एमएलए ने अंतर्धार्मिक विवाहों की निगरानी के लिए पैनल बनाने के सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी, बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

Avanish Pathak

10 March 2023 2:23 PM GMT

  • एमएलए ने अंतर्धार्मिक विवाहों की निगरानी के लिए पैनल बनाने के सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी, बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

    बॉम्बे हाईकोर्ट मे एक रिट पीटिशन फाइल की गई है, जिसमें महाराष्ट्र सरकार के एक अधिसूचना को चुनौती दी गई है। उक्त अधिसूचना के तहत महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों की निगरानी के लिए परिवार समन्वय समिति की स्थापना की है।

    याचिका में कहा गया है, "यह धारणा गलत है कि वयस्क महिलाएं, जिन्होंने किसी अन्य धर्म के व्यक्ति के साथ विवाह का चयन किया है और सहमति दी है, उन्हें 'बचाया' जाना चाहिए। यह संविधान की भावना के खिलाफ है।"

    समाजवादी पार्टी विधायक रईस शेख की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह प्रस्ताव एक विशेष धर्म के खिलाफ भेदभावपूर्ण है और इस प्रकार अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव को रोकना), 21 (जीवन का अधिकार, जिसमें निजता का अधिकार शामिल है) और 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।

    शेख का आरोप है कि जीआर सरकार का "अंतर-धार्मिक विवाहों को हतोत्साहित करने और/या उन्हें रोकने की कोशिश है और दरअसल कथित लव जिहाद कानूनों का एक पूर्व-संकेत हैं, जिन पर भारत के कई राज्यों में रोक लगी हुई है।"

    महाराष्ट्र सरकार ने 13 दिसंबर, 2022 को दिल्ली में श्रद्धा वाकर हत्या के बाद विवादित जीआर जारी किया था। उल्लेखनीय है कि वाकर की हत्या उन्हीं के ‌लिव-इन पार्टनर ने की थी, जो किसी अन्य धर्म का था।

    जीआर में कहा गया है कि कमेटी का गठन कथित रूप से प्रेमी जोड़े और परिवार के बीच 'परामर्श, संवाद और समाधान' के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए किया गया है।

    समिति किसी भी व्यक्ति के कहने पर हस्तक्षेप कर सकती है, जिस पर याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह युगल की निजता का उल्लंघन है "विशेष रूप से तब जब दो सहमत वयस्कों ने एक-दूसरे से विवाह किया हो"।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत में विवाह की चर्चाओं में उन्हें केंद्र में नहीं रखा जाता है, जिन्हें व‌िवाह करना है बल्कि परिवार और सामाजिक ताकतों ने हमेशा युवाओं के भविष्य का निर्धारण किया है।

    एडवोकेट जीत गांधी के माध्यम से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि जीआर एक "प्रतिगामी" और "झूठी कहानी बनाने की कोशिश करता है कि केवल अंतर्धार्मिक या अंतर्जातीय विवाहों में ही लड़की को अपने साथी से खतरा है।"

    जीआर एक विशेष धर्म के खिलाफ भेदभाव करता है और सद्भाव, सह-अस्तित्व, आत्मसात और शांति के बजाय लोगों के बीच विभाजन को प्रोत्साहित करता है।

    याचिका में कहा गया है कि यह नैरेटिव बनाने के कारण कि अंतर्धार्मिक विवाह असामान्य और दुर्लभ हैं, इसलिए निरंतर इनकी जांच की आवश्यकता है, जीआर अल्ट्रा वायर्स है।

    जीआर के मुताबिक कमेटी रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड दोनों तरह की शादियों की जानकारी मांग सकती है। हालांकि, याचिकाकर्ता ने चेतावनी दी है कि यह एक जोड़े के अधिकारों का उल्लंघन होगा।

    याचिका में कहा गया है कि सरकार की ओर से संकल्प एकतरफा तरीके से और अत्यधिक जल्दबाजी में संदिग्ध परिस्थितियों में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना जारी किया गया है और इस प्रकार यह संविधान के लिए भी अधिकारातीत है।

    जीआर अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है क्योंकि इसमें उन जोड़ों को शामिल नहीं किया गया है जो व्यक्तिगत कानून और/या अपने धर्म में शादी करने की योजना बना रहे हैं।

    इसलिए याचिका जीआर और जीआर के अनुसरण में की जा सकने वाली सभी कार्रवाइयों को रद्द करने की मांग करती है। अंतरिम रूप से सरकार को जीआर के अनुसार कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया जा सकता है।

    यह मामला हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए नियत समय पर आएगा।

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