रस्ट की गतिविधियों से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई है।
कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता स्वयं को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का "उचित तंत्र" न माने।" अदालत ने कहा कि संस्थान COVID 19 के एपीसेंटर में मौजूद है, दिल्ली सरकार ने उन इलाकों को सील कर दिया है, फिर भी वह पास की मांग कर रहा है।
जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने याचिका को अनुचित बताते हुए संस्थान पीएम केयर्स फंड में 10 हजार रुपए जमा करने का निर्देश दिया।
मामले में सिविलियन वेलफेयर एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि 8 अप्रैल को हाईकोर्ट के एक विद्वान एकल न्यायाधीश के आदेश के बावजूद, प्रतिवादी अधिकारियों ने 'आवश्यक सेवाओं' के लिए जारी किए गए पास की वैधता अवधि का विस्तार नहीं किया। याचिका में, अदालत के आदेश की 'जान-बूझकर अवज्ञा' करने के खिलाफ दिशा-निर्देश मांगे गए थे।
हालांकि, सुनवाई के दौरान पीठ को सूचित किया गया कि ट्रस्ट चांदनी महल क्षेत्र में स्थित है, जहां COVID 19 के 102 पॉजीटिव मामले सामने आए हैं। नतीजतन, 10 अप्रैल को एक आदेश जारी कर दिल्ली सरकार ने उस क्षेत्र सील कर दिया है और यही कारण है कि पास की वैधता को भी नहीं बढ़ाया गया है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा,
"यह नहीं कहा जा सकता है कि 8 अप्रैल, 2020 को पारित आदेश [WP (C)2954/2020] की किसी भी स्तर पर अवमानना याअवज्ञा, या हुई है। उक्त आदेश जीएनसीटीडी द्वारा दिनांक 10 अप्रैल, 2020 को जारी किए गए एरिया सील करने के आदेश के पहले पास किया गया था।"
अदालत ने कहा कि सरकार सील किए गए इलाकों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की आवश्यकता से अनभिज्ञ नहीं है। सरकार मार्केट एसोसिएशन के साथ समन्वय कर उक्त इलाकों में आवश्यक वस्तुओं की डोर-टू-डोर आपूर्ति सुनिश्चित कर रही है।
कोर्ट ने कहा,
"तंत्र" की "उपयुक्तता" को संबंधित अधिकारियों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता खुद को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए "उपयुक्त तंत्र" नहीं मान सकता है। अगर याचिकाकर्ता वाकई गंभीर है तो इस संबंध में वो एसडीएम, कोतवाली और एसएचओ, पुलिस स्टेशन, चांदनी महल से संपर्क कर सकता है। हालांकि, ऐसा लगता नहीं कि ऐसा कोई प्रयास किया गया था।"
जस्टिस हरि शंकर ने कहा कि केंद्र, और राज्य सरकारें, कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के लिए "हर संभव कोशिश कर रही हैं" और अदालतें इस तरह की "दुर्भावनापूर्ण" याचिकाओं को स्वीकार नहीं करने के लिए बाध्य हैं।
मामले का विवरण:
केस टाइटल: सिविलियन वेलफेयर एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाम निधि श्रीवास्तव, IAS और अन्य
केस नं .: Cont.Cas (C) 244/2020
कोरम: न्यायमूर्ति सी हरि शंकर
प्रतिनिधित्व: वकील आज़म अंसारी (याचिकाकर्ता के लिए); वकील संजय दीवान (प्रतिवादी के लिए)
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