मुंबई कोर्ट ने ऑस्ट्रेलिया के दंपति को सरोगेट बच्चे के कानूनी माता-पिता के रूप में घोषित किया

Shahadat

10 Aug 2022 5:23 AM GMT

  • मुंबई कोर्ट ने ऑस्ट्रेलिया के दंपति को सरोगेट बच्चे के कानूनी माता-पिता के रूप में घोषित किया

    मुंबई में सिटी सिविल कोर्ट ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय जोड़े को सरोगेसी से पैदा हुए अपने बेटे के आनुवंशिक और जैविक माता-पिता के रूप में घोषित किया। इस आदेश के बाद दंपत्ति बच्चे के साथ ऑस्ट्रेलिया की यात्रा कर सकेंगे।

    दंपति ने दावा किया कि समझौते के बावजूद सरोगेट मां उनके साथ सहयोग नहीं कर रही है और ऑस्ट्रेलिया के दूतावास की कई अन्य बाधाएं और आवश्यकताएं हैं।

    माता-पिता के लिए इस तरह की राहत पाने के लिए विशिष्ट कानून के अभाव में अदालत ने उन दिशानिर्देशों पर भरोसा किया, जिनमें कहा गया कि सरोगेट मां को कानूनी मां नहीं माना जा सकता।

    कोर्ट ने कहा,

    "आईएसएमआर/एनएएमएस द्वारा एआरटी क्लीनिकों की मान्यता/पर्यवेक्षण के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों, 2005 के अनुसार, सरोगेट मां को कानूनी मां नहीं माना जाता। इस प्रकार, वादी बच्चे "नील" के जैविक और आनुवंशिक माता-पिता हैं। वे बच्चे की कस्टडी के साथ-साथ बच्चे को भारत से ऑस्ट्रेलिया ले जाने के हकदार हैं। बच्चे को उनके साथ रहने की अनुमति है।"

    अदालत ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी (एनएएमएस) और विधि आयोग पर भी भरोसा किया। इसके बाद सरोगेट मां ने भी अदालत की बात मान ली और अपनी 'अनापत्ति' दे दी।

    भारतीय मूल के दंपति पिछले 30 के दशक से ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है। उनके पास ऑस्ट्रेलिया का स्थायी वीजा हैं। मार्च, 2019 में उन्होंने सरोगेसी समझौते किया, जिसके अनुसार सरोगेट ने उनके बेटे को 30 अक्टूबर, 2019 को जन्म दिया। उन्होंने उसी वर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    समझौते के अनुसार, आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से उनके भ्रूण को उसके गर्भाशय में स्थानांतरित करने के एक महीने बाद सरोगेट अपने बच्चे को देने के लिए सहमत हो गई। यह स्पष्ट रूप से तय है कि दंपति बच्चे के कानूनी माता-पिता और प्राकृतिक अभिभावक होंगे। इससे सरोगेट को कोई आपत्ति नहीं होगी।

    समझौते के आधार पर दंपति ने सरोगेट मां को मेडिकल और वित्तीय सहायता दी।

    सरोगेट मां पेश हुई और उसने अपना लिखित बयान दाखिल किया। उसने समझौते को स्वीकार कर लिया। उसने आगे प्रस्तुत किया कि उसे कोई आपत्ति नहीं है यदि वादी को बच्चे की कस्टडी दी जाती है, भारत से बच्चे को लेने की अनुमति दी जाती है और बच्चे के कानूनी माता-पिता के रूप में उनकी घोषणा की जाती है।

    अदालत ने कहा,

    "इस प्रकार, उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, मेरा विचार है कि वादी द्वारा प्रार्थना की गई डिक्री देने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।"

    केस टाइटल : मिस्टर निताल भगवान तावड़े और अन्य बनाम श्रीमती संजना कटे

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