केवल इसलिए कि लड़का विवाह योग्य आयु का नहीं है, एक जोड़े को साथ रहने का अधिकार देने से इनकार नहीं किया जा सकताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
30 Dec 2020 12:15 PM IST
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि केवल इसलिए कि लड़का विवाह योग्य आयु का नहीं है (हालांकि बालिग है), याचिकाकर्ताओं को साथ रहने का अधिकार देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
यह देखते हुए कि ''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और यह कि प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपना वैसा जीवन जीने का अधिकार है जैसा कि उसे उचित लगता है'', हाईकोर्ट ने एक कपल के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार को बरकरार रखा है।
कोर्ट ने कहा कि,
''जाहिर है, वह एक बालिग है। केवल इस तथ्य के कारण कि याचिकाकर्ता नंबर 2 विवाह योग्य उम्र का नहीं है, याचिकाकर्ताओं को संभवतः भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित उनके मौलिक अधिकारों को अमले में लाने से रोका नहीं किया जा सकता है।''
''याचिकाकर्ता,दोनों ने बालिग होने के नाते लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रहने का फैसला किया है और संभवतः प्रतिवादियों के लिए इस पर आपत्ति जताने का कोई कानूनी कारण नहीं हो सकता है।''
न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ याचिकाकर्ताओं की तरफ से दायर एक आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें उन्होंने मांग की थी कि प्रतिवादी नंबर 4-6 से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले उनके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की जाए।
संक्षेप में तथ्य
कोर्ट के समक्ष आए दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और पिछले एक साल से एक-दूसरे को जानते हैं और एक-दूसरे से शादी करना चाहते हैं।
हालांकि, जब याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के माता-पिता को उनके रिश्ते के बारे में पता चला, तो परिवारों के बीच झगड़ा हो गया।
कथित तौर पर, याचिकाकर्ता नंबर 1 के माता-पिता ने उसे गंभीर रूप से पीटा और उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी शादी करने का फैसला किया, उसे एक कमरे में कैद कर लिया, उसका मोबाइल फोन छीन लिया और याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़के)के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई।
लड़की ने उस लड़के के साथ रहने के लिए 20 दिसम्बर 2020 को घर छोड़ दिया, जिसकी अभी शादी योग्य उम्र नहीं हुई है और वे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। हालांकि, उनके संबंध प्रतिवादी नंबर 4 से 6 (महिला के रिश्तेदारों) के लिए स्वीकार्य नहीं हैं और वे याचिकाकर्ताओं को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता प्रतिवादी नंबर 4 से 6 (महिला के रिश्तेदारों) के हाथों गंभीर खतरे में हैं।
आगे यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जिला फतेहगढ़ साहिब, पंजाब को भी अपना प्रतिनिधित्व दिया है, हालांकि, कोई कार्रवाई नहीं हुई।
न्यायालय के अवलोकन
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि,
''वह खुद के लिए यह तय करने का अपना अधिकार अच्छी तरह से रखती है कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं। उसने याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए एक कदम उठाने का फैसला किया है, जो खुद बालिग है, हालांकि हो सकता है कि याचिकाकर्ता नंबर 2 अभी विवाह योग्य आयु का ना हो। जैसा कि यह हो सकता है, लेकिन यह तथ्य भी सत्य है कि वर्तमान मामले में दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने का अधिकार रखते हैं।''
कोर्ट ने आगे कहा,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 के पारिवारिक सदस्य होने के नाते निजी प्रतिवादी नंबर 4 से 6, याचिकाकर्ता नंबर 1 के लिए यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं कि उसे किसके साथ और कैसे अपना जीवन बिताना है,चूंकि वह खुद भी बालिग है... दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और उनका यह अधिकार है कि वह कानून के दायरे में अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन व्यतीत कर सकें। समाज यह निर्धारित नहीं कर सकता कि किसी व्यक्ति को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के अधिकार की गारंटी देता है और एक साथी का चुनाव जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण पहलू है।''
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है, अदालत ने कहा कि,उपरोक्त के मद्देनजर, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, फतेहगढ़ साहिब को निर्देशित किया जाता है कि वे दिनांक 20 दिसम्बर 2020 के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लें और कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करें।
संबंधित खबरों में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले दंपति को फिर से मिला दिया था क्योंकि महिला (शिखा) ने यह ''व्यक्त किया था कि वह अपने पति (सलमान उर्फ करण) के साथ रहना चाहती है।'' इसलिए कोर्ट ने कहा था कि ''वह बिना किसी प्रतिबंध या तीसरे पक्ष द्वारा उत्पन्न की गई बाधा के बिना अपनी पसंद के अनुसार रहने के लिए स्वतंत्र है।''
इसके अलावा, यह देखते हुए कि सहमति से रहने वाले दो वयस्कों के बीच लिव-इन संबंध कोई अपराध नहीं है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस जोड़े को पुलिस सुरक्षा दी थी,जो एक साथ रहना चाहते थे।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह ''तय कानून है कि जहां एक लड़का और लड़की बालिग हैं और वे अपनी स्वतंत्र इच्छा के साथ रह रहे हैं, फिर उनके माता-पिता सहित किसी को भी उनके साथ रहने में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।''
हाल ही में, हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने घोषणा की थी कि धर्म की परवाह किए बिना अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अंतर्भूत है।
केस का शीर्षक - प्रियप्रीत कौर व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य [CRWP-10828-2020 (O&M)]
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