जब ट्रायल लंबा चलने की आशंका हो तो केवल प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता जमानत अस्वीकृति को उचित नहीं ठहराती: पटना हाईकोर्ट

Shahadat

11 Dec 2023 3:44 PM IST

  • जब ट्रायल लंबा चलने की आशंका हो तो केवल प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता जमानत अस्वीकृति को उचित नहीं ठहराती: पटना हाईकोर्ट

    पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी प्रतिबंधित संगठन में केवल सदस्यता जमानत से इनकार करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं होना चाहिए, खासकर जब मुकदमा लंबे समय तक चलने का अनुमान हो।

    जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस आलोक कुमार पांडे की खंडपीठ ने कहा,

    "केवल प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने के नाते जमानत अस्वीकार करना उचित नहीं होगा, जब मुकदमा लंबे समय तक चलने की संभावना हो।"

    यह फैसला राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(4) के तहत दायर तीन आपराधिक अपीलों के एक बैच में आया, जिसके तहत अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120, 120 बी, 121, 121 ए, 153 ए, 153 बी सपठित धारा 34 के तहत अपराध के आरोपी एक वकील को जमानत दे दी।

    अभियुक्त-अपीलकर्ताओं को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ सीधे संबंध के आरोपों का सामना करना पड़ा। पीएफआई संगठन को 2022 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि वे अपने कथित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हिंसा भड़काने के संगठन के गुप्त उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से लगे हुए थे।

    हालांकि, अदालत ने अपीलकर्ता के खिलाफ सभी प्रासंगिक सबूतों की समीक्षा करने के बाद जमानत से इनकार करने वाले विवादित फैसले को पलटना उचित पाया।

    नतीजतन, अदालत ने अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह रुपये की जमानत बांड 25,000/- (पच्चीस हजार रुपये) और समान राशि के दो जमानतदार प्रस्तुत करे। इन शर्तों की पूर्ति के लिए विशेष न्यायाधीश, एन.आई.ए., पटना की संतुष्टि आवश्यक है।

    यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के महत्वपूर्ण फैसले के आलोक में महत्वपूर्ण है, जिसमें उसने कहा था कि किसी गैरकानूनी संगठन में सदस्यता मात्र यूएपीए अपराध होगा।

    सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच vs UAPA Act की धारा 10 (ए) (आई) की वैधता की भी पुष्टि की, जो गैरकानूनी घोषित एसोसिएशन में सदस्यता को अपराध मानती है।

    ऐसा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अरूप भुइयां बनाम असम राज्य, इंद्र दास बनाम असम राज्य और केरल राज्य बनाम रानीफ जैसे मामलों में अपने 2011 के फैसलों को पलट दिया।

    उल्लेखनीय है कि अपने पहले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि किसी प्रतिबंधित संगठन में केवल सदस्यता गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 (UAPA Act) या आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत अपराध गठित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि प्रत्यक्ष हिंसक कार्रवाइयों न हों।

    अपीलकर्ता के लिए वकील: सैयद मसलेहुद्दीन अशरफ, मनोज कुमार सिंह, शिवादित्य धारी सिन्हा, अभिजीत गौतम और अमरजीत।

    प्रतिवादी/प्रतिवादियों के लिए वकील: डॉ. कृष्ण नंदन सिंह, एएसजी

    केस टाइटल: जलालुद्दीन खान @ मोहम्मद जलालुद्दीन बनाम भारत संघ

    केस नंबर: आपराधिक अपील 514/2023

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