(एनडीपीएस) आरोपी के पास से 'कुछ भी बरामद नहीं हुआ', सिर्फ इस आधार पर अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Aug 2020 5:19 AM GMT

  • (एनडीपीएस) आरोपी के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ, सिर्फ इस आधार पर  अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती :  केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि एनडीपीएस मामले में अग्रिम जमानत केवल इसलिए नहीं दी जा सकती है क्योंकि अभियुक्त के पास से 'कुछ भी बरामद नहीं हुआ' था।

    नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 22 (सी), 28 और 29 के तहत एक अभियुक्त व्यक्ति की तरफ से दायर अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए सत्र न्यायालय ने कहा था कि उसके पास से 'कुछ भी बरामद नहीं हुआ था' और न ही कोई ऐसी प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध है जो अपराध में उसकी सक्रिय भागीदारी को इंगित करती हो। इसलिए उसे जमानत दी जा रही है।

    राज्य सरकार ने सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आर नारायण पिशराडी ने कहा कि अधिनियम की धारा 37 (1) (बी) (ii) के अनुसार, यदि लोक अभियोजक जमानत के आवेदन का विरोध करता है, तो आरोपी को जमानत देने के लिए दो शर्तों का संतुष्ट होना जरूरी है।

    ''पहली यह है कि अदालत इस बात से संतुष्ट होनी चाहिए कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए कथित अपराध के लिए वह दोषी नहीं है। दूसरी यह है कि अदालत इस बात से भी संतुष्ट होनी चाहिए कि उसके पास यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी जमानत पर रिहा होने के बाद कोई अपराध नहीं करेगा या ऐसा करने की संभावना नहीं है। केवल इन दो शर्तों की संतुष्टि के बाद ही न्यायालय के पास आरोपी को जमानत देने की शक्ति है।''

    अदालत ने कहा कि ये प्रतिबंध निर्दिष्ट किए गए अपराधों में आरोपी व्यक्ति को जमानत देने के लिए लगाए गए हैं। जो उसी अपराध में अग्रिम जमानत देने के मामले में भी लागू होते हैं। यदि इन दोनों शर्तों में से कोई भी एक शर्त पूरी नहीं होती है तो प्रतिबंध जारी रहता है और आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।

    न्यायाधीश ने कहा, ''ये दो शर्तें संचयी हैं न कि वैकल्पिक। यदि इन दोनों स्थितियों में से कोई भी संतुष्ट नहीं होती है तो प्रतिबंध जारी रहता है और आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि-

    अभियुक्त के दोषी नहीं होने के संबंध में की जाने वाली संतुष्टि ''उचित आधार'' पर आधारित होना चाहिए। वाक्यांश 'उचित आधार' का अर्थ है, प्रथम दृष्टया आधार से कुछ ज्यादा होने चाहिए। साथ ही यह विश्वास करने के लिए उन पर्याप्त संभावित कारणों को दर्शाता हो कि अभियुक्त उस अपराध का दोषी नहीं है जिसका उस पर आरोप लगा है।

    टर्न प्वाइंट में अपेक्षित उचित विश्वास यह बताता है कि मौजूद तथ्य और परिस्थितियां अपने आप में पर्याप्त है, जो इस संतोष को उचित ठहराती हैं कि आरोपी कथित अपराध का दोषी नहीं है। इस प्रकार ऊपर उल्लेखित दोनों पहलुओं पर संतुष्टि दर्ज करना अनिवार्य है। उसी के बाद अधिनियम की धारा 37 की उप-धारा (1) के खंड (बी) के तहत निर्दिष्ट अपराधों के लिए आरोपित व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है।

    हालांकि, अधिनियम की धारा 37 के संदर्भ में जमानत के लिए दायर एक आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को 'दोषी नहीं' का निष्कर्ष रिकॉर्ड करने की जरूरत नहीं है।

    इस स्तर पर यह न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है कि (यह पता करने के लिए क्या आरोपी ने कथित अपराध को किया है या नहीं) एक सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए तथ्यों को सावधानी से महत्व दिया जाए। ऐसे समय में सिर्फ यह देखा जाना चाहिए कि क्या यह मानने के लिए उचित आधार है कि अभियुक्त उस अपराध के लिए दोषी नहीं है जिसका उस पर आरोप लगाया गया है।

    साथ ही यह देखा जाए कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वह जमानत पर रहते हुए अधिनियम के तहत अपराध करेगा। उक्त दोनों शर्तों के अस्तित्व के बारे में न्यायालय की संतुष्टि एक सीमित उद्देश्य के लिए है,जो सिर्फ आरोपी को जमानत पर रिहा करने के सवाल तक ही सीमित है।

    सत्र न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि उन्होंने अधिनियम की धारा 37 (1) (बी) के तहत उल्लिखित दोनों शर्तों पर विचार नहीं किया और न ही उन शर्तों के संबंध में कोई संतुष्टि दर्ज की गई। पीठ ने कहा कि उक्त आदेश से यह भी अनुमान लगाना भी संभव नहीं है कि सेशन कोर्ट इन शर्तों के संबंध में संतुष्ट थी। इसलिए सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द किया जा रहा है। साथ ही निर्देश दिया जा रहा है कि आरोपी की तरफ से दायर अग्रिम जमानत अर्जी पर नए सिरे से विचार किया जाए।

    मामले का विवरण-

    केस का नाम-केरल राज्य बनाम मोहम्मद रियास

    केस नंबर-सीआरएल एमसी नंबर 2707/ 2020 (जी)

    कोरम- न्यायमूर्ति आर नारायण पिशराडी

    प्रतिनिधित्व-पीपी सज्जु एस, एडवोकेट नीरेश मैथ्यू

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



    Next Story