एडवोकेट महमूद प्राचा के ऑफिस पर रेड का मामला: दिल्ली कोर्ट ने कंप्यूटर स्रोत की सीलिंग व जब्ती को सुपरवाइज़ करने के लिए सबसे युवा वकील को लोकल कमीश्नर नियुक्त किया

LiveLaw News Network

27 March 2021 1:00 PM GMT

  • एडवोकेट महमूद प्राचा के ऑफिस पर रेड का मामला: दिल्ली कोर्ट ने कंप्यूटर स्रोत की सीलिंग व जब्ती को सुपरवाइज़ करने के लिए सबसे युवा वकील को लोकल कमीश्नर नियुक्त किया

    एडवोकेट महमूद प्राचा के ऑफिस पर रेड के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को कोर्ट की सबसे युवा वकील को लोकल कमिश्नर नियुक्त किया है, जिसकी देखरेख में इस मामले में प्राचा के कार्यालय से कंप्यूटर स्रोत को जब्त करने और सील करने की प्रक्रिया जांच अधिकारी द्वारा की जाएगी।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने अधिवक्ता महमूद प्राचा और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद की उपस्थिति में आज ओपन कोर्ट में अपना आदेश सुनाया।

    अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि लोकल कमिश्नर की नियुक्ति के लिए 25000 रुपए की फीस आवेदक यानी महमूद प्राचा द्वारा वहन की जाएगी।

    कोर्ट ने आदेश दिया है कि,

    ''यह संयुक्त रूप से बार में प्रस्तावित किया गया है कि संबंधित डेटा की शुद्धता और पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए, एक स्थानीय आयुक्त/लोकल कमिश्नर को नियुक्त किया जाना चाहिए और लोकल कमिश्नर की फीस संशोधनवादी द्वारा वहन की जाएगी।''

    अधिवक्ता अवनीत कौर को वर्ष 2020 में एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि वह अदालत कक्ष में उपस्थित सबसे कम उम्र की वकील है और उन्हें इस मामले में लोकल कमिश्नर के रूप में नियुक्त किया जाता है।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि जब्ती की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाए। इसके अलावा, अधिवक्ता प्राचा ने भी अदालत को सूचित किया कि वह जांच एजेंसी के साथ पूर्ण सहयोग करेंगे।

    अधिवक्ता प्राचा ने सीएमएम के आदेश को चुनौती देते हुए सत्र न्यायालय में रिविजन दायर की थी। सीएमएम कोर्ट ने एडवोकेट प्राचा की तरफ से दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया था,जिसमें उन्होंने हाल ही में उनके कार्यालय पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा की गई छापेमारी को चुनौती दी थी।

    मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा ने अपने आदेश में कहा था कि,

    ''पेन ड्राइव में टारगेट डाटा उपलब्ध कराने वाली आवेदक की दलील पर केवल आईओ द्वारा स्वीकार्यता के मुद्दे के अधीन विचार किया जा सकता है और इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं है और यह भी कि आरोपी जांच के दौरान सबूत के संग्रह के तरीके और मोड के बारे में जांच अधिकारी को निर्देशित नहीं कर सकता है। इसप्रकार, इस न्यायालय के विचार में आवेदक द्वारा उठाई गई आपत्तियां निराधार हैं। इसलिए विशेषज्ञ की राय के अनुसार सुरक्षा उपायों के अधीन सर्च वारंट को कानून के अनुसार निष्पादित किया जाना चाहिए।''

    यह देखते हुए कि सबूतों को एकत्रित करना जांच के लिए जरूरी है और जांचकर्ताओं के हाथों को साक्ष्य एकत्रित करने से रोकने के लिए नहीं बांधा जा सकता है, अदालत ने कहा था किः

    ''किसी स्रोत से डेटा का संग्रह परीक्षण के दौरान उसकी स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है और जांच अधिकारी के लिए अपने स्वयं के विवेक के अनुसार जांच के दौरान सबसे अच्छा सबूत इकट्ठा करना अनिवार्य है।''

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम (अटार्नी मुविक्कल विशेषाधिकार) की धारा 126 और बार काउंसिल कंडक्ट रूल्स के तहत निर्भरता के मुद्दे बारे में,कोर्ट ने कहा था कि इस निर्भरता को गलत तरीके से बताया गया था क्योंकि इनके तहत स्वैच्छिक तौर पर अधिवक्ता द्वारा डेटा/ संचार शेयर करने के बारे में कहा गया है या अपने मुविक्कल के खिलाफ बयान देने के बारे में।

    कोर्ट ने कहा था कि,''हालांकि, इस मामले में स्थिति अलग है क्योंकि एक आपराधिक मामले में जांच के आधार पर पुलिस द्वारा डेटा एकत्र किया जाना है। आवेदक के अन्य मुविक्कलों का डेटा साझा न करने की अर्जी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 के दायरे से बाहर है।''

    पृष्ठभूमि

    एडवोकेट महमूद प्राचा ने 9 मार्च को उनके कार्यालय में स्पेशल सेल द्वारा की गई दूसरी छापेमारी के खिलाफ आवेदन दायर किया था। उन्होंने पूरी छापेमारी को ''पूरी तरह से अवैध और अन्यायपूर्ण'' कहा था। प्राचा पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश के कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

    प्राचा के अनुसार, उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे संवेदनशील मामलों के ''पूरे डेटा को अवैध रूप से चुराने के एकमात्र उद्देश्य'' के साथ दूसरी छापेमारी की गई थी। प्राचा ने अपने आवेदन में कहा था कि वह केवल अपने ग्राहकों से संबंधित डेटा और जानकारी की रक्षा के लिए अपने मौलिक अधिकार के हनन में आत्म-निहितार्थ को समाप्त करने की सीमा तक जा रहा है, क्योंकि वह एक वकील के रूप में सुरक्षा के लिए बाध्य है।

    पिछली कार्यवाही के दौरान, अधिवक्ता प्राचा ने न्यायालय में प्रस्तुत किया था किः

    ''अपने क्लाइंट के हितों की रक्षा करना मेरा मौलिक और संवैधानिक अधिकार है। अपनी अखंडता को बचाने के लिए उन्होंने जानबूझकर मेरे और मेरे क्लाइंट्स के जीवन को खतरे में डाल दिया है। यह बहुत ही संवेदनशील डेटा है। वे अपने राजनीतिक आकाओं के तहत कार्य करना चाहते हैं। मैं ऐसा नहीं कर सकता। यदि आप मुझे फांसी देना चाहते हैं, तो दें। लेकिन मैं अपने वकील के विशेषाधिकार का त्याग नहीं कर सकता।''

    प्राचा ने कहा था कि,

    ''मैं अपने क्लाइंट्स के जीवन को बचाने के लिए अपनी गर्दन की पेशकश कर रहा हूं। मैं अपने क्लाइंट्स के जीवन की रक्षा के लिए फांसी का सामना करने के लिए तैयार हूं। मैं मरने के लिए तैयार हूं। आप अपने राजनीतिक आकाओं को मुझे फांसी देने के लिए कहें। लेकिन मैं उन्हें अपने जीवन को नुकसान नहीं पहुंचाने दूंगा। चाहे जो हो जाए।''

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