बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा पाए हत्या के दोषियों को फर्लो नहीं दी जा सकतीः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 July 2020 6:57 PM IST

  • बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा पाए हत्या के दोषियों को फर्लो नहीं दी जा सकतीः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एक दोषी, जिसे किसी विशेष अवधि के लिए या इस शर्त के साथ आजीवन कारावास की सजा दी गई है कि उस अवधि में उसे कोई छूट नहीं दी जाएगी, तो वह सजा की उक्त अवधि के दरमियान फर्लो का हकदार नहीं है।

    ज‌स्टिस मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ के समक्ष पेश याचिकाकर्ताओं, पहला- संजय कुमार वाल्मीकि बलात्कार और हत्या का दोषी है, उसे धारा 302/376 (2) (एफ) / 363 /201आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था और सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसमें यह शर्त ‌थी कि न्यूनतम 25 साल की अवधि की सजा बिना किसी छूट के रहेगी; जबकि दूसरे दोषी चंद्र कांत झा सीरियल किलर है, उसे धारा 302 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों में तीन तीन अलग-अलग एफआईआर में दोषी ठहराया गया था और दो एफआईआर में ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई ‌थी।

    दूसरे मामले में, हालांकि, हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की पुष्टि नहीं की थी और सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, साथ ही यह निर्देश दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग को छोड़कर दोषी का ताउम्र सजा भुगतनी होगी, उसे रिहा नहीं किया जाएगा या कोई छूट नहीं दी जाएगी।

    छूट और फर्लो देने के दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 और दिल्ली जेल नियम 2018 के प्रासंगिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा, "अभिरक्षा में एक कैदी तीन अलग-अलग उपचारों के जर‌िए दण्ड विराम पा सकता है-ट्रायल या अपील लंबित होने की स्थिति में जमानत, और दोषसिद्धी ओर सजा दिए जाने के बाद और अपील लंबित होने की स्थिति में पैरोल और फर्लो।

    यह उल्लेख किया गया कि छूट को नियम 1174 के तहत और छूट पाने की पात्रता को नियम 1175 के तहत परिभाष‌ित किया गया है। इन नियमों को एक संयोजन में पढ़ने से पता चलता है कि जब कोई कैदी साधारण छूट का पात्र नहीं होता है, तो वह एनुअल गुड कंडक्ट रिमिशन (संक्षेप में एजीएलआर) के पाने का भी पात्र नहीं होता है। एजीसीआर प्राप्त करने के लिए नियम 1178 की शर्तों के अनुसार, एक कैदी को पहले साधारण छूट के लिए पात्र होना चाहिए।

    अदालत ने कहा, "नतीजतन, एक कैदी, जिसे एक निश्चित अवधि की सजा सुनाई गई है, एनुअल गुड कंडक्ट रिपोर्ट का हकदार नहीं होगा, जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह फर्लो पाने की पात्रता है।"

    इसके अलावा, यह देखा गया कि दिल्ली जेल नियम, 2018 के नियम 1171 में जोड़ा गया नोट यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी भी कानून या अदालत ने अपने आदेश में कैदी को छूट देने से इनकार कर दिया है और यह स्‍पष्ट से नहीं किया गया है कि किस प्रकार की छूट से इनकार किया गया है तो सभी प्रकार की छूट से वंचित कर दिया जाएगा। इसलिए, जब तक कि छूट से इनकार करते हुए अदालत रोक के प्रकार का स्पष्ट रूप उल्लेख नहीं करती है, तब तक सभी प्रकार की छूट पर रोक रहेगी।

    पीठ ने कहा, "नतीजतन, याचिकाकर्ताओं को दी गई सजाओं में छूट पर रोक लगाई गई है, जैसा कि वाल्मीकि के मामले में तय वर्षों तक के लिए रोक लगाई गई है, और झा के मामले में शेष जीवन के लिए सजा सुनाई गई है, इसलिए दोनों य‌ाचिकाकर्ताओं को याचिकाकर्ताओं को छूट का पात्र नहीं माना जा सकता है और परिणामस्वरूप उन्हें फर्लो नहीं दी जा सकती है।"

    सिंगल जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में तय किया है कि पैरोल के मामले में विवेकाधिकार का प्रयोग किया जाता है, जबकि फर्लों विचाराधीन दोषी का कल्याणकारी अधिकार है, जिस दोषी दावा कर सकता है यदि वह अधिनियम और नियम की आवश्यकता को पूरा करता है। पैरोल की अनुमति आपात स्थितियों में दी जाती है, जबकि याचिकाकर्ता निर्धारित शर्तों का अनुपालन कर फर्लो पा सकता है।

    दिल्ली जेल नियम, 2018 के नियम 1171 से 1178 और नियम 1223 से यह स्पष्ट होता है कि एक कैदी केवल तभी फर्लो का हकदार होता है, जब उसने तीन एनुअल गुड कंडक्ट रिपोर्ट अर्जित की हो और परिणामस्वरूप तीन एनुअल गुड कंडक्ट रिमिशन अर्ज‌ित किया हो। जहां दोषी को छूट देने पर रोक लगाई गई हो, तीन एनुअल गुड कंडक्ट रिमिशन प्राप्त करने की पूर्व-आवश्यकता संतोषप्रद नहीं होती, और इसलिए फर्लो के प्राप्त करने अर्हता पूरी नहीं होती है।

    पीठ ने कहा, "इसलिए एक कैदी, जिसे किसी विशेष अवधि के लिए या शेष जीवन के लिए छूट नहीं दी गई है, वह फर्लो का हकदार नहीं होगा, क्योंकि वह न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ती नहीं करता है।"

    न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने न तो दिल्ली जेल अधिनियम और दिल्ली जेल नियम, 2018 के प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है और न ही यह कहा है कि नियम 1171 मामलों के एक वर्ग के संबंध में, विशेष श्रेणी बनाता है, जहां अदालतें सजा की तीसरी श्रेणी अपनाती है, यानी बिना छूट के 14 साल से अधिक कारावास, ताकत का मनमाना प्रयोग है।

    पीठ ने कहा, "नियम 1199 के तहत प्रदान की गई सजा के रूप में फर्लो की अवधि की गणना की जाती है, ऐसे दोषी को फर्लो देना, जिसे जिसे किसी विशेष अवधि के लिए छूट नहीं दी जा सकती है, सजा में मना किए जाने के बावजूद दी गई राहत के बराबर है।"

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