एमजे अक़बर बनाम प्र‌िया रमानीः दिल्ली कोर्ट ने कहा, सांसदों/ विधायकों से जुड़े सभी मामलों में तेजी लाने का आदेश देता है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

LiveLaw News Network

26 Oct 2020 11:30 AM GMT

  • एमजे अक़बर बनाम प्र‌िया रमानीः दिल्ली कोर्ट ने कहा, सांसदों/ विधायकों से जुड़े सभी मामलों में तेजी लाने का आदेश देता है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

    दिल्ली की एक कोर्ट ने प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अक़बर के आपराधिक मानहानि के मुकदमे को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने से इनकार करते हुए कहा है कि अश्विनी उपाध्याय मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, न केवल विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों, बल्‍कि उनसे जुड़े सभी मामलों में तेजी लाने का उल्लेख करते हैं।

    जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुजाता कोहली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में 'शामिल' शब्द की व्याख्या न केवल उन मामलों को शामिल करने के लिए की जाएगी जो विधायकों के खिलाफ दायर किए गए हैं, बल्कि उन सभी मामले के लिए की जाएगी, जिनमें सांसद/ विधायक शामिल हैं।

    अदालत प्रिया रमानी के खिलाफ दायर एमजे अक़बर के मानहानि के मुकदमे को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी।

    यह मामला अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के बाद उक्त अदालत के समक्ष आया था, जो पिछले 2 वर्षों से इस मामले की सुनवाई कर रहे थे, दोनों पक्षों को सूचित किया गया था कि वह इस मामले को जारी नहीं रख सकते।

    एसीएमएम विशाल पाहुजा ने अश्विनी उपाध्याय बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला दिया कि ध्यान दें कि राऊज एवेन्यू कोर्ट, जो कि सांसद/ विधायक मामलों के लिए एक विशेष अदालत है, केवल उन्हीं मामले को सुन सकती है, जो विधायकों के खिलाफ दायर किए गए हैं और न कि विधायकों द्वारा दायर किए गए हैं।

    मानहानि की कार्यवाही को अलग अदालत में स्थानांतरित करने का विरोध करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता और अक़बर की वकील सुश्री गीता लूथरा ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश के अंतर्निहित उद्देश्य, जो कि किसी भी आपराधिक मामले या नैतिक दोष के किसी मामले में शामिल सांसद या विधायकों के नाम को हटाना है, के मुताबिक, उक्त मामला भी इस विशेष न्यायालय द्वारा प्राथमिकता से सुने जाने का हकदार है।

    सभी तथ्यों पर विचार करते हुए, अदालत ने ध्यान दिया कि अश्विनी उपाध्याय मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और दिल्ली हाईकोर्ट 23/02/18 की अधिसूचना के बीच मामूली अंतर है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में 'शामिल' शब्द का उपयोग किया गया है, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट की अधिसूचना में केवल 'विधायकों के खिलाफ 'दर्ज' मामलों' का उपयोग किया गया है।

    अदालत ने कानूनों की व्याख्या के लिए उद्देश्य के नियम का सहारा लिया:

    "अश्वनी कुमार उपाध्याय बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश विस्तार से चर्चा किए गए उपरोक्‍त कानूनी सिद्धांतों को लागू करने के बाद यह बहुत स्पष्ट है कि अंतर्निहित उद्देश्य प्रतीत होता है कि सांसद/ विधायकों से जुड़े किसी भी प्रकार के आपराधिक मामलों को तेजी से निस्तारित किया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में तेजी से फैसले दिए जाने चाहिए, ताकि किसी सांसद/ विधायक के नाम और प्रतिष्ठा पर लगे दाग़ को हटाया जा सके....। यदि वह किसी मामले में दोषी पाया जाता है, तो निर्णय शीघ्र होना चाहिए....।'

    इस अवलोकन की रोशनी में अदालत ने मामले को शेष कार्यवाही के लिए एसीएमएम विशाल पाहुजा के पास वापस भेज दिया।

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