एनडीपीएस एक्ट | धारा 41 का पालन न होना, जमानत का आधार नहीं; धारा 37 की कठोरता फिर भी पूरी होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

28 Nov 2022 10:35 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्ट | धारा 41 का पालन न होना, जमानत का आधार नहीं; धारा 37 की कठोरता फिर भी पूरी होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि यह सवाल कि गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 41 का पालन न होना, ट्रायल को निष्प्रभावी कर देता है, यह ट्रायल के चरण देखा जाएगा, और इसका जमानत देने पर कोई असर नहीं होगा।

    अदालत ने कहा कि हालांकि अधिकारी प्रावधानों की वैधानिक कठोरता को नजरअंदाज नहीं कर सकते, खासकर जब यह अभियुक्तों के लिए गंभीर पूर्वाग्रह का कारण बनता है, शीर्ष अदालत ने करनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य में कहा है कि धारा 41 का प्रावधान एक विवेकाधीन उपाय है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के फैसले में कहा था,

    "इन प्रावधानों को एक विवेकाधीन उपाय के रूप में लिया जाना चाहिए, जिससे अधिनियम के दुरुपयोग पर रोक लगानी चाहिए, बजाय कि ड्रग पेडलर्स इसके जर‌िए बच निकलें।"

    जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि अधिनियम की धारा 41 का पालन न करने पर अभियुक्त धारा 37 की कठोरता से मुक्त नहीं होगा, जो जमानत देने पर कड़ी शर्तें लगाता है।

    धारा 37 में कहा गया है कि किसी अभियुक्त को जमानत तब तक नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि अभियुक्त दोहरी शर्तों को पूरा करने में सक्षम न हो, यानी यह विश्वास करने के लिए उचित आधार न हो कि अभियुक्त इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत मिली तो अभियुक्त अपराध नहीं करेगा या ऐसा अपराध करने की संभावना नहीं है।

    जस्टिस सिंह ने 18 नवंबर को पारित एक फैसले में कहा, "धारा 37 द्वारा एक रोक लगाई गई है, जिसे विवेकाधीन प्रावधान यानी धारा 41 का अनुपालन न करके नजरअंदाज या अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है।"

    अदालत ने हरदीप सिंह नामक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके खिलाफ जनवरी 2020 में तिलक नगर पुलिस ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 15, 25, 29, 61 और 85 के तहत मामले दर्ज किए थे।

    सिंह और उसके भाई के पास से कुल 58.5 किलोग्राम डोडा-पोस्ट बरामद किया गया। उनका मामला था कि अधिनियम की धारा 41 का अनुपालन नहीं किया गया था।

    अभियुक्तों की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि सिंह और उनके भाई को गश्त के दरमियान पुलिस ने पकड़ा था और जब उनके बैग की जांच के बाद कथित रूप से वर्जित पदार्थ बरामद किया गया था, एसआई ने इंस्पेक्टर को टेलीफोन पर सूचित किया था, जिसने उचित कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। अदालत को बताया गया कि एसआई ने ही आरोपी को एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत नोटिस दिया था।

    एनडीपीएस अधिनियम की धारा 41 के अनुसार, इंस्पेक्टर एक राजपत्रित अधिकारी नहीं है और न ही अथॉरिटी देने के लिए सक्षम प्राधिकारी है, वकील ने कहा कि एसआई को कट्टा खोलने से पहले इंस्पेक्टर और एसीपी को सूचित करना चाहिए था और उचित अथॉरिटी के बाद ही तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

    यह भी तर्क दिया गया कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के तहत नोटिस जारी करते समय एक अनियमितता थी, क्योंकि जिस अधिकारी ने इसे सर्व किया था वह एनडीपीएस अधिनियम की धारा 41, 42 या 43 के अनुसार अधिकृत नहीं था।

    यह देखते हुए कि एक इंस्पेक्टर एक राजपत्रित अधिकारी नहीं है यानी एनडीपीएस अधिनियम की धारा 41 के अनुसार अथॉरिटी देने का अधिकार नहीं है, अदालत ने कहा-

    "न तो एसीपी यानी, राजपत्रित अधिकारी और न ही धारा 41 के दायरे के अनुसार किसी मजिस्ट्रेट ने कथित रूप से दी गई गुप्त सूचना के अनुसार वर्तमान मामले में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी के उद्देश्य से किसी अधिकारी को अधिकृत किया है।"

    अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया धारा 41 का पालन नहीं किया गया है, इसका जमानत देने पर कोई असर नहीं हो सकता है।

    जस्टिस सिंह ने यह भी कहा कि धारा 50, जो शर्तों के तहत किसी व्यक्ति की तलाशी लेने का प्रावधान करती है, कार से की गई बरामदगी तक विस्तारित नहीं होती है। इसने कहा कि धारा 50 का विधिवत अनुपालन किया गया क्योंकि चार्जशीट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि व्यक्तिगत तलाशी एसीपी की उपस्थिति में की गई थी।

    अदालत ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि धारा 41 का पालन न करने से सुनवाई निष्प्रभावी हो जाएगी, धारा 37 की कठोरता को पूरा करना होगा क्योंकि मामला नशीले पदार्थों की व्यावसायिक मात्रा से जुड़ा है।

    कोर्ट ने नोट किया,

    "कथित पदार्थ की कुल बरामदगी 58.500 किलोग्राम (आईओ किट में रखी वेइंग मशीन पर तौली गई) थी, जो क्रमशः 17.500 किलोग्राम, 22 किलोग्राम और 19 किलोग्राम वजन के तीन कट्ठों में पाई गई। आरोपी व्यक्तियों से बरामद मात्रा व्यावसायिक मात्रा की थी।"

    आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए, अदालत ने कहा,

    "मैं इस बात से संतुष्ट नहीं हूं कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आवेदक इस तरह के अपराध के दोषी नहीं हैं और जमानत पर रहते हुए उनके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। सभी संबंधित पहुलुओं पर विचार करने के बाद, मेरा विचार है कि आवेदकों को जमानत पर नहीं दी जा सकती है।"

    केस टाइटल: हरदीप सिंह बनाम राज्य

    उद्धरण: 2022 लाइवलॉ (दिल्‍ली) 1124

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