एनडीपीएस एक्ट| वैधानिक अवधि के भीतर एफएसएल रिपोर्ट संलग्न ना करना चार्जशीट को दोषपूर्ण नहीं बनाती, यह डिफॉल्ट जमानत का आधार नहीं: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
14 Oct 2022 7:03 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि एफएसएल रिपोर्ट प्रस्तुति के समय चार्जशीट के साथ नहीं थी, यह नहीं कहा जा सकता है कि चार्जशीट अधूरी या दोषपूर्ण थी।
जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर सीआरपीसी की धारा 439 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल का आह्वान किया था। उसके खिलाफ पुलिस स्टेशन, श्रीगुफवाड़ा, कश्मीर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट की धारा 8/15, 18 के तहत अपराध दर्ज किए गए थे।
याचिकाकर्ता ने याचिका में दावा किया कि उसके खिलाफ आरोप पत्र 7 अक्टूबर, 2021 को प्रधान सत्र न्यायाधीश, अनंतनाग की अदालत में दायर किया गया था, लेकिन प्रासंगिक समय पर, एफएसएल रिपोर्ट चार्जशीट के साथ नहीं दायर की गई थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सत्र न्यायाधीश द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों के बावजूद, याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के 180 दिनों की समाप्ति के बाद भी एफएसएल रिपोर्ट दायर नहीं की गई थी और सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक अपूर्ण और दोषपूर्ण आरोप पत्र पेश किया था, जिससे याचिकाकर्ता डिफॉल्ट जमानत का हकदार बन गया था, हालांकि फिर उसके आवेदन को सत्र न्यायाधीश ने खारिज कर दिया गया था।
निर्णय के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या एफएसएल रिपोर्ट के बिना दायर की गई चार्जशीट दोषपूर्ण है और यदि हां, तो क्या एक आरोपी, जो एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करने से पहले 180 दिनों से अधिक समय से हिरासत में है, अदालत के समक्ष, डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार है।
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36 ए और सीआरपीसी की धारा 167 के संयुक्त पठन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि किसी आरोपी को एनडीपीएस अधिनियम के तहत 180 दिनों से अधिक की अवधि के लिए किसी मामले की जांच के संबंध में हिरासत में लिया गया है तो वह जमानत पर रिहा होने का हकदार है यदि वह तैयार है और जमानत का आवेदन देता है जब तक कि विशेष अदालत ने मामले की जांच के दरमियान हिरासत की अवधि 180 दिनों से आगे नहीं बढ़ा दी है।
पीठ ने अपनी स्थिति के समर्थन में श्री सैयद मोहम्मद बनाम कर्नाटक राज्य और एक अन्य में कर्नाटक हाईकोर्ट की टिप्पणियों को दर्ज किया, जिसमें यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत मांगने का अधिकार नहीं है। केवल इसलिए कि जांच के बाद पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र/अंतिम रिपोर्ट में एफएसएल रिपोर्ट नहीं दी गई है, क्योंकि एफएसएल रिपोर्ट न दाखिल करने से आरोप पत्र सीआरपीसी की धारा 173(2) के विपरीत नहीं होगा।
मामले पर लागू कानून के बारे में विस्तार से बताते हुए पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 में प्रावधान है कि पुलिस स्टेशन प्रभारी को पुलिस की जांच पूरी होने के बाद रिपोर्ट को अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकार प्राप्त मजिस्ट्रेट को भेजना होगा।
उप-धारा (2) उन विवरणों को प्रदान करती है, जो अंतिम रिपोर्ट और धारा 173 की उप-धारा (8) में उल्लिखित हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जांच एजेंसी को मामले की आगे की जांच करने से नहीं रोका गया है और आगे की जांच के दरिमियान एकत्र किए गए सबूतों के संबंध में आगे की रिपोर्ट अग्रेषित करने से रोक नहीं गया है।
जस्टिस धर ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि मामले की जांच पूरी होने और मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतिम रिपोर्ट पेश करने के बाद जांच एजेंसी को और सबूत इकट्ठा करने और सक्षम अदालत के समक्ष पेश करने से रोक दिया जाता है और तदनुसार यह सही नहीं हो सकता है कि केवल इसलिए कि विशेषज्ञ की कुछ रिपोर्ट अंतिम रिपोर्ट के साथ नहीं है, उक्त रिपोर्ट दोषपूर्ण या अधूरी है।
कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए कहा,
"इस प्रकार, यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि मौजूदा मामले में आरोप पत्र याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के 180 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर दायर किया गया है और इसे इसके साथ संलग्न किए बिना एफएसएल रिपोर्ट को दोषपूर्ण या अपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। इसलिए याचिकाकर्ता बाध्यकारी जमानत का हकदार नहीं है।",
केस शीर्षक: अब्दुल मजीद भट बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (179)