मोरबी त्रासदी | "पुल की 'गंभीर' स्थिति के बारे में चेतावनियों को सिविक बॉडी ने नज़रअंदाज़ किया; परिजनों के लिए प्रस्तावित मुआवजा पर्याप्त नहीं": गुजरात हाईकोर्ट
Avanish Pathak
24 Nov 2022 3:20 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी पुल दुर्घटना संबंधित मामले की सुनवाई में गुरुवार को कहा कि मोरबी सिविक बॉडी ने निजी ठेकेदार (एम/एस अजंता) की ओर से मोरबी सस्पेंशन ब्रिज की 'गंभीर स्थिति' के बारे में दी गई चेतावनी को नजरअंदाज किया था। हादसे में 135 लोगों की जान चली गई थी।
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की पीठ ने कहा कि अजंता कंपनी और मोरबी सिविक बॉडी/नगर पालिका के बीच पत्राचार टिकटों की कीमतों और अनुबंध को कायम रखने पर अधिक केंद्रित रहा बजाय कि पुल की मरम्मत पर ध्यान दिया जाता, जो नाजुक अवस्था में था।
कोर्ट ने आगे कहा कि 8 मार्च 2022 को सिविक बॉडी और अजंता के बीच हस्ताक्षर किए गए समझौता ज्ञापन/समझौते को सिविक बॉडी की जनरल बॉडी ने अनुमोदित नहीं किया था।
न्यायालय ने राज्य सरकार से भी सवाल किया कि राज्य ने गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 263 के तहत नगर पालिका को अधिक्रमण करने की शक्ति का प्रयोग क्यों नहीं किया। यह प्रावधान राज्य को शक्ति के दुरुपयोग, डिफ़ॉल्ट आदि के मामले में एक नागरिक निकाय को भंग करने की अनुमति देता है।
हालांकि, चूंकि राज्य ने कहा कि वह इस संबंध में कोई निर्णय लेने से पहले इस मामले पर एसआईटी की रिपोर्ट जमा करने की प्रतीक्षा कर रहा था। अदालत ने इस मुद्दे से संबंधित कोई भी टिप्पणी करने से परहेज किया, हालांकि यह जोड़ा कि आपदा या त्रासदी, प्रथम दृष्टया, अलग नहीं की जा सकती।
इसके अलावा, कोर्ट ने राज्य से यह भी पूछा कि उसने मोरबी म्यूनिसिपल कमेटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसवी जाला द्वारा क्या कार्रवाई की है। इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने पीठ को बताया कि वह एसआईटी की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।
इस पर चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने कहा कि कम से कम उनके खिलाफ ड्यूटी में लापरवाही की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए थी। सीजे कुमार ने कहा, "आप इसे अपने दम पर करें वरना हम निर्देश जारी करेंगे।"
सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने मोरबी नगर पालिका से भी सवाल किया कि उसने मेसर्स अजंता को अगस्त 2017 (जब कलेक्टर और अजंता के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे) और मार्च 2022 के बीच पुल के रखरखाव की अनुमति क्यों दी ( जब पुल की मरम्मत के लिए नगर पालिका और अजंता के बीच नए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे)।
"अगस्त 2017 से मार्च 2022 के बीच मोरबी सिविक बॉडी क्या कर रही थी? जिस अवधि के दौरान पुल के रखरखाव के लिए कोई समझौता/एमओयू नहीं हुआ था। किसने अजंता को पुल के रखरखाव की अनुमति दी थी? पुल मार्च 2022 में ही बंद कर दिया गया था, क्या उससे पहले की 5 साल की अवधि के बारे में क्या कहेंगे? आप अपनी निष्क्रियता को कैसे स्पष्ट करेंगे?"
पीड़ितों/आश्रितों के लिए प्रस्तावित मुआवजा
कोर्ट ने पीड़ितों और मृतक व्यक्तियों के परिजनों को दिए जाने वाले प्रस्तावित मुआवजे को भी नामंजूर कर दिया। कोर्ट ने पाया कि मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को 4 लाख का मुआवजा पर्याप्त नहीं था।
"हम पीड़ितों के परिवारों को दिए जा रहे मुआवजे से संतुष्ट नहीं हैं। एक परिवार को कम से कम 10 लाख रुपये मुआवजे के रूप में मिलना चाहिए ... जहां तक मृतक के परिवार को भुगतान किए जाने वाले मुआवजे का सवाल है और अन्य गंभीर घायलों का संबंध है, यह निचले स्तर पर है। मुआवजा यथार्थवादी होना चाहिए। हमें आशा और विश्वास है, इसे उठाया जाएगा।"
सीजे अरविंद कुमार ने राज्य को मुआवजे के मूल्यांकन में मोटर वाहन दुर्घटना मामलों में उपयोग में आने वाले नियमों का इस्तेमाल करने के लिए कहा।
इसके अलावा, जब महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अदालत को सूचित किया कि माता-पिता को खोने वाले बच्चों को 3000 रुपये मासिक का भुगतान किया जाएगा, तो सीजे कुमार ने इस प्रकार टिप्पणी की, "यह क्या है महाधिवक्ता महोदय? यह पैसा केवल यूनिफॉर्म और किताबों के लिए भी कम है।"
इस घटना में सात बच्चे अनाथ हो गए और 12 बच्चों ने अपने माता-पिता में से एक को खो दिया।
सुनवाई के दौरान एजी त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि गुजरात सरकार को करीब 5 करोड़ रुपये मिले हैं। पीठ को राज्य के हलफनामे के माध्यम से आगे बताया गया कि अडानी समूह ने सीएसआर देनदारी के रूप में 25 लाख रुपये का दान दिया है।
इसके अलावा, अदालत ने (मुआवजा प्रदान करने के लिए प्राप्त) सभी राशियों का ब्रेक-अप भी मांगा कि मुख्यमंत्री राहत कोष, प्रधनमंत्री राहत कोष से कितनी और निजी से दाताओं से कितनी राशि प्राप्त हुई है। राज्य सरकार को मृतक व्यक्तियों के आश्रितों/रिश्तेदारों का विवरण प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया था।