केवल 'जिहादी साहित्य' रखना अपराध नहीं, जब तक कि यह न दिखाया जाए कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन का उपयोग किया गया: दिल्ली कोर्ट

Avanish Pathak

3 Nov 2022 10:44 AM GMT

  • केवल जिहादी साहित्य रखना अपराध नहीं, जब तक कि यह न दिखाया जाए कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन का उपयोग किया गया: दिल्ली कोर्ट

    दिल्‍ली की एक कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में कहा कि केवल "जिहादी साहित्य" रखना, जिसमें "विशेष धार्मिक दर्शन" शामिल हो, अपराध नहीं होगा, जब तक कि ऐसी सामग्री न हो कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन का निष्पादन किया गया है।

    पटियाला हाउस कोर्ट स्‍थ‌ित प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा,

    "... यह मानना कि केवल जिहादी साहित्य रखना, जिसमें विशेष धार्मिक दर्शन शामिल हो, अपराध होगा, यह कानून की समझ से परे है, यद्यपि इस प्रकार के साहित्य को कानून के किसी प्रावधान के तहत स्पष्ट रूप से या विशेष रूप से प्रतिबंधित न किया गया हो....जब तक कि ऐसी सामग्री न हो कि आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए इस तरह के दर्शन का निष्पादन किया गया है। ऐसा प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ है।"

    अदालत ने आईएसआईएस विचारधारा के ऑनलाइन प्रचार से संबंधित राष्ट्रीय जांच एजेंसी के एक मामले में नौ आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करते हुए यह टिप्पणी की। मामले के आरोपी केरल, कर्नाटक और कश्मीर के हैं।

    अदालत ने मुशाब अनवर, रीस रशीद, मुंडादिगुट्टू सदानंदानंद मारला दीप्ति, मो वकार लोन, मिजा सिद्दीकी, शिफा हारिस, ओबैद हामिद मट्टा और अम्मार अब्दुल रहिमन के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 बी सहपठित यूएपीए की धारा 2 (ओ), 13, 38 और 39 के तहत आरोप तय किए।

    अदालत ने 26 वर्षीय कश्मीरी युवक मुज़मिल हसन भट को मामले के सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसने कभी आईएसआईएस का सदस्य होने का दावा किया था या उसने प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी किया था।

    अदालत ने कहा कि अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने का प्रथम दृष्टया मामला है क्योंकि उन्होंने "अत्यधिक उत्तेजक जिहादी सामग्री" का उपयोग किया था और आईएसआईएस की विचारधारा को स्वीकार किया था; जानबूझकर, उद्देश्य से और सक्रिय रूप से ऐसी सामग्री का प्रसार कर रहे थे, समान विचारधारा के लोगों से समर्थन मांग रहे थे और आईएसआईएस की नीतियों के रास्ते पर चलने के लिए "भोले-भाले मुस्लिम युवाओं को लुभा रहे थे।"

    अदालत ने कहा, "वे भारतीय सैनिकों या आईएसआईएस के गुर्गों के स्वघोष‌ित मॉड्यूल होने का दावा कर रहे थे, और इस तरह, प्रतिबंधित संगठन के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रयास कर रहे थे।"

    एक अन्य आरोपी ओबैद हामिद मट्टा पर यूएपीए की धारा 2 (ओ) और 13 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

    "ए8 (ओबैद हामिद मट्टा) कुछ कट्टर इस्लामी साहित्य तक पहुंच रखता था और पढ़ रहा था, फिर भी यह किसी भी अपराध को करने के बराबर नहीं है। हालांकि, वह गैरकानूनी गतिविधियों के कमीशन में शामिल था और इसलिए धारा यूएपीए की धारा 2(ओ) सहपठित धारा 13 के तहत अपराध किए।"

    आरोप तय करते हुए, अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्ति आईएसआईएस की विचारधारा को फैलाने के लिए "टूलकिट के रूप में" विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का संचालन कर रहे थे और इस तरह समान विचारधारा वाले लोगों को गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आकर्षित, प्रभावित और कट्टरपंथी बना रहे थे।

    अदालत ने कहा,

    "उपरोक्त आरोपी व्यक्ति न केवल प्रतिबंधित संगठन के सदस्य होने का दावा कर रहे थे, घोषणा कर रहे थे या सशपथ कह रहे थे, बल्कि प्रतिबंधित संगठन आईएसआईएस की उत्तेजक, हिंसक और विभाजनकारी विचारधारा को भी आगे बढ़ा रहे थे।"

    एनआईए द्वारा दायर आरोपपत्रों पर गौर करते हुए, अदालत ने देखा कि डिजिटल उपकरणों और सोशल मीडिया अकाउंट से डेटा निकालने से पता चला है कि मुजम्मिल हसन भट को छोड़कर सभी आरोपी व्यक्ति इंटरनेट से जिहादी सामग्री का उपयोग कर रहे थे। इसमें कहा गया है कि आरोपी अपने निजी और सार्वजनिक सोशल मीडिया खातों के माध्यम से आईएसआईएस की ऐसी विचारधारा या दर्शन की वकालत और प्रचार भी कर रहे थे।

    यह देखते हुए कि एनआईए की सामग्री यह दिखाती है कि भट को छोड़कर लगभग सभी आरोपी आईएसआईएस के हमदर्द थे और इंटरनेट के जर‌िए अत्यधिक कट्टरपंथी जिहादी सामग्री तक पहुंच रहे थे, फिर भी यह सुझाव देने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि उनमें से किसी ने भी व्यक्तिगत रूप से या एक या दूसरे के साथ, किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम दिया हो या योजना बनाई हो।

    अदालत ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि किसी आरोपी को कोई रैंक, पद या पदनाम दिया गया था या आईएसआईएस द्वारा आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने के लिए कोई विशिष्ट कार्य दिया गया था।

    टेरर फंडिंग के आरोपों के संबंध में, अदालत का विचार था कि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री एकत्र नहीं की गई थी कि किसी भी आरोपी ने इस तरह के फंड प्राप्त करने पर कोई हथियार या गोला-बारूद हासिल करने का प्रयास किया था। यह भी देखा गया कि यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं था कि इस तरह के फंड को आईएसआईएस को ट्रांसफर किया गया था।

    अदालत ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 121ए के तहत आरोप तय करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह मानने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि उनमें से कोई भी भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश कर रहा था।

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