मात्र यह तथ्य कि मानहानिकारक बयान अदालत में पेश दलील में दिया गया था, पुनरावृत्ति के लिए बचाव नहीं हो सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Jun 2023 7:29 AM GMT

  • मात्र यह तथ्य कि मानहानिकारक बयान अदालत में पेश दलील में दिया गया था, पुनरावृत्ति के लिए बचाव नहीं हो सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    Bombay High Court

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि मात्र यह तथ्य की मानहानिकारक बयान का उल्‍लेख न्यायिक याचिका में किया गया था, मानहानिकारक बयान के दोबारा प्रकाशन को न्यायोचित ठहराने के लिए वैध बचाव नहीं है।

    जस्टिस रियाज चागला ने विस्तृत आदेश में कहा कि न्यायिक कार्यवाही में केवल पढ़े या रिकॉर्ड किए गए दस्तावेजों को ही दोहराया जा सकता है। आदेश में वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और उसके सीईओ अदार पूनावाला को मानहानि के मुकदमे में अंतरिम राहत दी गई है।

    तदनुसार, अदालत ने यूट्यूबर योहान टेंगरा और अंबर कोरी को निर्देशित किया वे आपत्तिजनक वीडियो, जिसके खिलाफ SII की ओर से मुकदमा दायर किया गया है, को हटा लें और बिना शर्त माफी जारी करें।

    वादी ने मानहानि के मुकदमे में स्थायी निषेधाज्ञा और अंतिम राहत के रूप में 100 करोड़ रुपये की मांग की थी।

    वादियों की ओर से पेश सीन‌ियर एडवोकेट आस्पी चिनॉय ने तर्क दिया कि प्रतिवाद‌ियों ने अपने यूट्यूब चैनल में वादी के खिलाफ आम जनता में क्रोध और घृणा को भड़काते हुए देखे गए थे। उन्हें यह कहते देखा गया कि वादी ने कथित रूप से एक हत्या की है। व्हाट्सएप पर एक वीडियो भी प्रसारित किया गया, जिसमें प्रतिवादी को वादी की गिरफ्तारी की मांग करने के लिए लोगों को इकट्ठा करते हुए देखा गया था।

    अपनी दलीलों रखते हुए प्रतिवादियों ने औचित्य का बचाव किया था। उन्होंने दावा किया कि SII के खिलाफ दायर चार याचिकाओं में ऐसे ही बयानों का इस्तेमाल किया गया था, खासकर दिलीप लूनावत की ओर से।

    लूनावत ने दावा किया कि उनकी बेटी की मौत SII की कोविशील्ड वैक्सीन से हुई है। चूंकि लूनावत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए SII का मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं था।

    शुरुआत में पीठ ने कहा कि लूनावत की याचिका में अदालत ने केवल नोटिस जारी किया था। इसने इस तर्क को खारिज कर दिया कि अभियोगी को कार्रवाई करने से रोक दिया गया था।

    पीठ ने कहा,

    "मुझे प्रतिवादियों की प्रस्तुतियों में कोई योग्यता नहीं दिखती है कि हालांकि लूनावत रिट याचिका में समान शब्दों का उपयोग किया गया है, वादी के संदर्भ में वैसे ही शब्द "सामूहिक हत्यारे" का प्रयोग किया गया है, जिसे प्रकाशन के समान माना गया है और जिसे वादी ने मानहानिकारक होने का आरोप लगाया है। वादी ने उस प्रकाशन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है और इसलिए यहां कार्रवाई करने से रोक दिया जाता है।"

    अदालत ने कहा कि मानहानिकारक बयान का पुनर्प्रकाशन भी मानहानिकारक है और प्रत्येक प्रकाशक उसी हद तक जवाबदेह है। आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत अदालती दलीलों में दिए गए अपमानजनक बयानों के खिलाफ मानहानि का आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "हालांकि, दलीलों में दिए गए इन बयानों को पूर्ण विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित किया गया है और मानहानि संबंध‌ित सिविल सूट का विषय नहीं बनाया जा सकता है ... प्रतिवादियों के पास मानहानि की कार्रवाई में कोई प्रतिरक्षा नहीं है। यह स्टर्न बनाम पाइपर और अन्य में आयोजित किया गया है कि मानहानि का हर पुनर्प्रकाशन एक नई मानहानि है, और प्रत्येक प्रकाशक अपने कार्य के लिए उसी हद तक जवाबदेह है, जैसे मानहानिकारक बयान उसी के साथ उत्पन्न हुआ था।"

    केस नंबरः सूट (एल) नंबर 33253/2022

    टाइटलः सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्रा लिमिटेड और अन्य बनाम योहान टेंगरा और अन्य।

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