डिफैमेटरी ब्रॉडकास्टिंग के खिलाफ थरूर की याचिका : ''मीडिया समानांतर ट्रायल नहीं चला सकता'', दिल्ली हाईकोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को संयम बरतने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
10 Sept 2020 3:46 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को निर्देश दिया है कि जब तक सुनंदा पुष्कर मामले में थरूर की तरफ से दायर कथित तौर पर मानहानि के प्रसारण के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी करने की मांग करने वाली याचिका का निपटारा नहीं हो जाता है, तब तक वह संयम बरतें और 'बयानबाजी में कमी लाएं।'
गोस्वामी को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक आपराधिक मामले में जांच की पेंडेंसी के दौरान, मीडिया को एक समानांतर ट्रायल चलाने से, या किसी को दोषी कहने से, या अप्रमाणित दावे करने से बचना चाहिए।
अदालत ने कहा कि
'जांच और सबूत की शुद्धता को समझना और उसका सम्मान करना होगा।'
यह आदेश शशि थरूर की तरफ से दायर एक याचिका पर आया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करने की मांग की गई है,ताकि जब तक यह मामला लंबित है,तब तक गोस्वामी को श्रीमती सुनंदा पुष्कर की मौत से संबंधित कोई भी खबर दिखाने या शो को प्रसारित करने से रोका जा सके। साथ ही यह भी मांग की गई है कि गोस्वामी को किसी भी तरह से वादी का अहित करने और बदनाम करने से भी रोका जाए।
थरूर की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि सुनंदा पुष्कर मामले में आरोप पत्र दायर दायर कर दिया गया है और उसमें हत्या का कोई मामला नहीं बनता है,उसके बावजूद अर्नब गोस्वामी अपने शो में दावा कर रहे हैं कि उन्हें कोई संदेह नहीं है कि सुनंदा पुष्कर की हत्या कर दी गई थी।
श्री सिब्बल ने यह भी कहा कि इस अदालत ने 01 दिसंबर, 2017 को एक आदेश दिया था,जिसमें प्रतिवादी को निर्देश दिया गया था कि वह संयम बरते और मीडिया ट्रायल करने से बचे। उसके बावजूद भी गोस्वामी ने यह दावा करते हुए थरूर के खिलाफ मानहानि करने वाली सामग्री को प्रसारित करना जारी रखा है कि उन्हें दिल्ली पुलिस द्वारा की गई जांच पर भरोसा नहीं है।
सिब्बल ने दलील दी कि,'क्या सार्वजनिक बहस में इस तरह से किसी व्यक्ति को अपमानित किया जा सकता है? वह (गोस्वामी) यह कैसे कह सकता है कि हत्या हुई थी, जबकि आरोपपत्र कुछ अन्यथा कह रहा है? यह तब तक इस तरह जारी नहीं रह सकता ,जब तक कि अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है।'
अदालत के पिछले आदेश को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को फटकारते हुए कहा कि-
'जब आरोप पत्र में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनाया गया है, तो आप अभी भी क्यों कह रहे हैं कि हत्या की गई है। क्या आप वहां मौजूद थे, क्या आप चश्मदीद गवाह हैं? आपको आपराधिक जांच और इसके विभिन्न संदर्भों की पवित्रता को समझना और उसका सम्मान करना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि एक काटने का निशान है, यह हत्या के समान नहीं है। क्या आपको यह पता भी है कि किस आधार पर हत्या मानी जाती है? हत्या हुई थी,इस बात का दावा करने से पहले आपको पहले यह समझने की जरूरत है कि हत्या क्या है?
गोस्वामी की वकील सुश्री मालविका त्रिवेदी ने तर्क दिया कि उनके पास एम्स के डॉक्टर से मिले विश्वसनीय सबूत हैं जो पुष्कर की मौत की ओर इशारा करते हैं। अदालत ने उनकी तर्क की लाइन पर सवाल उठाते हुए कहा कि-
'आप सबूत एकत्रित करने के क्षेत्र में नहीं हैं, आपकी सबूतों तक पहुंच नहीं है, क्या आप जानते हैं कि आपराधिक मुकदमे में सबूत कैसे एकत्र किए जाते हैं और कैसे मुकद्मे में सुनवाई के दौरान उन पर विचार किया जाता है ? जो चार्जशीट में कहा गया है कि क्या मीडिया उस एक अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य कर सकता है? मीडिया पर कोई गैगिंग या प्रतिबंध नहीं है, लेकिन कानून मीडिया ट्रायल को भी प्रतिबंधित करता है।'
अदालत ने आगे यह भी कहा कि जब जांच के लिए अधिकृत एक एजेंसी द्वारा आरोप पत्र दायर किया गया है और एक सक्षम न्यायालय ने उसी पर संज्ञान लेते हुए प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाला है कि इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनता है,हत्या का नहीं। ऐसे में प्रतिवादी द्वारा ऐसे बयान देना,जो थरूर द्वारा हत्या करने की तरफ इशारा करते हो,इस अदालत के पिछले आदेश में दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करते हैं।
अदालत ने कहा कि 'प्रेस को उन आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग करते समय सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए,जिनमें जांच चल रही हो।'
इसलिए, अदालत ने अर्नब गोस्वामी को निर्देश दिया है कि वह इस अदालत के पिछले आदेश का पालन करें और मामले सुनवाई की अगली सुनवाई तक संयम बरतें।
अदालत ने कहा, 'इसका कड़ाई से अनुपालन किया जाना चाहिए, अन्यथा इसके परिणाम सामने आएंगे।'