एमएसईएफ काउंसिल खरीदार के अनुरोध पर आपूर्तिकर्ता के खिलाफ स्वतंत्र दावों पर विचार नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
10 July 2023 10:05 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एमएसईएफ काउंसिल एमएसएमईडी एक्ट के तहत खरीदार के अनुरोध पर दायर किए गए स्वतंत्र दावों/संदर्भों पर विचार नहीं कर सकती।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की पीठ ने कहा कि एमएसएमईडी एक्ट विक्रेता से किसी भी धन वसूली के लिए एक्ट की धारा 18 के तहत सुविधा काउंसिल से संपर्क करने वाले खरीदार के लिए किसी योजना पर विचार नहीं करता है। यह केवल विक्रेता है, जो अपने दावों पर निर्णय के लिए स्वतंत्र रूप से सुविधा काउंसिल से संपर्क कर सकता है, लेकिन खरीदार को प्रति-दावा करने का अधिकार होगा। हालांकि, वह स्वयं सुविधा काउंसिल से संपर्क नहीं कर सकता है।
मामले के तथ्य
पक्षकारों ने दिनांक 17.10.2019 को समझौता किया। अनुबंध के तहत याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को श्रम, सामग्री उपकरण आदि सहित वस्तुओं और सेवाओं के साथ-साथ निगरानी सेवाओं के लिए इंजीनियरों और पर्यवेक्षकों की आपूर्ति करनी थी।
समझौतों के तहत भुगतान को लेकर पक्षकारों के बीच विवाद पैदा हुआ। तदनुसार, प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता को कानूनी नोटिस जारी किया। इसके बाद प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता द्वारा जारी बैंक गारंटी को जब्त कर लिया। प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता द्वारा गैर-प्रदर्शन का हवाला देते हुए समझौते को भी समाप्त कर दिया।
इसके बाद प्रतिवादी ने एमएसएमईडी एक्ट, 2006 की धारा 18 के तहत एमएसएफई काउंसिल के समक्ष दावा दायर किया। नतीजतन, काउंसिल ने अपने आदेश दिनांक 14.09.2021 के जरिए याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को 9,59,66,352/- रुपये का भुगतान करने की सलाह दी। ट्रिब्यूनल के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने आदेश के साथ-साथ ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पार्टियों का विवाद
याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित आधारों पर काउंसिल के आदेश को चुनौती दी:
1. याचिकाकर्ता को प्रतिवादी से दिनांक 30.06.2021 का कोई कानूनी नोटिस नहीं मिला है और विवादित आदेश में इसे गलत बताया गया।
2. काउंसिल यह समझने में विफल रही कि प्रतिवादी एमएसएमईडी एक्ट के तहत खरीदार है और केवल विक्रेता के दावों पर एक्ट की धारा 18 के तहत निर्णय लिया जा सकता है। इसलिए काउंसिल ने मामले को बिना किसी अधिकार क्षेत्र के पारित कर दिया।
3. प्रतिवादी मध्यम उद्यम है, इसलिए वह एक्ट की धारा 18 के तहत काउंसिल के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने का हकदार नहीं है।
4. काउंसिल द्वारा क्रेता के दावों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं लिया जा सकता है और विक्रेता के दावों के जवाब में वह जो प्रतिदावा दाखिल करता है, उस पर ही काउंसिल निर्णय ले सकती है।
5. एमएसएमईडी एक्ट, 2006 की योजना में विक्रेताओं से किसी भी पैसे की वसूली के लिए एमएसईएफसी से संपर्क करने वाले खरीदार की परिकल्पना नहीं की गई। एमएसएमईडी एक्ट, 2006 के तहत इस पर विचार नहीं किया गया।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर उपरोक्त कथन का प्रतिवाद किया:
1. सिल्पी इंडस्ट्रीज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि दावे और प्रतिदावे दोनों एमएसईएफ काउंसिल के समक्ष विचारणीय हैं।
2. एमएसएमई पारिस्थितिकी तंत्र त्वरित निर्णय और ब्याज का उच्च भुगतान प्रदान करता है। इसलिए एमएसईएफसी के अधिकार क्षेत्र को वर्जित नहीं किया जा सकता।
3. एमएसएमईडी एक्ट, 2006 की धारा 2(9) के अनुसार दावे और प्रतिदावे को एक ही स्थान पर रखा गया। इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा किया गया अंतर कानून में मान्य नहीं होगा।
4. जब विवाद उत्पन्न हुआ और दावा किया गया, उस समय प्रतिवादी छोटा उद्यम है।
5. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा जारी 18 अक्टूबर, 2022 की अधिसूचना के अनुसार, मध्यम उद्यम भी अपने पुन: वर्गीकरण के बाद तीन साल की अवधि के लिए एमएसईएफसी के अधिकार क्षेत्र का उपयोग जारी रख सकता है।
न्यायालय द्वारा विश्लेषण
न्यायालय ने एमएसएमईडी एक्ट, 2006 के उद्देश्य और कारणों के विवरण (एसओएआर) का उल्लेख किया और पाया कि यह विनिर्माण क्षेत्र में लगे लघु उद्योगों को समर्थन देने और सेवा क्षेत्र को व्यापक तरीके से उक्त समर्थन प्रदान करने के लिए लागू किया गया। इसने आगे देखा कि एक्ट का अध्याय V छोटे पैमाने और सहायक औद्योगिक उपक्रमों को विलंबित भुगतान अधिनियम, 1993 के प्रावधानों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य आपूर्तिकर्ता को भुगतान करने के लिए खरीदारों पर वैधानिक दायित्व बनाना था।
न्यायालय ने माना कि एक्ट की धारा 18 के तहत विवाद का कोई भी पक्षकार एक्ट की धारा 17 के तहत देय किसी भी राशि के संबंध में एमएसईएफसी को संदर्भ दे सकता है। एक्ट की धारा 17 बदले में एक्ट की धारा 16 को संदर्भित करती है और ए्क्ट की धारा 16 बदले में एक्ट की धारा 15 को संदर्भित करती है। इस प्रकार, एमएसएमईडी एक्ट, 2006 की धारा 15 से 18 एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और अध्याय के टाइटल्स यानी अध्याय V: सूक्ष्म और लघु उद्यमों को विलंबित भुगतान से भी जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार, संपूर्ण अध्याय V केवल सूक्ष्म और लघु उद्यमों को विलंबित भुगतान के संबंध में लागू होता है। अध्याय V एक्ट की धारा 2(जी) के तहत मध्यम उद्यमों को बाहर करता है।
न्यायालय ने माना कि एक्ट की धारा 17 स्थिति को पर्याप्त रूप से संबोधित करती है और क़ानून को पढ़ने से पता चलता है कि एक्ट ऐसी स्थिति से निपटता नहीं है, जहां खरीदार आपूर्तिकर्ता के खिलाफ दावा करता है। इसे केवल आपूर्तिकर्ताओं द्वारा वसूली योग्य दावों के संबंध में स्पष्ट रूप से लागू करता है, जो एक्ट के तहत सूक्ष्म या लघु उद्यम के रूप में रजिस्टर्ड हैं, इसलिए खरीदार एमएसएमईडी एक्ट के तहत आपूर्तिकर्ता के खिलाफ स्वतंत्र दावा नहीं कर सकता है।
न्यायालय ने माना कि एक्ट की धारा 17 के तहत देय राशि केवल क्रेता द्वारा आपूर्तिकर्ता को भुगतान की जाने वाली राशि हो सकती है, अन्यथा नहीं। इस प्रकार, यह स्पष्ट किया गया कि एक्ट की धारा 18 की भाषा यानी "विवाद के किसी भी पक्ष" को खरीदार द्वारा आपूर्तिकर्ता के खिलाफ दावे तक नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि यह एक्ट की धारा 17 के तहत देय राशि के संबंध में ही योग्य है।
तदनुसार, न्यायालय ने न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: यूनिसेवन इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लिमिटेड बनाम एमएसईएफ परिषद जिला (दक्षिण) और अन्य। डब्ल्यू.पी.(सी) 11233/2021
दिनांक: 05.07.2023
याचिकाकर्ता के वकील: अनिरुद्ध बाखरू, आयुष पुरी, उमंग त्यागी, कनव मदनानी, विजय लक्ष्मी राठी और प्रज्ञा चौधरी।
प्रतिवादी के लिए वकील: आर-1 के लिए जवाहर राजा, एएससी, जीएनसीटीडी की ओर से आरुषि गुप्ता, डॉ. अमित जॉर्ज और साहिल गर्ग, आर-2 के लिए वकील
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