मौत के समय पत्नी के साथ घर में पति की उपस्थिति उसका अपराध तय करने के लिए पर्याप्त नहींः त्रिपुरा हाईकोर्ट
Manisha Khatri
1 Aug 2022 12:45 PM IST
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए/302/109 के तहत अपराधों से संबंधित एक अपील पर विचार करते हुए कहा है कि केवल इसलिए कि पति बच्चे के साथ झोपड़ी में मृत पत्नी के साथ (फांसी पर लटके होने की स्थिति में) मौजूद था, इसका यह मतलब नहीं हो सकता है कि पति ने ही पत्नी को मार डाला है।
जस्टिस अमरनाथ गौड़ और जस्टिस अरिंदम लोध की खंडपीठ ने कहा कि,
''केवल आरोपी व्यक्तियों की उपस्थिति और मृतक महिला/पत्नी (फांसी पर लटके होने की स्थिति में) के साथ झोपड़ी में बच्चे के साथ अपराध के अंतिम समय उपस्थित होने से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है और परिस्थितिजन्य साक्ष्य को इस तथ्य से नहीं जोड़ा जा सकता है कि पति ने ही पत्नी को मार डाला है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि एक परिवार में पत्नी, पति और बच्चा, जो एक ही छत के नीचे रह रहे हैं, ऐसे में दंपति के बीच का वैवाहिक संबंध स्पष्ट है। चूंकि यह साबित नहीं हुआ है कि पत्नी को किसने मारा था, अभियोजन पक्ष मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।''
अपील सीआरपीसी की धारा 374 के तहत दायर की गई थी। सेशन कोर्ट ने अपने फैसले में अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था। इसी आदेश के खिलाफ यह अपील दायर की गई थी।
प्रकरण के संक्षिप्त तथ्य यह है कि वर्ष 2007 में याचिकाकर्ता ने मृतक सीमा से सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। मृतक के पिता शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शादी के बाद से आरोपी अखिल दास ने उसकी बेटी के साथ क्रूरता का व्यवहार किया। एक दिन, शिकायतकर्ता को उसके बेटे उत्तम दास से पता चला कि उसकी बेटी अब जीवित नहीं है। तदनुसार, शिकायतकर्ता अन्य लोगों के साथ अपनी मृत बेटी के किराए के घर पर आया और अपनी बेटी को चेहरे और नाक पर खून के धब्बे के साथ फांसी पर लटकी हुई अवस्था में पाया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी अखिल दास ने उसकी बेटी की हत्या कर दी और हत्या के बाद उसके शव को फांसी पर लटका दिया। उसने अपने भाई अपूर्वा दास के उकसाने पर इस जघन्य अपराध को किया है। उक्त शिकायत प्राप्त होने पर आईपीसी की धारा 498ए/302/109 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
सुनवाई के दौरान, सत्र अदालत ने कहा कि हालांकि अभियोजन पक्ष आरोपी अखिल दास के खिलाफ अपना मामला साबित करने में सक्षम है, लेकिन रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि आरोपी अपूर्वा दास ने अखिल दास को उकसाया था और इस तरह से उसने कोई अपराध किया है। इसके बाद वर्तमान अपील दायर की गई।
लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में चिकित्सा साक्ष्य एक निर्णायक सबूत नहीं है, लेकिन मकान मालकिन और नाबालिग बेटी के बयान से इसकी पुष्टि हुई है कि आरोपी झोपड़ी में मौजूद था। उन्होंने आगे कहा कि गवाहों के बयान और अंतिम बार एक साथ देखा जाना ही अभियोजन पक्ष का मामला है।
कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर गौर करने के बाद कहा कि पोस्टमॉर्टम करने वाले पीडब्ल्यू-21 अनुभवहीन हैं और उन्हें फोरेंसिक सेगमेंट का कोई विशेष ज्ञान नहीं है और यहां तक कि मृतक की मौत के संबंध में मेडिकल साक्ष्य की भी स्पष्ट रूप से पुष्टि नहीं की गई है।
इसलिए, केवल आरोपी व्यक्तियों की उपस्थिति और मृतक महिला (पत्नी) के साथ झोपड़ी में बच्चे के साथ अपराध के समय अंतिम बार देखे जाने से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है और परिस्थितिजन्य साक्ष्य को इस तथ्य से नहीं जोड़ा जा सकता है कि पति ने अपनी पत्नी की हत्या की है।
उपरोक्त के मद्देनजर, अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला साबित करने में विफल रहा है। इसलिए अपील मंजूर की जाती है।
केस टाइटल- श्री अखिल दास बनाम त्रिपुरा राज्य
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