मुस्लिम महिला द्वारा हिंदू धर्म अपनाकर हिंदू व्यक्ति से विवाह करने का मामला- उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कपल को सुरक्षा प्रदान करते हुए डीएम से पूछा, ' धर्मांतरण के आवेदन पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई?'
LiveLaw News Network
25 Dec 2020 8:15 PM IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार (23 दिसंबर) को जिलाधिकारी, हरिद्वार को निर्देश दिया है कि वे उपयुक्त अधिकारियों और व्यक्तियों से पूछताछ करें कि धर्मांतरण के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (अंजलि उर्फ अफसाना) की तरफ से दायर किए गए आवेदन पर कार्यवाही को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया और अगर ऐसा किया गया है तो कब?
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की खंडपीठ ने यह आदेश अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले एक कपल की तरफ से सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए दायर की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है, जिसमें कहा गया था कि अंजलि उर्फ अफसाना के भाई उन्हें शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
दोनों याचिकाकर्ताओं ने अदालत के सामने कहा कि वे अलग-अलग धर्मों के हैं और याचिकाकर्ता नंबर 1 ने अपना धर्म बदलकर याचिकाकर्ता नंबर 2 का हिंदू धर्म अपना लिया है। जिसके बाद उन्होंने 16 दिसम्बर 2020 को विवाह कर किया।
उन्होंने न्यायालय के समक्ष भी यह भी बताया कि उन्होंने संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
(नोट-उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 की धारा 8 (1) के अनुसार, जो व्यक्ति अपने धर्म को परिवर्तित करने की इच्छा रखता है, उसे एक निर्धारित प्रोफार्मा में, जिला मजिस्ट्रेट या डीएम द्वारा विशेष रूप से अधिकृत कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कम से कम एक महीने पहले यह घोषणा करनी होगी कि वह अपनी स्वतंत्र सहमति पर और बिना किसी बल, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या बहलावे के अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है।)
कोर्ट का आदेश
न्यायालय ने उनके साथ बातचीत की और कहा कि,
''ऐसा प्रतीत होता है कि वह साफ-साफ व स्पष्ट बोल रहे हैं और उन दोनों ने ही इस अदालत को बताया है कि निजी प्रतिवादी नंबर 3 और 4 से उन को खतरा है।''
डीएम, हरिद्वार को उपरोक्त दिशा निर्देश देते हुए, न्यायालय ने एक अंतरिम उपाय के रूप में, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हरिद्वार को निर्देश दिया है कि वे पुलिस के अधीनस्थ अधिकारियों के साथ समन्वय करें और संबंधित एसएचओ को उचित निर्देश दें, ताकि याचिकाकर्ताओं को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जा सके,''जैसा कि बताया गया है कि प्रतिवादी नंबर 3 और 4 से उनको खतरा है।''
अदालत ने प्रतिवादी नंबर 3 और 4 (लड़की के भाई) को भी नोटिस जारी किया है। प्रतिवादियों को काउंटर हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया गया है।
इस मामले में अब अगली सुनवाई 5 मार्च 2021 को होगी।
इसी से संबंधित एक मामले में पिछले दिनों ही उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून को उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 की धारा 8 (2) का पालन न करने के मामले में विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया था। उक्त कानून के तहत एक पुजारी को किसी व्यक्ति का धर्मांतरण कराने से पहले संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को पूर्व सूचना देना अनिवार्य होता है।
जस्टिस आलोक कुमार वर्मा और सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने दो मामलों में अंतर-धार्मिक जोड़ों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए उक्त निर्देश दिए थे। एक मामले में, एक हिंदू लड़की ने इस्लाम धर्म अपनाया था और दूसरे मामले में, एक मुस्लिम लड़की ने हिंदू धर्म अपनाया था।
2018 में बनाए गए उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट का उद्देश्य ''गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, खरीद-फरोख्त या किसी धोखाधड़ी से या शादी करके धर्म परिवर्तन कराने को प्रतिबंधित करते हुए धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करना था।''
संबंधित न्यायालय के आदेश
शक्ति वाहिनी बनाम केंद्र संघ व अन्य के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में अपना फैसला देते हुए कहा था कि ''जब दो वयस्क अपनी इच्छा से शादी करते हैं, तो वे अपना रास्ता चुनते हैं, वे अपने रिश्ते को पक्का करते हैं, उन्हें लगता है कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। "
सोमवार (21 दिसंबर) को कलकत्ता हाई ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन करने का फैसला करता है और अपने पैतृक घर नहीं लौटता है, तो अदालत द्वारा मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है।
इसके अलावा, नवंबर 2020 में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना था कि किसी भी बालिग व्यक्ति का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भारत के संविधान में एक मौलिक अधिकार है।
एक विवादास्पद फैसले में, जिसे बाद में कानून की नजर में खराब घोषित किया गया था, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 सितंबर 2020 को एक विवाहित जोड़े द्वारा पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
उस मामले में अदालत ने उल्लेख किया था कि लड़की जन्म से मुस्लिम थी और उसने शादी से एक महीने पहले ही अपना धर्म बदलकर हिंदू धर्म अपनाया था।
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी ने नूरजहाँ बेगम उर्फ अंजलि मिश्रा व अन्य बनाम यूपी राज्य व अन्य के मामले में वर्ष 2014 में दिए एक फैसले का उल्लेख किया था,जिसमें कहा गया था कि विवाह के उद्देश्य से धर्मांतरण अस्वीकार्य है।
इस निर्णय को रद्द करते हुए और इसे कानून की नजर में बुरा घोषित करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 नवंबर को विशेष रूप से कहा था कि ,''धर्म की परवाह किए बिना अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अंतर्भूत है।''
महत्वपूर्ण रूप से न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा था कि,
''हम यह समझने में विफल हैं कि यदि कानून एक ही लिंग के दो व्यक्तियों को भी एक साथ शांति से रहने के लिए अनुमति देता है, तो ऐसे में न तो किसी व्यक्ति और न ही परिवार या यहां तक कि राज्य द्वारा भी दो बालिग व्यक्तियों के संबंधों पर आपत्ति नहीं की जा सकती है,अगर वो अपनी मर्जी से एक साथ रह रहे हैं।''
अदालत ने आगे फैसला सुनाते हुए कहा, ''हम नूरजहाँ और प्रियांशी मामलों में दिए गए निर्णयों को अच्छा कानून नहीं मानते हैं।''
उत्तर प्रदेश सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता से संबंधित पथ-प्रदर्शक निर्णय दिए जाने के 17 दिन बाद, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 पर अपनी मोहर लगा दी थी।
केस का शीर्षक - श्रीमती अंजलि उर्फ अफसाना व अन्य बनाम बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य,रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 2168/2020
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