केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख‌िलाफ COVID प्रोटोकॉल के कथित उल्लंघन के आरोप में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दिया एफआईआर दर्ज करने का आदेश

LiveLaw News Network

22 Oct 2020 10:49 AM GMT

  • केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख‌िलाफ COVID प्रोटोकॉल के कथित उल्लंघन के आरोप में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दिया एफआईआर दर्ज करने का आदेश

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि सख्त आदेशों के बावजूद, राज्य में उम्मीदवारों, राजनीतिक / सरकारी / राज्य पदाधिकारियों द्वारा राजनैतिक सभाओं को संबोधित किया गया है, मंगलवार (20 अक्टूबर) को अपने आदेश में बहुत ही कठोर शब्दों में कहा,

    "चुनाव प्रचार में लोकप्र‌ियता पाने के परम उद्देश्य से अधिक से अधिक और बड़ी सभाओं को संचालन करना राजनीतिक दलों का साझा एजेंडा प्रतीत होता है। यह स्पष्ट रूप से देश के उन भोले और निर्दोष नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन की कीमत पर किया जाता है, जो समाज के निचले तबके से आते हैं और जो इस तरह की सभाओं में शामिल होने से जीवन को होने वाले खतरों से अनजान हैं।"

    जस्टिस शील नागू और जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ, राज्य में राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित सभाओं को प्रतिबंधित करने की कार्रवाई करने के लिए उत्तरदाता अधिकारियों के लिए निर्देश मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    बेंच ने, विशेष रूप से, दतिया और ग्वालियर के जिलाधिकारियों को ‌निर्देश दिया किया कि COVID-19 प्रोटोकॉल के उल्लंघन के संज्ञेय अपराध के कथित कृत्य के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो, यह सुनिश्चित करें।

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता (आशीष प्रताप सिंह) के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि मोदी हाउस, लैंडमार्क होटल के विपरीत, ग्वालियर के सामने केंद्रीय मंत्री और मुरैना के सांसद नरेंद्र सिंह तोमर मौजूद थे और उन्होंने राजनीतिक सभा को संबोधित किया, जबकि मंत्री तोमर के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।

    न्यायालय को यह भी सूचित किया गया कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की मौजूदगी में भांडेर, जिला दतिया (मप्र) में 05.10.2020 को सभा हुई, लेकिन कमलनाथ के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।

    याचिका पर उपरोक्त निर्देश के अलावा न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया-

    1. इस न्यायालय के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले सभी नौ जिलों के जिला मजिस्ट्रेटों को किसी भी उम्मीदवार/ राजनीतिक दल को किसी भी संख्या में भीड़ जुटाने की अनुमति देने से रोका जाता है, जब तक कि इस तरह की सभा के लिए आवेदन करने वाला राजनीतिक दल संबंध‌ित जिला मजिस्ट्रेट को संतुष्ट नहीं कर पाता कि आभासी चुनाव अभियान का संचालन संभव नहीं है और जिला मजिस्ट्रेट आभासी अभियान चलाने में उम्मीदवार / राजनीतिक दलों की अक्षमता संतुष्ट होने के कारण की रिकॉर्डिंग करते हुए सकारण आदेश पास करता है।

    2. जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किसी भी राजनीतिक दल को सभा करने की अनुमति देने के आदेश, भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा लिखित रूप से अनुमोदित करने के बाद ही प्रभावी होगा।

    3. जिला मजिस्ट्रेट और चुनाव आयोग द्वारा अनुमति दिए जाने पर भी सभा तभी हो सकती है, जब सभा करने का इरादा रखने वाले राजनीतिक दल/ उम्मीदवार जिला मजिस्ट्रेट के पास इतना धन जाम करते हैं, जो सभा में मौजूद लोगों की सुरक्षा के लिए, उनकी संख्या से दोगुना मास्क और सैन‌िटाज़र खरीदने और लोगों को सैन‌िटाइज करने के लिए पर्याप्त है और यह भी कि जब कोई उम्मीदवार शपथ पत्र पर वचन दे कि वह सभा / कार्यक्रम शुरू होने से पहले सभा में शामिल सभी सदस्यों को मास्क और सैनिटाइज़र वितरित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा।

    केस की पृष्ठभूमि

    18 सितंबर को, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने, विशेष रूप से, कहा था कि "कानून, वैधानिक हो या कार्यकारी निर्देशों के रूप में हो, जितने सम्मान और आज्ञाकारिता का हकदार एक आम आदमी से है, उतना एक नेता, एक राजनीतिक अधिकारी और यहां तक ​​कि राज्य के मुख‌िया से भी है।"

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने शनिवार (03 अक्टूबर) को जनहित में राज्य में राजनीतिक सभाओं को रोकने के लिए कुछ अंतरिम आदेश पारित किए थे, (विशेष रूप से खंडपीठ के क्षेत्राधिकार में आने वाले 9 जिलों में)।

    जस्टिस शील नागू और राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया था कि वे राजनीतिक / सरकारी / राज्य या सामाजिक कार्यकारियों के ‌खिलाफ DMA, IPC के प्रावधानों को लागू करें। (पैरा (E) के आदेश के दिनांक 03.10.2020) के दंडात्मक प्रावधानों को लागू करें।)

    इसके अलावा, सोमवार (12 अक्टूबर) को कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेटों को IA6084 / 2020 की सामग्री] जिसमें याचिकाकर्ता ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित सभाओं और एमिकस क्यूरिया की तीन रिपोर्टों की सामग्री, को, सेक्‍शन 154 सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराध दर्ज करने के उद्देश्य से पहली सूचना के रू में प्रयोग करने का निर्देश दिया ‌था।

    20 अक्टूबर को कोर्ट की कार्यवाही

    इस मामले में एमिकस क्यूरिया ने अदालत का ध्यान अपनी चौथी रिपोर्ट की ओर खींचा, जिसमें ऐसी और भी कई सभाएं का खुलासा हुआ, जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया गया था और मास्क नहीं पहना गया था, फिर भी सभाओं को राजनीतिक/ सरकारी/ राज्य पदाधिकारियों द्वारा संबोधित किया गया था।

    महत्वपूर्ण रूप से, जब नरेंद्र सिंह तोमर और कमलनाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करने के मामले पर सवाल किया गया तो अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत को आश्वासन दिया कि तोमर और कमलनाथ के खिलाफ सेक्‍शन 154 के तहत एफआईआर दर्ज की जाएगी, जैसा कि सभा के आयोजकों और उम्मीदवारों के खिलाफ दर्ज किया गया है।

    "चुनाव प्रचार के अधिकार और स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार के बीच, स्वास्थ्य और जीवन का अधिकार प्रबल रहता है।"

    न्यायालय ने कहा कि चुनाव अभियान निश्चित रूप से चुनाव की प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि जीवन का अधिकार उच्‍च और पवित्र अधिकार है, संविधान के अनुच्छेद 21 क तहत जिसकी गारंटी दी गई है।

    न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह बेंच के क्षेत्रीय अधिकार के अंतर्गत आने वाले सभी नौ जिलों के अतिरिक्त महाधिवक्ता और जिला मजिस्ट्रेट को आदेश के बारे में अवगत राएं।

    उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक वीडियो संदेश के जर‌िए बताया है कि कि मध्य प्रदेश सरकार ने राजनीतिक रैलियों को प्रतिबंधित करने के हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

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