'केवल इसलिए कि सह आरोपी फरार है, हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिशों के तहत अंडर ट्रायल कैदी के लिए उपलब्ध लाभ से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता': दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 Jun 2021 5:59 AM GMT

  • केवल इसलिए कि सह आरोपी फरार है, हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिशों के तहत अंडर ट्रायल कैदी के लिए उपलब्ध लाभ से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि अन्य सह-आरोपी फरार है, हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिशों के तहत एक अंडर ट्रायल कैदी के लिए उपलब्ध लाभ से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल न्यायाधीश की पीठ ने हत्या के मामले में आरोपी 27 साल की उम्र के एक विचाराधीन कैदी को 45 दिनों की अवधि के लिए अंतरिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

    याचिकाकर्ता ने 45 दिनों के लिए अंतरिम जमानत की मांग करते हुए इस आधार पर अर्जी दायर की थी कि मामला हाई पावर्ड कमेटी के दिशानिर्देशों के तहत आता है।

    याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता पहले ही अंडर ट्रायल कैदी के रूप में 2 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है, इस तथ्य के साथ कि वह 24 मई 2019 से न्यायिक हिरासत में है।

    मामले में चार्जशीट दाखिल किया गया था। याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के हाई पावर्ड कमेटी के दिशानिर्देशों के अनुसार 45 दिनों की अवधि के लिए अंतरिम जमानत के लिए प्रार्थना की।

    दूसरी ओर, राज्य ने हाई पावर्ड कमेटी के दिशानिर्देशों के एक अतिरिक्त मानदंड पर भरोसा करते हुए आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास व् अंतरिम जमानत पर रिहा होने का अविभाज्य अधिकार नहीं है।

    बेंच ने पूर्वोक्त प्रस्तुतीकरण की मैरिट को देखते हुए कहा कि,

    "एक विचाराधीन या दोषी का मामला भी हाई पावर्ड कमेटी के निर्धारित श्रेणियों के अंतर्गत आता है और उसके पास यह दावा करने का कोई अविभाज्य अधिकार नहीं है कि उसे अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए जैसा भी मामला हो हो। हाई पावर्ड कमेटी द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक मामले पर मैरिट के आधार पर विचार किया जाना आवश्यक है।"

    अदालत ने कहा कि 27 साल का एक युवा याचिकाकर्ता का जेल में अच्छा आचरण है और किसी भी मामले में पहले से शामिल होने का आरोप नहीं लगाया गया है, इसलिए उसे हाई पावर्ड कमेटी के दिशानिर्देशों के तहत राहत दी जानी चाहिए।

    कोर्ट ने अवलोकन किया कि,

    "इन परिस्थितियों में केवल इसलिए कि अन्य सह-आरोपी फरार है, याचिकाकर्ता को एचपीसी द्वारा की गई सिफारिशों के तहत उपलब्ध लाभ से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता। मुझे प्रतिवादी के बयान पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं मिल रहा है कि अगर याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह जांच से छेड़छाड़ करेगा।"

    कोर्ट ने आदेश दिया कि,

    "याचिकाकर्ता को 45 दिनों की अवधि के लिए अंतरिम जमानत देकर अनुमति दी जाती है, बशर्ते कि वह 25,000/- रुपये का एक निजी बांड भरने और जेल अधीक्षक की संतुष्टि के लिए इतनी ही राशि का जमानदार पेश करने की शर्त पर जमानत दी जाए। अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद याचिकाकर्ता न तो दिल्ली एनसीआर को छोड़ेगा और न ही अभियोजन पक्ष के किसी गवाह से संपर्क करेगा। याचिकाकर्ता अपना मोबाइल नंबर और जमानतदार का नंबर संबंधित जांच अधिकारी को प्रदान करेगा।"

    दिल्ली उच्च न्यायालय की हाई पावर्ड कमेटी ने COVID-19 के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए पिछले महीने जेलों के अंदर COVID-19 के प्रकोप को रोकने के लिए सकारात्मक और प्रभावी कदम और कैदियों की श्रेणी या श्रेणियां जिन्हें एक बार फिर अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किया जा सकता है, की पहचान और निर्धारण करके जेलों के अंदर सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने के लिए चर्चा की थी।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता में जेल परिसर के अंदर COVID-19 की स्थिति के निर्धारण के लिए पिछले साल हाई पावर्ड कमेटी का गठन किया गया था।

    शीर्षक: शेख रहीम @ सांवर @ अनवर बनाम एन.सी.टी. दिल्ली

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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