यदि पति पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय अत्यधिक शराब पीने की आदत में लिप्त हो तो यह पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Manisha Khatri

16 Aug 2023 6:00 AM GMT

  • यदि पति पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय अत्यधिक शराब पीने की आदत में लिप्त हो तो यह पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

     Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि यदि पति अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय अत्यधिक शराब पीने की आदत में शामिल हो जाता है और इससे पारिवारिक स्थिति खराब हो जाती है, तो यह स्वाभाविक रूप से पत्नी और बच्चों सहित पूरे परिवार के लिए मानसिक क्रूरता का कारण बनेगा।

    जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की पीठ ने यह भी कहा कि यदि बच्चे विवाह से पैदा हुए हैं, तो एक पुरुष, पिता होने के नाते, अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता, खासकर जब पत्नी एक कामकाजी महिला न हो।

    इन टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने पत्नी की तरफ से दायर उस अपील को स्वीकार कर लिया है,जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी की तरफ से दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया था,जिसमें उसने क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की थी।

    इस कपल ने फरवरी 2006 में शादी की थी और उनके एक बेटे और एक बेटी का जन्म हुआ। जब उनका बेटा 10 साल का था और बेटी 13 साल की थी, तो पत्नी ने पति की अत्यधिक शराब पीने की आदत के आधार पर तलाक की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी।

    उसका आरोप था कि उसका पति उसे मारता-पीटता था और घर का सारा सामान बेच देता था और अत्यधिक शराब पीने की आदत के कारण पूरे परिवार की हालत खराब हो गई थी। आगे कहा गया कि मई 2016 में, पति द्वारा नशे की हालत में उसके साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया, जिससे उसे अपने दो बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।

    आगे यह भी बताया गया कि शुरू में उसने इसी तरह के आधार पर तलाक की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था, हालांकि, ऐसी कार्यवाही के दौरान, पति ने वादा किया था कि वह शराब पीने की आदत छोड़ देगा और अपने व्यवहार में सुधार करेगा और अपीलकर्ता/पत्नी को प्रताड़ित नहीं करेगा। जिसके बाद उसने याचिका वापस ले ली लेकिन उसके पति ने अपना रवैया नहीं बदला।

    पति ने फैमिली कोर्ट (साथ ही हाईकोर्ट के समक्ष) के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की और इसके बजाय, उसने एक लिखित बयान भेजा और वादी के आरोपों से इनकार किया और कहा कि अपनी पत्नी के व्यवहार के कारण, वह अलग रहने के लिए बाध्य था। उसने आरोप लगाया कि पत्नी उसे धमकी देती थी और उस पर मानसिक क्रूरता भी की जाती थी।

    पत्नी के बयान को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि क्रूरता के कई आरोप पति की अत्यधिक शराब पीने की आदतों के कारण लगाए गए हैं। चूंकि, उपरोक्त तथ्यों पर कोई क्रॉस एक्जामिनेशन नहीं किया गया था, इसलिए कोर्ट ने कहा कि किसी भी क्रॉस एक्जामिनेशन के अभाव में पत्नी द्वारा दी गई दलीलों को पति द्वारा स्वीकृत माना जाएगा।

    हाईकोर्ट ने कहा,‘‘यदि बच्चे विवाह से पैदा हुए हैं, तो पिता होने के नाते प्रतिवादी अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं बच सकता है, खासकर जब पत्नी कामकाजी महिला न हो। यह बहुत स्वाभाविक है कि पत्नी अपनी घरेलू जरूरतों ,अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और जीवन देने के लिए उनका पालन-पोषण करने के लिए पति पर निर्भर होगी। यदि पति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय खुद को अत्यधिक शराब पीने की आदत में शामिल कर लेता है, जिससे परिवार की स्थिति खराब हो जाती है, तो यह स्वाभाविक रूप से पत्नी और बच्चों सहित पूरे परिवार के लिए मानसिक क्रूरता का कारण बनेगा।’’

    नतीजतन, अदालत ने माना कि पति ने पत्नी के साथ मानसिक क्रूरता की है और इस तरह, वह तलाक की डिक्री पाने की हकदार है। इसलिए, हाईकोर्ट ने पत्नी के पक्ष में तलाक की डिक्री देकर शादी को खत्म कर दिया।

    अपीलकर्ता-पत्नी को गुजारा भत्ता देने के सवाल के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने माना कि पत्नी प्रतिमाह 15,000 रुपये अपीलकर्ता/पति से भरण-पोषण के तौर पर पाने की हकदार होगी। यह राशि अपीलकर्ता के वेतन के स्रोत, यदि कोई हो, से काटी जाएगी, अन्यथा इस राशि को पति के पास मौजूद संपत्ति पर एक शुल्क माना जाएगा।

    इसके साथ ही अपील का निस्तारण कर दिया गया।

    केस टाइटल- पी बनाम यू

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