विकलांगता अंग-भंग का परिणाम न हो तब भी 'भविष्य की संभावनाओं की क्षति' के लिए मोटर दुर्घटना मुआवजा दिया जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
7 Jun 2022 12:26 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना मुआवजे के मामलों में 'भविष्य की संभावनाओं की क्षति' को ध्यान में रखना होगा। यह इस तथ्य के बावजूद होगा कि यह मृत्यु का मामला नहीं है, बल्कि एक ऐसी चोट का मामला है, जिससे पूरा शरीर अपंग हो गया है, जबकि किसी भी प्रकार का अंग-विच्छेदन (amputation) नहीं हुआ है। अपंगता के कारण कमाई की क्षमता में कमी होना संभव है।
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस पी कृष्णा भट की खंडपीठ ने कहा,
"विज्ञान में मानव जाति की विशाल प्रगति और मानव मस्तिष्क की विदग्धता के बावजूद, वह अभी तक ऐसे बैरोमीटर का आविष्कार करने या गणितीय शुद्धता के साथ सटीक अनुमान लगाने की ऐसी वैज्ञानिक विधि खोज पाने में सक्षम नहीं हो पाया है, जिससे दुर्घटना में हुई शारीरिक अक्षमता और पीड़ित के कमाने की क्षमता में भविष्य में होने कमी के बीच संबंध का आंकलन किया जा सके। निश्चित रूप से इस डोमेन में एक समझदारी भरे अनुमान की आवश्यकता है।"
कोर्ट ने इन्हीं टिप्पणियों के साथ मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण की ओर से एक दावेदार अब्दुल तहसीलदार को दिए मुआवजे को बरकरार रखा और इस तथ्य के मद्देनजर राशि को संशोधित किया कि "दुर्घटना के समय उसकी आयु लगभग 40 वर्ष थी, उसकी तय आय का 25% 'भविष्य की संभावनाओं की क्षति' के रूप में मुआवजे में शामिल किया जाना चाहिए।" पीड़ित पेशे से दर्जी था।
मामला
2019 में केएसआरटीसी बस में केरूर से हुबली लौटते हुए दावेदार को गंभीर चोटें आईं। बस सड़क पर गलत तरीके से खड़ी एक लॉरी से टकरा गई थी। ट्रिब्यूनल ने उनकी दावा याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और ब्याज के साथ 5,23,000 रुपये का मुआवजा दिया।
भुगतान करने के दायित्व को एक ओर प्रतिवादी संख्या एक और दो (सार्वजनिक बस विभाग) और दूसरी ओर प्रतिवादी संख्या तीन और चार (अपराधी चालक और बीमा कंपनी) के बीच 70:30 के अनुपात में विभाजित किया गया।
लॉरी के बीमाकर्ता ने ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ एक अपील दायर की। दावेदार ने भी मुआवजे बढ़ाने की मांग करते हुए अपील दायर की।
बीमा कंपनी की दलील
बीमा कंपनी ने ट्रिब्यूनल द्वारा विकलांगता के कारण भविष्य की कमाई क्षमता के नुकसान के तहत किए गए मुआवजे के अवॉर्ड पर सवाल उठाया।
यह दलील दी गई कि मेडिकल एक्सपर्ट के साथ-साथ दावेदार के साक्ष्य स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं, और इस आधार पर, ट्रिब्यूनल की ओर से यह निष्कर्ष निकालना अनुचित है कि दावेदार को विकलांगता के कारण भविष्य की कमाई क्षमता में नुकसान हुआ था। ट्रिब्यूनल द्वारा किए गए दावेदार की कमाई क्षमता के आकलन पर असर डालने वाली शारीरिक अक्षमता की सीमा पर भी सवाल उठाया गया।
निष्कर्ष
पीठ ने पाया कि दावेदार पेशे से दर्ज था, जिसके लिए "शरीर का सक्षम होना", विशेष रूप से "निचले अंगों की पूरी तरह काम करना" आवश्यक होता है।
पीठ ने बीमा कंपनी के इस तर्क को खारिज किया कि भविष्य की संभावनाओं के नुकसान के घटक को भविष्य की कमाई क्षमता के नुकसान के तहत मुआवजा देने में तभी शामिल किया जा सकता है, जहां अंग विच्छेदन के कारण विकलांगता पैदा होती है।
पीठ ने कहा,
"संदीप खानूजा बनाम अतुल दांडे, जगदीश बनाम मोहन और अन्य और इरुधाया प्रिया बनाम स्टेट एक्सप्रेस ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड 6 2020 SCC ऑनलाइन SC 601 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्णयों में ऐसा कोई अंतर नहीं किया गया है।"
पीठ ने तदनुसार दोनों अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार किया और कहा, "दावाकर्ता विद्वान न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए 5,23,000 रुपये के मुकाबले कुल 6,11,000 रुपये के मुआवजे का हकदार है। कुल मुआवजे पर ब्याज 9% प्रति वर्ष होगा, जो @ 26 जुलाई 2016 से प्रभावी होगा।"
केस टाइटल: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम अब्दुल S/Oमहबूब तहसीलदार, और C/W मामला।
केस नंबर: MISCELLANEOUS FIRST APPEAL NO. 103807 OF 2016
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 192