''प्रदर्शन स्थल पर केवल मौजूदगी आपराधिक कार्रवाई को आमंत्रित नहीं करेगी'': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नेशनल हाईवे पर प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर रद्द की

LiveLaw News Network

15 May 2021 12:00 PM GMT

  • Holding Peaceful Processions, Raising Slogans Cant Be An Offence: Himachal Pradesh High Court Quashes FIR Against Lady Advocate

    यह कहते हुए कि सभी सड़कें और एक्सप्रेसवे ''जीवन रेखा'' हैं, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को दो व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। इन दोनों पर आरोप था कि यह उस गैरकानूनी रूप से एकत्रित भीड़ के सदस्य थे,जिसने कथित तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग, शिमला को अवरुद्ध कर दिया था और आवाजाही को रोक दिया था।

    यह मानते हुए कि यह ''असाधारण मामलों में से एक है जहां न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना चाहिए'', न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की एकल न्यायाधीश पीठ ने प्राथमिकी को रद्द कर दिया और कहा किः

    ''सभी सड़कें, चाहे वे एक्सप्रेसवे हों, गाँव की सड़कें, या कॉलोनी की सड़कें, जीवन रेखा हैं। किसी भी बहाने, चाहे वह कितना भी उचित क्यों न हो, किसी भी राजमार्ग, सड़क, गली या पथ को अवरुद्ध करने के लिए न तो क्षमा किया जा सकता है और न ही माफ या स्वीकृत। हालांकि, वर्तमान प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के तथ्य और प्रकृति को देखते हुए सिर्फ प्रदर्शन स्थल पर मौजूद होना आपराधिक कृत्यों को आमंत्रित नहीं करेगा।''

    28 मई 2018 को, पुलिस ने दो याचिकाकर्ताओं सहित 11 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। पुलिस को जानकारी मिली थी कि कुछ लोग राष्ट्रीय राजमार्ग पर कई दिनों से पानी की आपूर्ति न होने के कारण विरोध कर रहे हैं। पुलिस के अनुसार, भीड़ ने कथित तौर पर राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था, जिसे एडीएम के मौके पर पहुंचने के बाद खोला गया था और वह प्रदर्शनकारियों को समझाने में सफल रहे थे। इस मामले में प्राथमिकी आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकने की सजा) और 143 (गैरकानूनी भीड़ का सदस्य होने की सजा) के तहत दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ताओं ने तब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि वह मौके पर मौजूद नहीं थे और उन्हें बिना किसी पहचान के सबूत के मामले में फंसाया गया है,इसलिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि भले ही प्राथमिकी और जांच के आरोपों को परिकल्पित रूप से स्वीकार कर लिया जाए, लेकिन वे ''उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाने में विफल रहेंगे क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने सड़क अवरुद्ध की थी।''

    दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया था कि भले ही याचिकाकर्ताओं ने नाकाबंदी में भाग नहीं लिया हो, परंतु उन्होंने ''अपने पड़ोसियों को सड़क अवरुद्ध करने से रोकने के लिए न तो कोई हस्तक्षेप किया और न ही उनको ऐसा करने से रोकने की कोशिश की।''

    यह देखते हुए कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है और सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत रिपोर्ट भी दायर की जा चुकी है,अदालत ने कहा किः

    ''यहां तक कि अगर अदालत यह मान भी ले कि याचिकाकर्ता मौके पर मैजूद थे, तो भी इससे सड़क को अवरुद्ध करने में उनकी भागीदारी का स्वतःअनुमान नहीं लगाया जा सकता है।''

    इसके अलावा,कोर्ट ने माना कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के तथ्य और प्रकृति को देखते हुए सिर्फ प्रदर्शन स्थल पर मौजूद होना आपराधिक कृत्यों को आमंत्रित नहीं करेगा। कोर्ट ने आगे कहा किः

    ''ऐसी स्थितियों में सबसे अच्छा सबूत वीडियोग्राफी है। चूंकि लगभग हर फोन में कैमरा और इनबिल्ट वीडियो रिकॉर्डिंग सुविधाएं होती हैं, ऐसे में वीडियोग्राफी की अनुपस्थिति जांच की विश्वसनीयता और वास्तविकता के बारे में संदेह पैदा करेगी।''

    इसके अलावा, अदालत ने रिट याचिका को अनुमति दे दी और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह ''अदालत द्वारा गलती करने के समान''होगा।

    कोर्ट ने शुरुआत में अवलोकन किया कि,''राज्य यह साबित करने के लिए एकल साक्ष्य भी प्रस्तुत करने में विफल रहा है कि याचिकाकर्ता भी उन व्यक्तियों में शामिल थे जिन्होंने सड़क अवरुद्ध की थी। इस प्रकार, भले ही यह न्यायालय प्राथमिकी में लगाए सभी आरोपों को सत्य मानता हो, फिर भी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी आपराधिक कृत्य में भाग लेने का कोई आरोप नहीं है।''

    शीर्षकः सुश्री अंजलि सोनी वर्मा व अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य व अन्य, Cr.MMO No.203 of 2021

    जजमेंट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story