केवल एफआईआर दर्ज होना या जांच लंबित होना पासपोर्ट जारी करने/नवीनीकरण से इनकार करने का आधार नहीं: जेएंडके एंडएल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

25 Nov 2022 10:14 PM IST

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    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को एक फैसले में कहा कि एफआईआर दर्ज होना या जांच एजेंसी की ओर से जांच लंबित होना पासपोर्ट एक्ट 1967 के तहत पासपोर्ट जारी करने या नवीनीकरण से इनकार करने का आधार नहीं है।

    जस्टिस संजीव कुमार ने एक याचिका पर यह फैसला दिया, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा उसके पासपोर्ट नवीनीकरण आवेदन के क्लोज़र को चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट प्राधिकरण को उसके पक्ष में पासपोर्ट को नवीनीकृत/पुनः जारी करने का निर्देश देने के लिए परमादेश रिट के लिए प्रार्थना की थी।

    मौजूदा मामले के तथ्य यह थे कि याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में पासपोर्ट के नवीनीकरण/पुनः जारी करने के लिए 20 दिसंबर, 2021 को आवेदन दायर किया था, जो 19 नवंबर, 2022 को एक्सपायर हो जाता।

    पर्याप्त समय बीत जाने के बाद भी पासपोर्ट के नवीकरण/पुनः जारी करने के उनके अनुरोध की स्थिति के संबंध में उत्तरदाताओं की ओर से कोई सूचना नहीं दी गई थी।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत इस विषय पर जानकारी मांगने के लिए एक आवेदन दिया, जिसके जवाब में प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता को बताया कि पासपोर्ट कार्यालय को पुलिस से एक रिपोर्ट मिली है, जिसमें संकेत दिया गया है कि आवेदक के ‌खिलाफ एफआईआर संख्या 3/2019 पंजीकृत है, इसलिए याचिकाकर्ता को न्यायालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।

    चूंकि याचिकाकर्ता न्यायालय से प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सका, इसलिए प्रतिवादियों ने पासपोर्ट के नवीकरण/पुनः जारी करने के याचिकाकर्ता के मामले को क्लोज़ कर दिया।

    पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा आवेदन को क्लोज़ करने को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि पासपोर्ट अधिनियम, 1967 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत आवेदक को अदालत से "अनापत्ति प्रमाण पत्र" जमा करने के लिए कहने का कोई प्रावधान नहीं है, तब जबकि उसके खिलाफ किसी भी सक्षम न्यायालय में कोई कोई अपरा‌धिक कार्यवाही लंबित न हो।

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि केवल एफआईआर दर्ज करना और पुलिस अधिकारियों द्वारा जांच शुरू करना पासपोर्ट प्रदान करने या नवीनीकरण के अनुरोध को अस्वीकार करने का कोई आधार नहीं है।

    इस संबंध में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6 की उप धारा 2 के खंड (ए) से (आई) में उल्लिखित आधार पर पासपोर्ट प्राधिकरण पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज जारी करने से इनकार कर सकता है।

    फैसले में जस्टिस संजीव कुमार ने कहा कि पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6 की उप धारा (1) के तहत स्पष्ट प्रावधान है कि पासपोर्ट के अनुदान या नवीनीकरण के लिए आवेदन केवल धारा में उल्लिखित आधार पर ही अस्वीकार किया जाएगा और किसी अन्य आधार पर नहीं।

    अन्य आधारों के अलावा, धारा 6 की उप धारा (2) के खंड (एफ) में प्रावधान है कि पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के अनुदान या नवीनीकरण के अनुरोध को तब अस्वीकार किया जा सकता है, जब आवेदक के कथित अपराध के संबंध में भारत में आपराधिक न्यायालय के समक्ष कार्यवाही लंबित हो।

    इस मुद्दे को स्पष्ट करने के लिए कि कार्यवाही को आपराधिक न्यायालय के समक्ष कब तक लंबित कहा जा सकता है, पीठ ने वेंकटेश कंदासामी बनाम भारत सरकार, विदेश मंत्रालय, AIR 2015 में मद्रास ‌हाईकोर्ट के एक निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 190 के खंड (ए) के तहत कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है जब तक कि मामले में आगे बढ़ने के लिए न्यायालय द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता है।

    मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में पाया था कि आवेदक के खिलाफ सभी आपराधिक शिकायतें केवल जांच के स्तर पर थीं और इसलिए, यह पासपोर्ट अधिकारियों का मामला नहीं था कि पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) के दायरे में लाने के लिए किसी भी आपराधिक शिकायत में आपराधिक अदालत में अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है।

    उपरोक्त के मद्देनजर पीठ ने याचिका को अनुमति दी और प्रतिवादी को न्यायालय से एनओसी पेश करने पर जोर दिए बिना पुन: जारी करने की श्रेणी में याचिकाकर्ता को पासपोर्ट सुविधा प्रदान करने का निर्देश दिया।

    पीठ ने हालांकि कहा कि ऐसा करने से पहले प्रतिवादी यह सत्यापित कर सकते हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआइआर 3/2019 में अंतिम रिपोर्ट सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत की गई है या नहीं।

    केस टाइटल: राजेश गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया।

    साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (जेकेएल) 224

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