चिकित्सा लापरवाही: वेंटिलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों के बिना माहिला का ऑपरेशन करने पर हुई मौत, कर्नाटक की कोर्ट ने तीन डॉक्टरों को दोषी ठहराया
LiveLaw News Network
17 Jan 2022 2:58 PM IST
कर्नाटक के बीदर जिले की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालत ने हाल ही में तीन डॉक्टरों को एक महिला की मौत के लिए दोषी ठहराया। उन्होंने उस महिला का अस्पताल में वेंटिलेटर सुविधा और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों के बिना ही ऑपरेशन किया था।
द्वितीय अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल जज एवं जेएमएफसी अब्दुल खादर ने सुश्रुत नर्सिंग होम की डॉ. राजश्री (32), डॉ. वैजीनाथ (65) और डॉ. साईबन्ना (52) को आईपीसी की धारा 304-ए सहपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया।
इसने उन्हें दो साल के साधारण कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई और जुर्माने का भुगतान न करने पर उन्हें आईपीसी की धारा 304 सहपठित धारा 34 के तहत अपराधों के लिए छह महीने के लिए साधारण कारावास से गुजरना होगा।
अदालत ने एक अन्य अस्पताल के डॉ. राजशेखर वीरभद्रप्पा पाटिल (52) को भी अपराध के संबंध में कोई भी जानकारी देने में विफलता के लिए आईपीसी की धारा 202 के तहत दोषी ठहराया और आईपीसी की धारा 202 सहपठित धारा 34 के तहत छह महीने के साधारण कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने के तहत दंडनीय अपराध की सजा सुनाई।
जुर्माने का भुगतान न करने पर उसे एक माह का साधारण कारावास भुगतना पड़ेगा।
मामला
12 अक्टूबर 2014 को, मृतक संपवती लेप्रोस्कोपिक एसिस्टेड वैजिनल हिस्टरेक्टॉमी ऑपरेशन के लिए सुश्रुत नर्सिंग होम में भर्ती हुई थीं। आरोपी नंबर 1 से 3 ने अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा का व्यवस्था किए बिना ऑपरेशन कर दिया। साथ ही ऑपरेशन से पहले की प्रक्रियाओं का पालन भी नहीं किया। महिला के स्वास्थ्य बारे में अपने परिवार को भी कोई सूचना नहीं दी गई।
इसके बाद, आरोपी ने मृतक को आरोपी नंबर 4 के अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया, जिसने आरोपी को उसके लापरवाहीपूर्ण कृत्य से बचाने के इरादे से मृतक को भर्ती कराया। उसने अगले दिन शिकायतकर्ता को संपवती की मृत्यु की घोषणा की, जबकि वह पहले ही मर चुकी थी।
जिसके बाद मृतक के भाई ने आरोपी के खिलाफ न्यू टाउन थाना बीदर में शिकायत दर्ज कराई.
अभियोजन पक्ष का तर्क
अभियोजन पक्ष ने आरोपी के दोष को साबित करने के लिए 11 गवाहों का परीक्षण किया।
यह तर्क दिया गया कि सर्जरी के समय, अस्पताल प्राधिकरण के पास कोई आईसीयू, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की सुविधा नहीं थी और सर्जरी करने से पहले, आरोपी ने चिकित्सक या एनेस्थिसिया विभाग द्वारा रोगी के संबंध में प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया था। इसके अलावा, उन्होंने सर्जरी पूर्व प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया था, कोई रक्त परीक्षण, एक्स-रे, ईसीजी नहीं किया गया था।इसके अलावा, अस्पताल में जीवन रक्षक सुविधाएं
उपलब्ध हैं यह सुनिश्चित किए बिना सामान्य एनेस्थिसिया के तहत मेजर सर्जरी की गई थी।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए कहा गया कि मौत का कारण लैप्रोस्कोप असिस्टेड वेजिनल हिस्टरेक्टॉमी की जटिलता थी और अगर आरोपी नंबर 1 से 3 ने ऑपरेशन के दौरान सभी प्रकार की सावधानियां बरती होती तो मरीज की मौत जटिलताओं के कारण नहीं होती।
अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि आरोपी नंबर 4 पूरी तरह से जानता था कि संपवती की मौत सुबह 5:30 बजे से पहले हुई थी। लेकिन उसने नाटक किया, ताकि आरोपी नंबर एक से 3 की मदद करने के लिए सबूतों को गायब किया जा सके। इस तरह, उसने जानबूझकर ऐसा किया और और इसलिए आईपीसी की धारा 202 का प्रावधान लापरवाही को आकर्षित करता है।
बचाव पक्ष के तर्क
अभियुक्त संख्या एक के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन पक्ष को सभी उचित संदेहों से परे यह स्थापित करना होगा, चिकित्सा जटिलताएं कथित लापरवाही का परिणाम थीं। दोनों अस्पतालों की केस शीट, विशेषज्ञ समिति की राय और एफएसएल रिपोर्ट से यह पता चलता है कि कोई लापरवाही नहीं हुई है या इलाज के तरीके पर कोई सवाल नहीं उठाया गया है।
इसके अलावा, यह कहा गया कि आरोपी नंबर 1 एक योग्य लेप्रोस्कोपिक सर्जन है और अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि सर्जरी के दौरान पल्मोनरी एडिमा की जटिलता होने की संभावना नहीं है, जो कि चिकित्सा लापरवाही को साबित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और घटक है।
यह तर्क दिया गया कि आरोपी नंबर 1 ने रोगी की जटिलताओं को कम करने के लिए पर्याप्त देखभाल की, ध्यान दिया और सर्जरी को रोक दिया और उसे एक बेहतर अस्पताल में स्थानांतरित किया। इसके अलावा, जिला सर्जन द्वारा चिकित्सा लापरवाही के आरोप को सत्यापित करने के लिए गठित समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा है कि एलएवीएच सर्जरी करने के दौरान आरोपी की ओर से कोई लापरवाही नहीं की गई है और यह भी दिखाया गया है कि आरोपी ने कैसे मृतक को बचाने की कोशिश की।
अंत में यह तर्क दिया गया कि चिकित्सा उपचार के दौरान हर मौत पर डॉक्टरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती है। अगर अदालतें अस्पताल और डॉक्टरों पर हर गलत काम के लिए आपराधिक दायित्व थोपती हैं, तो डॉक्टर अपने मरीजों को हर तरह का बेहतरीन इलाज देने की तुलना में अपनी सुरक्षा के बारे में अधिक चिंतित होंगे।
न्यायालय के निष्कर्ष
सबसे पहले अदालत ने नोट किया कि आरोपी नंबर 1 से 4 तक की लापरवाही को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को अपने मामले को चिकित्सकीय साक्ष्य के माध्यम से साबित करना होगा न कि प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य के आधार पर।
अदालत ने यह भी नोट किया कि आरोपी ने महत्वपूर्ण जीवन रक्षक उपकरण सुनिश्चित करने के लिए वेंटिलेटर सुविधा, उचित देखभाल और सावधानी के बिना सर्जरी की, और परिणामस्वरूप संपवती की मृत्यु हो गई।
इसलिए, यह माना गया कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेह से परे अभियुक्त संख्या 1 से 4 के अपराध को सफलतापूर्वक साबित कर दिया है कि उन्होंने आईपीसी की धारा 304 [ए], 202 सहपठित धारा 34 के तहत दंडनीय अपराध किया है।
यह माना गया, "इसलिए, अभियोजन पक्ष ने आरोपी नंबर एक से 3 की ओर से लापरवाही साबित कर दी है और सभी उचित संदेह से परे आरोपी नंबर 4 की ओर से सबूतों को नष्ट कर दिया है और इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ नहीं दिया गया है।"