'केवल नागरिक अशांति गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध नहीं, जब तक कि यह आतंकवादी कृत्य के इरादे से न किया गया हो': गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अखिल गोगोई की जमानत बरकरार रखी

LiveLaw News Network

12 April 2021 1:07 PM GMT

  • केवल नागरिक अशांति गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध नहीं, जब तक कि यह आतंकवादी कृत्य के इरादे से न किया गया हो: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अखिल गोगोई की जमानत बरकरार रखी

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विशेष एनआईए अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें पिछले साल कार्यकर्ता अखिल गोगोई को दंगे के मामले में जमानत दी गई थी।

    जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस मीर अल्फाज अली की एक डिवीजन बेंच ने ऐसा करते समय यह स्पष्ट कर दिया कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए भारत की अखंडता, संप्रभुता आदि को खतरे में डालने के इरादे से किया गया 'आतंकवादी कृत्य' होना चाहिए।

    आगे कहा कि केवल नागरिक अशांति पैदा करना ,बिना आतंकवादी कृत्य के इरादे से किया गया कृत्य गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 2 (1) (ओ) के तहत गैरकानूनी गतिविधि के दायरे में नहीं आता है।

    पीठ ने आदेश में कहा कि,

    " गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 धारा 2 (1) (ओ) के तहत गैरकानूनी गतिविधि उत्तेजक भाषण सहित शब्द बोले जा सकते हैं, लेकिन अधिनियम 1967 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को नष्ट करने या किसी व्यक्ति मृत्यु या किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने या किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से कृत्य किया जाना चाहिए।"

    अगर दोषकर्ता इरादे से 'आतंकवादी कृत्य करता है तो ही वह व्यक्ति अधिनियम की धारा 15 (1) के दायरे में आएगा। दूसरे शब्दों में, जब तक अधिनियम के कड़ाई से शिकायत किए गए अधिनियम की धारा 2 (1) (ओ) की धारा 15 (1) के साथ पढ़ी जाती है, अधिनियम 1967 के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इसलिए इस प्रकार हिंसा के उद्देश्य से नागरिक अशांति और कानून और व्यवस्था में दुविधा पैदा सहित अन्य प्रकृति का गैरकानूनी कृत्य करने वाले को सामान्य कानून के तहत दंड दिया जाएगा। अगर इस तरह के गलत कृत्य इरादे से नहीं किया जाता है तो यह अधिनियम 1967 की धारा 15 (1) के दायरे में नहीं आएगा।

    कोर्ट ने राज्य की ओर से पुलिस अधीक्षक, सीबीआई / एसआईटी बनाम नलिनी और अन्य (1999) 5 एससीसी 253 मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा जताया।

    अखिल गोगोई के खिलाफ यह आरोप लगाया गया कि अखिल गोगोई ने 6000 लोगों की भीड़ का नेतृत्व किया और आर्थिक नाकाबंदी और पथराव किया गया, जिसमें से सूचना देने वाले एक व्यक्ति के चेहरे पर प्रहार किया गया और वह घायल हो गया था। यह भी आरोप लगाया गया कि अखिल गोगोई के नेतृत्व में भीड़ ने ड्यूटी पर मौजूद पुलिस कर्मियों की हत्या करने कोशिश की।

    इसके आधार पर अखिल गोगोई के खिलाफ चबुआ पी.एस. केस नंबर 289/2019 आईपीसी की धारा 120-बी / 147/148/149/336/307/353/326 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया और जांच शुरू हुई। इसके बाद आईपीसी की धारा 153 ए / 153 बी और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 15 (1) (ए) और धारा 16 को एफआईआर में जोड़ा गया।

    अखिल के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 15 (1) (1) / 16 के तहत जांच की गई। इसके बाद अखिल गोगोई के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 16 के तहत 26-06-2020 की चार्जशीट पेश की गई थी।

    विशेष एनआईए कोर्ट ने हालांकि गोगोई की जमानत याचिका को अनुमति दी थी और कहा था कि उनके भाषण का स्वर हिंसा फैलाने के बजाय शायद सीएए के बहुचर्चित मुद्दे पर आक्रामक रहा होगा।

    ट्रायल कोर्ट ने आगे कहा कि अखिल गोगोई द्वारा किए गए कृत्य में प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि यह दिखाने के लिए कोई भी सबूत नहीं है कि अखिल गोगोई ने देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और भारत की सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से कोई भी आतंकवादी कृत्य किया है।

    हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए कहा था कि यह सच हो सकता है कि सीएए से जुड़ी सार्वजनिक भावना का लाभ उठाते हुए गोगोई ने जनता के बीच जोश के साथ उग्र भाषण दिए हैं और अखिल के नेतृत्व में हिंसक गतिविधियों हुई हैं जो कानून के तहत दंडनीय हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा था कि यह कहना भी सही हो सकता है कि प्रतिवादी द्वारा दिए गए भाषण से उत्तेजित होकर भीड़ ने हिंसा फैलाया हो।

    डिवीजन बेंच ने कहा कि,

    "हालांकि इस मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण यह है कि इस पर विचार किया जाए कि क्या जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों सामग्री में प्रथम दृष्टया दिखाई देता है कि आरोपी / प्रतिवादी ने भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को ठेस पहुंतचाने के इरादे से भड़काऊ भाषण दिया था और क्या प्रस्तुत किए गए सबूत यह दिखाने के लिए पर्याप्त हैं कि अखिल का भड़काऊ भाषाण गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 15(1)(a) के तहत आतंकवादी कृत्य है।"

    आगे कहा कि यूएपीए अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराना है। इसलिए यह आतंकवादी कृत्यों सहित कुछ विशिष्ट प्रकार के अपराधों से निपटने के लिए एक विशेष क़ानून है।

    केस शीर्षक: राज्य बनाम अखिल गोगोई

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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