आधिकारिक रिकॉर्ड में एंट्री किए बिना पुलिस ने मां-बेटी को हिरासत में रखाः पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिया दो लाख रुपए का मुआवजा

LiveLaw News Network

8 Oct 2020 7:38 AM GMT

  • आधिकारिक रिकॉर्ड में एंट्री किए बिना पुलिस ने मां-बेटी को हिरासत में रखाः पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिया दो लाख रुपए का मुआवजा

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मंगलवार (06 अक्टूबर) को अवैध हिरासत के मामले में, राज्य सरकार को मां-बेटी को एक-एक लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    जस्टिस राजीव शर्मा और हरिंदर सिंह सिद्धू की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच की राय से सहमति जताई कि मां-बेटी को दो दिन तक थाने में रखना, वह भी बिना रोजनामचा में एंट्री के और बिना जिला/ इल्लाका मजिस्ट्रेट को बताए, अवैध हिरासत के बराबर है।

    मामले के तथ्य

    02.09.2019 को, हरविंदर कौर (बंदी) ने पुलिस स्टेशन, मोरिंडा, जिला रूपनगर में एक शिकायत की, कि उनके घर में पड़े सामान को सिमरनजीत सिंह, काका सिंह, सोढ़ी सिंह आदि चुरा रहे हैं।

    उसके बाद पुलिस अधिकारी ने शिकायतकर्ता (हरविंदर कौर) और उसकी बेटी रूपिंदर कौर मौके पर गए। वहां, सब-इंस्पेक्टर ने पाया कि हरविंदर कौर के पति पलविंदर सिंह के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है।

    जब पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे, तब एक समूह ने हरविंदर (मा) और रूपिंदर (बेटी) को पीटना शुरू कर दिया।

    महिला पुलिस अधिकारियों के संरक्षण में पुलिस ने हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर को घर से निकालने की कोशिश की, जिस पर भीड़ ने दोनों महिलाओं को मारने के इरादे से उन पर लाठी और पत्थरों से हमला किया।

    भीड़ को रोकने में असफल रहने पर, ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया ताकि हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर की जान बचाई जा सके।

    भीड़ ने सरकारी और निजी वाहनों को भी नुकसान पहुंचाया। काफी संघर्ष के बाद हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर को बचाया जा सका।

    पुलिस ने धारा 307, 452, 342, 352, 353, 186, 332, 506, 509, 148, 149 आईपीसी के तहत पुलिस स्टेशन मोरिंडा, जिला रूपनगर में काका सिंह, नागर सिंह, गोरखा, शिंदा सिंह और अज्ञात व्यक्त‌ियों के ख‌िलाफ के खिलाफ एफआईआर नंबर 55 दर्ज की।

    यह कहा गया कि यह अवैध हिरासत का मामला नहीं था। हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर, दोनों को वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, ड्यूटी मजिस्ट्रेट, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट की उपस्थिति और निगरानी में पुलिस ने मौके से बचाया था।

    यह सद्भाव में था और क्रोधित भीड़ से उनकी रक्षा के लिए, उन्हें (बंदियों को) पुलिस स्टेशन सिटी रूपनगर में रहने की अनुमति दी गई थी, जब तक कि स्थिति सामान्य नहीं हो जाती।

    समय की आवश्यकता थी कि बिना जोखिम लिए हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर की को पूर्ण सुरक्षा दी जाए।

    इसके अलावा, हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर दोनों ने अपने बयानों में कहीं भी पुलिस थाने में किसी भी तरह की दुर्भावना या उत्पीड़न की बात नहीं कही।

    सिंगल जज का अवलोकन

    सिंगल जज ने निष्कर्ष निकाला कि वारंट ऑफिसर की रिपोर्ट से पता चलता है कि दोनों बंदियों को पुलिस स्टेशन, सिटी रोपड़ में कानून के अनुसार किसी भी प्रक्रिया का पालन किए बिना अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था।

    कोर्ट ने कहा था कि, "अगर यह स्वीकार किया जाए कि कुछ व्यक्तियों ने उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, तब भी, दोनों को दो दिनों तक पुलिस स्टेशन में नहीं रखा जा सकता है, वह भी कि रोजनामचा में एंट्री किए बिना और जिला/ इल्लाका मजिस्ट्रेट को को सूचित किए बिना। बंदियों को किसी भी अदालत में पेश नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट था कि उन्हें एक हत्या के मामले में परविंदर सिंह की उपस्थिति प्राप्त करने के लिए पुलिस स्टेशन में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था। "

    यह स्वीकार करते हुए कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन था, यह कहा गया कि गलत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और बंद‌ियों को क्षतिपूर्ति दिए जाने की आवश्यकता है।

    नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी करने / निर्देश जारी करने आदि के लिए मामले को तब एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया था।

    कोर्ट का अवलोकन और निर्णय

    जज सिंगल जज के 09.09.2019 के आदेश के बाद डिविजन बेंच के समक्ष मामले को सूचीबद्ध किया गया था।

    डिवीजन बेंच का विचार था कि भले ही यह स्वीकार कर लिया जाए कि कुछ व्यक्तियों ने बंदियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, फिर भी, दोनों को दो दिनों तक पुलिस थाने में नहीं रखा जा सका, वह भी रोजनामचा में भी एंट्री किए बिना और जिला/ इल्लाका मजिस्ट्रेट को सूचित किए बिना।

    कोर्ट ने कहा, "उनकी हिरासत को अवैध के सिवाय कुछ नहीं है।"

    अदालत ने आगे टिप्पणी की, "अगर इस तरह की कार्रवाई की निंदा नहीं की जाती है, तो इसका गंभीर दुरुपयोग होने का खतरा होगा। कानून की आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं का कड़ाई से अनुपालन करना होगा। यह अच्छी तरह से तय है कि उचित मामलों में अदालतें अवैध हिरासत के लिए मुआवजा दे सकती हैं।"

    तदनुसार, इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, प्रतिवादी-राज्य को हरविंदर कौर और रूपिंदर कौर को हिरासत में लेने के लिए एक लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया।

    अदालत ने आगे निर्देश दिया कि उक्त रा‌शि को दोषी अधिकारियों से बरामद किया जा सकता है, जिन्होंने उन्हें हिरासत में रखा था।

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