प्रवासी संकटः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, अगर कोर्ट चुप रही तो अपनी भूमिका के सा‌थ न्याय नहीं कर पाएगी, दिए कई निर्देश

LiveLaw News Network

17 May 2020 9:29 AM GMT

  • प्रवासी संकटः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, अगर कोर्ट चुप रही तो अपनी भूमिका के सा‌थ न्याय नहीं कर पाएगी, दिए कई निर्देश

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पैदल अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति पर ध्यान देते हुए उन्हें मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए शुक्रवार को निर्देश जारी किए अदालत ने कहा‌ कि अगर वह मजदूरों की मौजूदा स्‍थ‌ितियों के मद्देनजर आदेश जारी नहीं नहीं करती है, तो यह "रक्षक और दुखहर्ता" के रूप में उसकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा।

    जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलु और जस्टिस ललिता कान्नेग्नेती की खंडपीठ ने सरकार को प्रवासियों के लिए भोजन, शौचालय और चिकित्सा सहायता आदि की उचित उपलब्धता सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

    कोर्ट ने कहा, "जिन श्रमिकों ने, अपने पुश्तैनी घर और गांव छोड़ दिए, और बेहतर आजीविका के लिए शहरों में आ गए हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम सभी आराम से रहे, आज सड़कों पर हैं। ये वो लोग हैं, जो सैकड़ों किस्म के काम करते हैं। ये सभी मिलकर यह तय करते हैं कि हम सुखी और आरामदायक जीवन बिता सकें।

    यदि इस स्तर पर, यह न्यायालय प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता है और आदेशों पारित नहीं करता है, तो यह न्यायालय रक्षक और दुखहर्ता के रूप में अपनी भूमिका से न्याय नहीं कर पाएगा। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त "जीवन" के अधिकार की सीमा भी इस स्थिति को ध्यान में रखेगी।"

    पीठ ने प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की "खबरों" पर भी ध्यान दिया। कोर्ट ने "ईनाडू" की एक रिपोर्ट का हवाला दिया कि 13 मई 2020 और 14 मई 2020 के बीच, 24 घंटे की अवधि में, 1300 लोगों ने एक चेकपोस्ट को साइकिल या पैदल पार किया था। 1000 श्रमिक लॉरी या अन्य परिवहन संसाधनों के जर‌िए गए।

    कोर्ट ने उन रिपोर्टों का भी उल्लेख किया, जिनमें यह बताया गया था कि एक महिला ने नासिक से सठानी जाते हुए रास्ते में एक बच्चे को जन्म दिया। इन्हीं रिपोर्टों में यह भी कहा गया था कि प्रसव के दो घंटे बाद, महिला ने फिर पैदल चलना शुरु कर दिया और 150 किलोमीटर तक पैदल चली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस रिपोर्ट पर ध्यान दिया है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मुंबई में छोटी दूरी तय करने के लिए भी एंबुलेंस 8000 रुपए ले रही हैं।

    कोर्ट ने कहा कि हालात "खतरनाक" है और "तत्काल हस्तक्षेप" की आवश्यक हैं।

    कोर्ट ने कहा, "गर्मी बढ़ रही हैं, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में और गर्मी के बावजूद, कोर्ट ने नोटिस किया है कि सैकड़ों प्रवासी मजदूर अपने बच्चों और सामान के साथ सड़कों पर पैदल गुजर रहे हैं। राज्य सरकार ने कुछ उपायों किए हैं, रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक 50 किलोमीटर की दूरी पर, प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए फूड काउंटर बनाया गया है। राहत केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। हालांकि ऊपर जैसा बताया गया है, उन्हें देखते हुए, हमारी राय है कि निम्नलिखित पूरक उपाय को प्राथमिक आधार पर तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए।"

    कोर्ट ने प्रवासियों मजदूरों के संबंध में निम्नलि‌खित निर्देश दिया-

    -प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए और राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजर रहे मजदूरों को वितरित किया जाना चाहिए।

    -राज्य द्वारा स्थापित आउटपोस्ट केंद्रों पर पीने के पानी, ओरल ‌डिहाइड्रेशन साल्‍ट और ग्लूकोज पैकेट की व्यवस्‍था की जाए और उसे प्रवासी श्रमिको दिया जाए।

    -चूंकि बड़ी संख्या में महिलाएं भी पैदल चल रही हैं, इसलिए साफसुथरे अस्थायी शौचालयों की व्यवस्‍था की जाना चाहिए, जिनमें महिलाओं की गोपनीयता सुनिश्च‌ित हो सके। सभी वैकल्पिक केंद्रों पर सेनेटरी पैड डिस्पेंसिंग मशीनों की व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए।

    -जिन लोगों को चलने में कठिनाई हो रही है, उन्हें निकटतम आश्रय स्थल तक NHAI और पुलिस विभाग के गश्ती वाहनों से पहुंचाया जाना चाहिए। प्रवासी श्रमिकों को चलने से रोकने का प्रयास किया जाए और उन्हें राज्य सरकार द्वारा प्रदान किए गए परिवहन को जरिए गंतव्य तक भेजा जाना चाहिए।

    -सभी पुलिस और राजस्व अधिकारियों को सभी केंद्रों/फूड काउंटरों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए और उन्हें ऐसे केंद्रों की ओर जाने वाले प्रवासी श्रमिकों का मार्गदर्शन करना चाहिए;

    -श्रमिकों को आश्रयस्‍थलों की जानकारी देने के लिए पैम्फलेट्स को हिंदी और तेलुगु में छापा जाना चाहिए और उन्हें फोन नंबरों की एक सूची दी जाए, जिससे वो आपात मामले में संपर्क कर सकें।

    उपरोक्त निर्देशों के अलावा कोर्ट ने कहा कि-

    -प्रवासियों के लिए बनाए जा रहे आश्रय स्थलों पर पर्याप्त पुलिस कर्मियों को तैनात किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल डिस्टेंसिंग और अनुशासन बना रहे।

    -प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्वयंसेवकों और / या डॉक्टरों को हर केंद्र पर एक समर्पित नियुक्त किया जाए, साथ ही सनस्ट्रोक पीड़ितों के लिए एक मोबाइल लाइन और एम्बुलेंस हमेशा तैयार रखी जाए। प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए कॉल पर एम्बुलेंस उपलब्ध होनी चाहिए और राज्य की लागत पर उन्हें तत्काल चिकित्सा सहायता के लिए निकटतम अस्पतालों या चिकित्सा केंद्रों में पहुंचाना चाहिए।

    -प्रत्येक जिले के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को राजस्व विभाग और पुलिस विभाग से वरिष्ठ रैंक (तहसीलदार / डीएसपी आदि) के एक कर्मचारी को नोडल अधिकारी नियुक्ति करना चाहिए ताकि वे आश्रयों आदि की देखरेख और उनकी गतिविधियों की निगरानी कर सकें।

    -अगर कर्मचारियों की कमी हो तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सेवाएं ली जा सकती हैं। पैरा लीगल वालंटियर्स, एनएसएस, एनसीसी, भारत स्काउट्स एंड गाइड्स, रेड-क्रॉस, लायंस क्लब, रोटरी क्लब और इस प्रकार के अन्य संगठनों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं।

    कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को स्वैच्छिक संगठनों की सहायत भी लेनी चाहिए और सीएसआर गतिविधि के रूप में कंपनियों/ फर्मों आदि से भी मदद लेनी चाहिए ताकि इन मजदूरों को भोजन उपलब्ध कराया जा सके।

    कोर्ट ने 22 मई, 2020 को उपरोक्त निर्देशों की एक अनुपालन रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया है।

    मामले का विवरण

    केस टाइटल: के रामकृष्ण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

    केस नं: WP PIL No 101/2020

    कोरम: जस्टिस डीवीएसएस सोमायाजुलु और जस्टिस ललिता कान्हनेती

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