कहीं अन्य दर्ज अलग जन्म तिथि का रिकॉर्ड स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट में दर्ज जन्म तिथि से बेहतर प्रमाण नहीं हो सकता : उड़ीसा हाईकोर्ट
Shahadat
24 Feb 2023 10:36 AM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने पाया कि व्यक्ति की अलग जन्म तिथि के रूप में दर्ज उसकी जन्म तारीख का तथ्य उसके स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट में दर्ज जन्म तारीख के दस्तावेजी प्रमाण के सामने टिक नहीं सकता।
जस्टिस अरिंदम सिन्हा और संजय कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कर्मचारी को उसके प्रबंधन के खिलाफ राहत प्रदान करते हुए कहा,
"यह दर्ज तारीख का तथ्य दस्तावेजी साक्ष्य के सामने टिक नहीं सकता, जो स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट में है। स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट जन्म तिथि के प्रमाणों में से एक है। इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 31 कहती है कि एडमिशन निर्णायक सबूत नहीं हैं, लेकिन बाद में निहित प्रावधानों के तहत एस्टॉपेल के रूप में काम कर सकते हैं।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता-प्रबंधन ने अपने अधीन कार्यरत श्रमिकों/कामगारों की आयु की जांच के लिए उपसमिति का गठन किया गया। जब विपक्षी नंबर 2 (कर्मचारी) ने समिति को बताया कि उसकी जन्मतिथि 28 अगस्त, 1959 है, उसने उक्त दावे पर संदेह करने के कई कारण पाए।
समिति ने विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखा कि 1994 में श्रमिक की पत्नी की उम्र लगभग 30 वर्ष बताई गई, जबकि उसका पहला पुत्र पहले से ही 16 वर्ष का था। इन परिस्थितियों में कर्मचारी को समिति के समक्ष उपस्थित होने को कहा गया। उन्होंने स्वीकार किया कि उनका जन्म उनकी दावा की गई जन्मतिथि से दो साल पहले यानी 28 अगस्त, 1956 को हुआ।
इसलिए श्रमिकों के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन पत्र, जिसमें कर्मचारी का विवरण होता है, उसमें वर्ष 1994 में उनकी जन्म तिथि बदल दी। परिवर्तन की पावती में कर्मचारी ने अपना हस्ताक्षर किया।
हालांकि, उन्होंने 2007 में अपनी जन्म तिथि में विसंगति की ओर इशारा किया, सात साल पहले उन्हें स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करनी है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि उनका जन्म 28 अगस्त, 1958 को हुआ।
प्रबंधन से राहत न मिलने पर मजदूर ने आवश्यक सुधार के लिए केंद्र सरकार के औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हालांकि प्रबंधन ने लिखित बयान दर्ज किया, लेकिन उसके बाद केस नहीं लड़ा। इसलिए ट्रिब्यूनल ने कर्मकार के पक्ष में आदेश पारित किया, जिसे इस रिट याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने इस तथ्य को स्वीकार करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की कि श्रमिक का जन्म 28 अगस्त, 1956 को हुआ, क्योंकि इस आशय का कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया। यह नोट किया गया कि कामगार ने शुरू में अपनी जन्मतिथि 28 अगस्त, 1958 होने का दावा किया। इसके बाद उसने अपनी जन्मतिथि के प्रारंभिक रिकॉर्ड में प्रबंधन द्वारा किए गए सुधारों पर अपने हस्ताक्षर किए।
न्यायालय का विचार है कि कामगार द्वारा किए गए हस्ताक्षर और तारीख के साथ किए गए सुधारों को उसकी ओर से अच्छा माना जाता है कि उसका जन्म 28 अगस्त, 1956 को हुआ। स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र, जो दस्तावेजी साक्ष्य है और जन्म तिथि का कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त प्रमाण है।
इसने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 31 के अनुसार, एडमिशन निर्णायक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन अधिनियम की धारा 115 से 117 के तहत प्रदान किए गए एस्टॉपेल के रूप में कार्य कर सकते हैं। लेकिन मौजूदा मामले में कामगार के खिलाफ कोई विबंध नहीं हो सकता, क्योंकि उसका इरादा प्रबंधन को यह विश्वास दिलाने का नहीं है कि वह 28 अगस्त, 1956 को पैदा हुआ। बल्कि प्रबंधन ने उस विश्वास को स्वीकार करने के लिए उस पर जोर दिया।
नतीजतन, अदालत ने रिट याचिका में कोई दम नहीं पाया और ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखते हुए इसे खारिज कर दिया।
केस टाइटल: प्रबंधन समिति, सीएफएच योजना, पारादीप पोर्ट बनाम पारादीप पोर्ट वर्कर्स यूनियन और अन्य।
केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 14256/2021
निर्णय दिनांक: 21 फरवरी 2023
कोरम: जस्टिस ए. सिन्हा और जस्टिस एस.के. मिश्रा
याचिकाकर्ता के वकील: आनंद प्रकाश दास और पी. पांडा और प्रतिवादी के वकील: सुजाता जेना
साइटेशन: लाइवलॉ (मूल) 27/2023
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