मोरबी त्रासदी| गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि मेसर्स अजंता और सिविक बॉडी के बीच मिलीभगत थी

Avanish Pathak

25 Jan 2023 12:09 PM GMT

  • मोरबी त्रासदी| गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि मेसर्स अजंता और सिविक बॉडी के बीच मिलीभगत थी

    मोरबी त्रासदी में दायर स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई के दरमियान गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि एक संभावित निष्कर्ष यह है कि सिविक बॉडी और मैसर्स अजंता के बीच मिलीभगत थी।

    उल्लेखनीय है कि अजंता के पास ही पुल का प्रबंधन था।

    चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और ज‌स्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने यह मौखिक टिप्पणी मोरबी सिविक बॉडी की ओर से पेश एएसजी देवांग व्यास की प्रस्तुतियों के बाद की, जिन्होंने कहा कि निकाय ने मैसर्स अजंता (19 जनवरी, 2022 को) को कहा था कि यदि वह मौजूदा नियमों की शर्तों पर पुल को बनाए रखने पर सहमत नहीं है तो वह पुल उसे सौंप सकता है।

    चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने इस बिंदु पर मेसर्स अजंता के हलफनामे का अध्ययन करने के बाद कहा, "आपने पुल की जिम्मेदारी क्यों नहीं ली? यह आपका पुल है। आपको अपनी जनता की सुरक्षा की चिंता है। आपने इसे अजंता से वापस क्यो नहीं ले लिया?..."

    जब एएसजी व्यास ने बताया कि कंपनी ने नागरिक निकाय या राज्य सरकार को सूचित किए बिना सार्वजनिक उपयोग के लिए पुल खोला और पुल की स्थिति के संबंध में कोई फिटनेस प्रमाण पत्र भी नहीं दिया, चीफ जस्टिस कुमार ने मौखिक रूप से कहा,

    "आप (नागरिक निकाय) क्या कर रहे थे? आप राज्य के साधन हैं, आप कानून से लैस हैं, आपने उन्हें पुल खोलने की अनुमति क्यों दी? ... आप जो कहते हैं, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि आप दोनों के बीच मिलीभगत थी।"

    पीठ ने आगे कहा कि निकाय अदालत के इस सवाल का जवाब देने में विफल रही कि मैसर्स अजंता को 29/12/2021 से 7/3/2022 को बंद होने तक पुल का उपयोग करने की अनुमति कैसे दी गई।

    पीठ ने आगे कहा कि मैसर्स अजंता बिना अथॉरिटी के पुल का उपयोग कर रहा था।

    पीठ ने यह भी कहा कि नागरिक निकाय या राज्य सरकार की ओर से इसके उपयोग के लिए कोई मंजूरी नहीं होने के बावजूद मैसर्स अजंता पुल का उपयोग कर रहा था और जब 8 मार्च, 2022 को इसके रखरखाव के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, तो उसे मोरबी सिविक बॉडी की जनरल बॉडी ने भी अनुमोदित नहीं किया था।

    कोर्ट ने ने राज्य में कुल पुलों की संख्या और उनके रखरखाव की स्थिति के संबंध राज्य सरकार की ओर से पेश हलफनामे को भी देखा। राज्य ने हलफनामे में कहा कि 40 पुलों की मामूली मरम्मत की आवश्यकता थी, और 23 की बड़ी मरम्मत की आवश्यकता है। कुल 63 पुलों में से 27 पुलों में मरम्मत का काम किया गया है।

    यह दर्ज करते हुए कि 27 पुलों के संबंध में मरम्मत का काम पहले ही पूरा हो चुका है और शेष 37 पुलों पर काम चल रहा है, अदालत ने राज्य को युद्ध स्तर पर मरम्मत का काम पूरा करने को कहा ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके और इस संबंध में जवाब दाखिल किया जा सके। न्यायालय ने आगे राज्य को हलफनामे पर यह निर्दिष्ट करने को कहा कि सभी 63 पुलों की मरम्मत की गई है।

    इसके साथ, मामले को 20 फरवरी को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया है।

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