नई आबकारी नीति वितरकों के सिंडिकेशन से बचने के अपने प्रस्तावित लक्ष्य के अनुरूप नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

26 Nov 2021 7:33 AM GMT

  • नई आबकारी नीति वितरकों के सिंडिकेशन से बचने के अपने प्रस्तावित लक्ष्य के अनुरूप नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार की नई आबकारी नीति 2021-22 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

    मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने शुक्रवार को एक थोक लाइसेंसधारी अनीता चौधरी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता पराग पी त्रिपाठी को सुना।

    चौधरी ने मुख्य रूप से नई नीति के तहत एक क्लॉज़ का विरोध किया। इस क्लॉज़ में यह प्रावधान है कि ऐसे थोक वितरक जिनके पास भारत के किसी भी राज्य में शराब के व्यापार में न्यूनतम पांच साल का अनुभव है, वे दिल्ली में एल-1 थोक शराब लाइसेंस के लिए आवेदन करने के पात्र हैं।

    चौधरी लगातार तीन वित्तीय वर्ष से हर साल 150 करोड़ का कारोबार करते हैं। वह पांच के अनुभव के अलावा अन्य मानदंडों को पूरा करते हैं। केवल तीन साल का अनुभव नई नीति के तहत अपर्याप्त है।

    त्रिपाठी ने कहा,

    "पांच साल की सीमा पूरी तरह से मनमानी है। इस शर्त के पीछे कोई तर्क नहीं है।"

    इसके साथ ही त्रिपाठी ने कहा कि पहले की नीति में ऐसा कोई मानदंड नहीं था।

    इस पर बेंच ने कहा,

    "एक कट-ऑफ लाइन होना तय है। आप चाहते हैं कि हाईकोर्ट नीतिगत शर्तों पर रोक लगा दे? पांच साल के बजाय हमें तीन साल कहना चाहिए? फिर कोई आकर कहेगा कि तीन साल क्यों, इसे शून्य कर दें। फिर कोई आएगा और कहेगा जीरो क्यों, अनुभव होना चाहिए।"

    त्रिपाठी ने यह भी बताया कि नई आबकारी नीति दिल्ली भर में शराब की दुकानों का समान वितरण सुनिश्चित करना चाहती है। इससे वह ऐसे सिंडिकेट से बचना चाहती है जिससे अधिक शुल्क और ब्रांड प्रभावित हो। इस उद्देश्य के लिए यह प्रावधान करता है कि शराब/आईएमएफएल के निर्माता थोक व्यापारी नहीं हो सकते हैं ताकि आर्थिक हितों की समानता को रोका जा सके।

    त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया कि एल-1 थोक व्यापारी को निर्माता के साथ एकाधिकार अनुबंध करना होगा।

    हालांकि, उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं के एजेंटों को एल-1 थोक लाइसेंस प्राप्त करने में भी सक्षम बनाती है।

    त्रिपाठी ने कहा,

    "एक बार जब आप निर्माताओं के एजेंटों को थोक लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति देते हैं तो सिंडिकेशन से बचने का पूरा व्यवसाय हवा में चला जाता है। निर्माता स्पष्ट रूप से उनके साथ अनुबंध करेंगे। यह पूरी तरह से असंगत है। यह प्रतिस्पर्धा का अंत है।"

    इस मोड़ पर बेंच ने कहा कि भले ही इस प्रावधान को हटा दिया जाए, लेकिन इस बात की कोई निश्चितता नहीं है कि ब्रांड का प्रभाव खत्म हो जाएगा।

    उन्होंने कहा,

    "उपभोक्ता खुदरा विक्रेता से पूछेगा कि कौन सी वस्तु बेहतर है। खुदरा विक्रेता हमेशा एक राय देगा कि लोग ब्रांड खरीद रहे हैं। तो गारंटी कहां है?"

    पीठ अब 30 नवंबर को याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगी।

    केस शीर्षक: अनीता चौधरी बनाम जीएनसीटीडी (और अन्य जुड़े मामले)

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